रणनीति मूल्य लड़ाई

Kisan Andolan : एमएसपी गारंटी कानून के लिए किसान आज तय करेंगे रणनीति, खाप का आंदोलन को समर्थन
Delhi News :फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारंटी कानून बनवाने के लिए किसानों का दिल्ली बॉर्डर स्थित पंजाब खोड़ गांव में आंदोलन दूसरे दिन भी जारी रहा। मौसम खराब होने के बावजूद भी किसान डटे रहे, वहीं विभिन्न किसान संगठन के नेताओं ने एमएसपी गारंटी कानून के लिए ग्रुप मंथन किया।
फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारंटी कानून बनवाने के लिए किसानों का दिल्ली बॉर्डर स्थित पंजाब खोड़ गांव में आंदोलन दूसरे दिन भी जारी रहा। मौसम खराब होने के बावजूद भी किसान डटे रहे, वहीं विभिन्न किसान संगठन के नेताओं ने एमएसपी गारंटी कानून के लिए ग्रुप मंथन किया। वह शनिवार को अपने आंदोलन की रणनीति का ऐलान करेंगे।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह ने कहा कि देश के गांवों तक एमएसपी कानून की लड़ाई को लेकर जाएगे और सरकार से कानून बनवाकर ही दम लेंगे। उन्होंने कहा कि फसल हमारी और भाव तुम्हारा अब नहीं चलेगा। इस दौरान सामूहिक संवाद का सत्र आयोजित किया गया, इसके बाद विभिन्न ग्रुप बनाकर एमएसपी गारंटी कानून पर चर्चा की गई। यहां किसानों का साथ देने के लिए देश के अलग-अलग राज्यों से किसानों का आना जारी रहा।
वहीं, खाप नेताओं ने भी फसलों के लिए एमएसपी गारंटी कानून को समर्थन देने के लिए अधिवेशन में भाग लिया। अधिवेशन में आए देशभर के 200 किसान संगठन के प्रतिनिधियों ने कहा कि जब न्यूनतम मजदूरी तय हो सकती है, तो फिर फसलों के एमएसपी की गारंटी क्यों नहीं। एमएसपी गारंटी किसान मोर्चा का गठन 22 मार्च 2022 को हुआ था। इस मोर्च में देशभर के लगभग 200 किसान संगठन शामिल है।
विस्तार
फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारंटी कानून बनवाने के लिए किसानों का दिल्ली बॉर्डर स्थित पंजाब खोड़ गांव में आंदोलन दूसरे दिन भी जारी रहा। मौसम खराब होने के बावजूद भी किसान डटे रहे, वहीं विभिन्न किसान संगठन के नेताओं ने एमएसपी गारंटी कानून के लिए ग्रुप मंथन किया। वह शनिवार को अपने आंदोलन की रणनीति का ऐलान करेंगे।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह ने कहा कि देश के गांवों तक एमएसपी कानून की लड़ाई को लेकर जाएगे और सरकार से कानून बनवाकर ही दम लेंगे। उन्होंने कहा कि फसल हमारी और भाव तुम्हारा अब नहीं चलेगा। इस दौरान सामूहिक संवाद का सत्र आयोजित किया गया, इसके बाद विभिन्न ग्रुप बनाकर एमएसपी गारंटी कानून पर चर्चा की गई। यहां किसानों का साथ देने के लिए देश के अलग-अलग राज्यों से किसानों का आना जारी रहा।
वहीं, खाप नेताओं ने भी फसलों के लिए एमएसपी गारंटी कानून को समर्थन देने के लिए अधिवेशन में भाग लिया। अधिवेशन में आए देशभर के 200 किसान संगठन के प्रतिनिधियों ने कहा कि जब न्यूनतम मजदूरी तय हो सकती है, तो फिर फसलों के एमएसपी की गारंटी क्यों नहीं। एमएसपी गारंटी किसान मोर्चा का गठन 22 मार्च 2022 को हुआ था। इस मोर्च में देशभर के लगभग 200 किसान संगठन शामिल है।
राष्ट्रपति और VP चुनावः न चेहरे, न रणनीति. क्यों भ्रमित और विफल नज़र आता है विपक्ष
राष्ट्रपति चुनाव हो या उससे पहले उप-राष्ट्रपति का चयन, विपक्ष कमज़ोर और भ्रमित नज़र आया है. चेहरों के पीछे की सोच के तर्क समझ से परे हैं. विपक्ष केवल चुनाव नहीं हारा है, कुछ और भी हार गया है.
