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Trading की परिभाषाएं और अर्थ

Trading की परिभाषाएं और अर्थ
दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने यूरोप के पूंजीवादी देशों की सहायता के लिए एक योजना बनाई और 1957 में ‘यूरोपीय आर्थिक समुदाय’ का निर्माण किया । ताकि यूरोप के जितने Trading की परिभाषाएं और अर्थ भी पूंजीवादी देश हैं, उनके बीच आपसी व्यापार हो । सहयोग को और विकास को बढ़ावा मिले और 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद सोवियत संघ से अलग हुए यूरोपीय देश भी Trading की परिभाषाएं और अर्थ संगठन में शामिल हो गए । इसीलिए 1992 ‘यूरोपीय आर्थिक समुदाय’ को समाप्त करके “यूरोपीय संघ” बना दिया गया ।

Accounting Principles

क्षेत्रीय संगठन

सरल शब्दों में जब दो या दो से अधिक देश मिलकर किसी उद्देश्य के लिए कोई संगठन बनाते हैं, उन्हें क्षेत्रीय संगठन कहते हैं । जिनका उद्देश्य आपसी व्यापार को बढ़ावा देना और आपसी संबंधों को मज़बूत करना होता है ।

क्षेत्रीय संगठन का अर्थ

जब किसी क्षेत्र में Trading की परिभाषाएं और अर्थ स्थित देश अपने कुछ विशेष उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, किसी संगठन का निर्माण कर लेते हैं । तो ऐसे संगठन को ही क्षेत्रीय संगठन कहा जाता है । क्षेत्रीय संगठन जैसे यूरोपीय संघ, आसियान, सार्क यह सब क्षेत्रीय संगठन है ।

क्षेत्रीय संगठन क्यों बनाये जाते हैं ?

क्षेत्रीय संगठन आपसी बातचीत को बढ़ावा देने के लिए, विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान करने के लिए, आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए और आर्थिक विकास व आपसी व्यापार को तेज करने के लिए । और उन को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय संगठन वही देश बनाते हैं, जो मौलिक रूप से एक दूसरे के निकट होते हैं, नजदीक होते हैं । यानी की भौगोलिक निकटता क्षेत्रीय संगठन के निर्माण के लिए आवश्यक है । बिना भौगोलिक निकटता के क्षेत्रीय संगठन आसानी से नहीं बन सकते । क्योंकि भौगोलिक रूप से जो निकट स्थित देश होते हैं, वह एक दूसरे के बाजार का आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं । एक दूसरे के साथ सड़क और रेल से आसानी से जुड़े होते हैं । और अपनी समस्याओं का समाधान बातचीत के जरिए आसानी से कर लेते हैं । इसलिए भौगोलिक रूप से निकट स्थित देश ही क्षेत्रीय संगठन बनाते हैं ।

सार्वजनिक लोकवित्त का अर्थ एवं परिभाषा | राजस्व की परिभाषाएँ

लोकवित्त आर्थिक सिद्धान्त की उस शाखा का प्रतिनिधित्व करता है जिसका उद्देश्य राज्य द्वारा आय प्राप्त करने और व्यय करने से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन करना है। अन्य शब्दों में “लोकवित्त अथवा राजस्व वर्तमान शासनतन्त्र की वित्तीय क्रियाओं का अध्ययन है।”

राजस्व की परिभाषाएँ-

राजस्व की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नवत् दी गई हैं-

प्रो० सी० एफ0 बेस्टेबल के अनुसार “राजकीय साधनों की पूर्ति एवं प्रयोग जिस अध्ययन की विषय सामग्री है, वह राजस्व कहलाता है।”

प्रो० फिन्डले शिराज के अनुसार- “राजस्व उन सिद्धान्तों का अध्ययन है जिनके अन्तर्गत राजकीय अधिकारी कोष का एकत्रीकरण एवं व्यय करते हैं।”

डॉ० एच0 डाल्टन के मतानुसार- “राजस्व के सिद्धान्त सामान्य है जो इन मामलों में प्रतिपादित किये गये हैं कि यह राजकीय पदाधिकारियों के आय एवं व्यय तथा परस्पर समायोजन से सम्बन्धित है।”

आलोचना- ये परिभाषायें निम्न कारणों से दोषपूर्ण हैं-

(1) राजस्व के अन्तर्गत केवल मौद्रिक एवं साख सम्बन्धी साधनों का ही अध्ययन किया जाता है, अमौद्रिक साधनों का नहीं।

(ब) विस्तृत परिभाषायें-

इस वर्ग में प्लेहन, आरमिटेज, स्मिथ, लुट्ज तथा टेल आदि की परिभाषायें सम्मिलित की जाती है।

(1) प्लेहन- “राजस्व वह विज्ञान है जो राजनीतिज्ञों की उन क्रियाओं का अध्ययन करता है जो वे राज्य के उचित कार्य के सम्पादन हेतु भौतिक साधनों की प्राप्ति एवं प्रयोग के लिये करते हैं।”

(2) आरमिटेज स्मिथ- “राजकीय आय तथा राजकीय व्यय के सिद्धान्तों एवं प्रकृति की खोज को