पाणिनि आनंद
- नई दिल्ली,
- 18 जुलाई 2022,
- (अपडेटेड 18 जुलाई 2022, 6:17 PM IST)
भारतीय राजनीति में मोदी युग ने पिछले 8 वर्षों में रणनीति मूल्य लड़ाई वट और शैवाल वाली स्थिति पैदा कर दी है. सत्तापक्ष मजबूत है. पहले से और मजबूत होता गया है और मोदी की मजबूती विपक्ष को लगातार कमज़ोर करती गई है. कुछ एक उदाहरणों को छोड़ दें तो अधिकतर मोर्चों पर विपक्ष के पास हार, हार और हार वाली स्थिति ही दिख रही है. ऐसा लगता है कि रणनीति मूल्य लड़ाई एक वट का पेड़ है. जिसके नीचे कई और छोटे-बड़े पेड़ खुद को न तो ऊपर उठा पा रहे हैं और न ही उनके हिस्से में उजाला है. वो शैवालों जैसे छोटे होते गए हैं.
लोकतंत्र में वट और शैवाल स्वस्थ स्थिति नहीं मानी जाती. लेकिन इस स्थिति को बदलने का दायित्व विपक्ष पर होता है. सत्ता तो वट ही रहना चाहेगी. जिम्मेदारी होती है विपक्ष की कि वो सिर उठाए और वट के दायरे को चीरकर आगे निकले. और इसके लिए विपक्ष के पास होते हैं तीन हथियार- मुद्दे, रणनीति और जनता.
फिलहाल विपक्ष को देखकर ऐसा लगता है कि वो अनमना है. खेलना नहीं चाहता. लड़ना नहीं चाहता. न जाने क्या चाहता है. ऐसा लगता नहीं कि कोई स्पष्टता है. न कोई रणनीति है. न कोई बेचैनी है. न कोई संकल्प है. न कोई सक्रियता है. बस उमस है, उहापोह है. और किसी दैवीय अनुकंपा की प्रतीक्षा करते अजगर की तरह वो अवसर के स्वतः उसके मुख में प्रवेश करने का स्वप्न जी रहा है.
देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव हो रहे हैं. दोनों ही चुनावों का गणित विपक्ष के पाले से बाहर का है. विपक्ष फिर भी एक मूषक-सभा में घंटी लिए बैठा दिख रहा है. इसपर सहमति है कि घंटी बांधनी चाहिए. लेकिन घंटी बेदम है. रस्सी बेदम है. प्रयास बेदम हैं. इस लड़ाई में विपक्ष के पास न तो शहादत है और न संदेश. बस किरकिरी है. मनोबल हारने की.
बहुत कन्फ्यूजन है यहां
पहले बात राष्ट्रपति चुनाव की. तरह-तरह के कयास सत्तापक्ष के नाम को लेकर लगाए जाते रहे. इस दौरान विपक्ष ने आपस में चर्चा शुरू की. ममता बनर्जी को इस कवायद में एक अवसर दिखा. वो रिंग मास्टर की भूमिका में दिल्ली आईं और विपक्षी एकता के पिटारे से एक पर्ची निकालने के लिए बैठक हुई. इससे पहले गोपालकृष्ण गांधी जैसे नामों पर विचार हुआ. उनकी तरफ से इनकार के बाद विपक्ष में शरद पवार और कुछ अन्य नामों पर चर्चा हुई.
नतीजा रहा एक नाम जिसे न विपक्ष समझ पाया और न ही विपक्ष के साथ खड़े लोग. यशवंत सिन्हा भाजपा से निकले व्यक्ति हैं. विपक्ष के कई दल उनके बयानों, कटाक्षों और राजनीतिक प्रयासों के भुक्तभोगी रहे हैं. उनके साथी न इसपार हैं और न उसपार. कोई राजनीतिक संदेश भी इसमें निहित नहीं समझ आता. यशवंत को अधिकतर जानकार एक बेहद कमज़ोर चयन के तौर पर देखते हैं. उधर मुर्मू के साथ इतने सारे राजनीतिक फैक्टर हैं कि उनका विरोध करना रणनीति मूल्य लड़ाई आसान नहीं दिखता.
राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के उम्मीदवार की घोषणा वाली प्रेस कांफ्रेंस दरअसल ममता की प्रेस कांफ्रेंस ज़्यादा नज़र आ रही थी. महबूबा मुफ्ती को अपने बगल में बैठाए ममता कश्मीर नहीं, बंगाल के मुसलमानों को संदेश देती दिख रही थीं. यशवंत सिन्हा उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से कोई भी मजबूत राजनीतिक संदेश दे पाने में असमर्थ रहे. इस दौरान उन्होंने ऐसा कुछ कहा और किया नहीं, जिसे लोग याद रख सकें. विपक्ष भी जैसे अपना उम्मीदवार देकर सोने चला गया. हां, मुर्मू की सक्रियता की खबरें प्रकाश में आती रहीं.
उप-राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी ऐसी ही स्थिति है. एनडीए ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को अपना प्रत्याशी बनाया तो विपक्ष ने फिर से विचार मंथन के लिए एक बैठक की और मार्गरेट अल्वा के नाम पर अपनी मोहर लगा दी. वहीं अल्वा जो केंद्र में कांग्रेस की सरकार की मंत्री भी रहीं और उसके बाद कांग्रेस और गांधी परिवार की मुखर विरोधी भी.
धनखड़ की छवि किसी सरल, सौम्य चेहरे वाली नहीं रही है. लेकिन अल्वा के मुकाबले वो बेहतर नज़र आते हैं. अल्वा के नामांकन के पीछे क्या राजनीतिक गणना हो सकती है, यह समझ से परे है. खुद को गांधी परिवार का अवश्यंभावी भक्त मानने वाले कांग्रेस के वोटर कैसे अल्वा के लिए मतदान करेंगे, यह समझ पाना ज़रा कठिन है.
बहुत कुछ गए हार
विपक्ष दरअसल इस लड़ाई में बहुत कुछ जीत सकता था. भले ही इसकी संभावना कम ही रही हो कि विपक्ष इन चुनावों में सत्तापक्ष के प्रत्याशियों को पराजित कर पाता, वो एनडीए को परेशान तो कर ही सकता था. राजनीति में जीतने से पहले जीतने लायक दिखना भी ज़रूरी होता है. और जीतने लायक आप तब दिखते हैं, जब जीतने लायक रणनीति हो, तैयारी हो और चेहरा हो. इससे आप खेल में बराबरी पर दिखते हैं.
यह परसेप्शन की लड़ाई है. आप हारकर भी मुकाबला जीत सकते थे. ऐसा कौन सा अकाल था कि इन्हीं दो चेहरों पर विपक्ष को सहमति बनानी पड़ी. ऐसा कौन सा चमत्कार था इन चेहरों में कि विपक्ष को इन्हें उम्मीदवार बनाने की सुध आई. किसी बहुत बड़े खिलाड़ी, किसी भारत रत्न या नोबेल प्राप्त चेहरे, हाशिए का चेहरा या बदलाव का चेहरा, कोई बुद्धिजीवी या सामाजिक क्षेत्र की सशक्त आवाज. ऐसे कितने ही विकल्पों के बारे में विपक्ष विचार कर सकता था.
भले ही ऐसे विकल्प हार जाते लेकिन लोगों के बीच विपक्ष शहादत में सम्मान पा रहा होता. फिलहाल जिन चेहरों पर विपक्ष के समर्थकों को भी हंसी आ रही है, उनकी जगह अच्छे सोचे-विचारे चेहरे की बदौलत विपक्ष सत्तापक्ष और आम लोगों के बीच एक हलचल पैदा कर सकता था. अफसोस कि विपक्ष इस अवसर से चूक गया.
यह केवल चुनाव में हार रहा विपक्ष नहीं है. यह रणनीति में हार रहा विपक्ष है. ये लोगों की नज़रों में निश्चेष्ट हो चुका विपक्ष है. ये विपक्ष है तो या तो लड़ना नहीं चाहता या हश्र के खौफ से पहले ही हथियार डाले दिखाई दे रहा है. विपक्ष की ये हार लोकतंत्र में विपक्ष के महत्व और मूल्य की हार है. विपक्ष की इस हार के लिए स्वयं विपक्ष जिम्मेदार है. विपक्ष को और कुछ न हो सकें लेकिन विपक्ष तो रहना चाहिए.
लोकसभा 2019: विपक्ष की रणनीति का पांचवा सूत्र – धारणा की लड़ाई जीतो
नरेंद्र मोदी, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह
मोदी धारणा की लड़ाई में काफी आगे खड़े नजर आते हैं। उन्होंने इस धारणा को पुख्ता किया कि उनका ‘कोई विकल्प नहीं है’, क्योंकि बौनी विपक्षी पार्टियों के सामने 56 इंच की छाती वाला एक निडर उम्मीदवार डटा हुआ है, इसके अलावा यह धारणा भी काफी मजबूत है कि भ्रष्ट ताकतों के खिलाफ मोदी पर कोई भी व्यक्तिगत भ्रष्टाचार नहीं है। नई बीजेपी द्वारा दृढ़ता से बनाई गई छवि में संयुक्त हिंदु नेतृत्व भारत बनाम जातिवादी व सांप्रदायिक ताकतें आदि हैं।
जो विपक्षी पार्टियां इसी पैटर्न का अनुसरण करेंगी और मीडिया में समझौता करके उसका प्रचार-प्रसार करेंगी, वह विपक्ष के लिए आत्मघाती ही होगा। इससे निपटने का एकमात्र तरीका गुणात्मक रूप से अलग-अलग वैकल्पिक नैरेटिव को प्रस्तुत करना होगा, जैसे लोगों के जमीनी नेता बनाम लंबा घमंडी तानाशाह।
जैसे, मोदी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात तो करती है लेकिन भ्रष्टाचार में लिप्त भाजपा कार्यकर्ताओं के भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच नहीं की जाती है (जैसा कि पीडीएस और राफेल घोटालों में बातें सामने निकल कर बाहर आ रही हैं)। जैसे, एक धर्म-उच्च जाति का प्रमुख गौरवशाली इतिहास बनाम जमीनी दृष्टिकोण पर संयुक्त भारत।
जैसे अभिमानी अभिजात वर्ग शासन बनाम सर्वसम्मति युक्त शासन का प्रयास। मोदी-शाह के बयानों के दोहरे अर्थ वाली पंक्तियों पर उन्हें बेनकाब करने की वैकल्पिक कथाएं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के अपेक्षित राम-जनभूमि के फैसले के संदर्भ में किसी भी तरह के छोटे-बड़े दंगों को रोकने के लिए, संयुक्त विपक्ष को प्रत्येक मोहल्ला में वहां के सामाजिक नेताओं के सहयोग से अमन समिति बनानी चाहिए। दक्षिण पंथि की सांप्रदायिक राजनीतिकता को अलग करने के लिए नियमित आधार पर शांति रणनीति मूल्य लड़ाई वार्ता और रैलियों का आयोजन करना चाहिए।
मोदी की आर्थिक विफलता को जनमानस तक पहुंचाओ
संयुक्त विपक्ष को अल्पसंख्यकों और दलितों की राजनीति पर कम ध्यान देना, और मोदी-शाह के अर्थशास्त्र पर अधिक से अधिक चोट करनी है और उनकी अर्थव्यवस्था संबंधी नाकामियों को उजागर करना जैसे नोटबंदी, जीएसटी, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीजल की कीमतें आदि सब देश और आम जनता के लिए कितना विनाशकारी रहा है, सामान मूल्य वृद्धि, निर्यात और आयात में गिरावट, सीमित सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि, कृषि संकट आदि।
महिलाओं पर अत्याचार भी संचार का एक महत्वपूर्ण बिंदु हो सकता है, जबकि मुसलमानों, ईसाइयों और दलितों पर संयुक्त विपक्ष के शीर्ष नेताओं को सार्वजनिक वार्ता या मीडिया के साथ साक्षात्कार नहीं करना चाहिए। हालांकि निचले स्तर पर स्थानीयकृत अभियान चलाये जा सकते हैं। भले ही बीजेपी के लिए चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण एक प्रमुख मुद्दा होगा जैसा कि बिहार चुनाव में भी देखा गया है। अच्छी तरह से शोध किये गये आर्थिक तथ्यों को सामने रखना होगा। इसके साथ ही बीजेपी की साइबर सेना के हमले का मुकाबला भी करना होगा ।
संयुक्त विपक्ष प्लेटफॉर्म
एक विशिष्ट न्यूनतम साझा कार्यक्रम व स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ केवल पीपुल्स फेडरल एलायंस (पीएफए) नामक सामूहिक नेतृत्व ही इस संयुक्त विपक्ष को यर्थाथ रूप प्रदान रणनीति मूल्य लड़ाई कर सकता है। उनका व्यापक विजन भारत को अधिक समग्र संवेदनशील विकास उन्मुख भविष्य में ले जाना है, जो उदारवादी और आक्रामक भावनाओं से रहित हो। हालांकि इस मोर्चे पर अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।
(लेखक एक प्रसिद्ध मीडिया अकादमिक और स्तंभकार हैं। वह पूर्व में सिम्बियोसिस और एमिटी विश्वविद्यालयों के डीन भी रह चुके हैं। लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने निजी विचार हैं।) इसमें हिंदी न्यूज पोस्ट की सहमति जरूरी नहीं है।
भाकिसं ने बनाई आरपार लड़ाई की रणनीति
हरदा (ब्यूरो)। किसानों की लड़ाई लड़ रहा भारतीय किसान संघ शासन-प्रशासन से आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में है। गुरुवार को रणनीति को अंतिम रूप दिया जाएगा। जिसके तहत् कल शुक्रवार को जिले में एक बड़ा आंदोलन किया जा सकता है। उधर, किसान संघ के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि किसानों के यहां जैसी फसल का उत्पादन हुआ है, वह मंडी में व
हरदा (ब्यूरो)। किसानों की लड़ाई लड़ रहा भारतीय किसान संघ शासन-प्रशासन से आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में है। गुरुवार को रणनीति को अंतिम रूप दिया जाएगा। जिसके तहत् कल शुक्रवार को जिले में एक बड़ा आंदोलन किया जा सकता है। उधर, किसान संघ के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि किसानों के यहां जैसी फसल का उत्पादन हुआ है, वह मंडी में वैसी ही तो बेचेगा। किसान गेहूं बेचने के लिए यहां-वहां भटक रहा है। मुख्यमंत्री कह रहे रणनीति मूल्य लड़ाई हैं कि एक-एक दाना खरीदेंगे तो शासन और प्रशासन इसकी गारंटी दे।
भारतीय किसान संघ के पदाधिकारियों ने वीर तेजाजी चौक पर धरने के तीसरे दिन कहा कि समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी केन्द्रों पर नान एफएक्यू बताकर गेहूं खरीदी नहीं की जा रही है, जिसके कारण किसान परेशान हो रहा है। धरने को संबोधित करते हुए प्रांतीय उपाध्यक्ष योगेन्द्र भाम्बू ने कहा कि जब तक शासन और प्रशासन गारंटी नहीं देता है कि किसान का गेहूं जैसा है वैसा खरीदेंगे, तब तक संगठन किसानों के लिए संघर्ष करता रहेगा। भिण्ड कलेक्टर द्वारा दिए गए बयान की भाकिसं ने कडे शब्दों में निंदा की है। संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष रामकृष्ण चौधरी ने कहा कि ऐसे तानाशाह रणनीति मूल्य लड़ाई अफसर को सरकार को तत्काल हटा देना चाहिए ।
संगठन के जिला संयोजक भगवानदास गौर ने बताया कि गुरूवार को आगे की रणनीति बनाई जाएगी और जरूरत पड़ी तो संगठन कोई ठोस निर्णय लेगा। धरने में संघ के विभिन्ना पदाधिकारियों सहित किसान उपस्थित थे।
यशवंत सिन्हा ने चुनावी रणनीति को लेकर पहली बैठक की, कहा- ‘रबर-स्टाम्प राष्ट्रपति’ नहीं चाहिए
राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने अपनी चुनावी रणनीति को लेकर बुधवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कार्यालय में पहली बैठक की।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने अपनी चुनावी रणनीति को लेकर बुधवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कार्यालय में पहली बैठक की और कहा कि देश में ‘रबर-स्टाम्प राष्ट्रपति’ नहीं चाहिए।
सिन्हा ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि राष्ट्रपति चुनाव व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है बल्कि देश के सामने खड़े मुद्दों की लड़ाई है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘मैं उन सभी राजनीतिक दलों का आभारी हूं जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में मुझे अवसर दिया। मैं खुश हूं कि इन दलों ने मुझमें विश्वास जताया है। मैं यह कहना चाहता हूं कि यह चुनाव मेरे कोई व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है। देश के सामने खड़े मुद्दों के आधार पर निर्वाचक मंडलों को फैसला करना है।’’
उनके मुताबिक, भारतीय जनता पार्टी नीत केंद्र सरकार उस रास्ते पर चल रही है जो देश के लिए अच्छा नहीं है और नौजवान पीड़ा का सामना कर रहे हैं लेकिन सरकार ने ‘अग्निपथ’ योजना लाकर ‘मजाक’ किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रपति चुनाव बहुत संवेदनशील होता है और मैं सरकार के दबाव में नहीं आऊंगा।’’
सिन्हा 27 जून को नामांकन दाखिल करेंगे और पूरी संभावना है कि वह अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत झारखंड और बिहार से करें।
उन्होंने कहा, ‘‘हम प्रचार के लिए देश के विभिन्न स्थानों पर जाएंगे. हम उसी को लेकर रणनीति बना रहे हैं। मैं द्रौपदी मुर्मू को बधाई देता हूं, लेकिन यह चुनाव ‘मैं बनाम वह’ नहीं है, यह वैचारिक मुकाबला है। देश में रबर-स्टाम्प राष्ट्रपति नहीं होना चाहिए।’’
सिन्हा की चुनावी रणनीति से जुड़ी बैठक में जयराम रमेश (कांग्रेस), के. के. शास्त्री (राकांपा) और सुधींद्र कुलकर्णी शामिल हुए।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया है।
सिन्हा ने बाद में एक बयान जारी कर आरोप लगाया कि एक विचारधारा से जुड़े नेतागण संविधान का गला घोंटने पर आमादा हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इन नेताओं का मानना है कि भारत का राष्ट्रपति. बल्कि वह ऐसा रबर-स्टाम्प होना चाहिए जो सरकार के अनुसार काम करे। मुझे उस विचारधारा से जुड़ने को लेकर गर्व है जो संविधान और गणराज्य बचाने को प्रतिबद्ध है।’’
उन्होंने कहा कि अगर वह राष्ट्रपति निर्वाचित होते हैं तो भय या पक्षपात के बिना संविधान के बुनियादी मूल्यों और विचारों को अक्षुण रखेंगे।
सिन्हा का कहना था, ‘‘संविधान के संघीय ढांचे पर हो रहे हमलों के बीच केंद्र सरकार राज्य सरकारों के वैधानिक अधिकारों और शक्तियों रणनीति मूल्य लड़ाई को छीनने की कोशिश कर रही है जो पूरी तरह अस्वीकार्य होगा।’’
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति चुने जाने पर वह किसानों, कामगारों, बेरोजगार युवाओं और वंचित तबकों के लिए आवाज उठाएंगे।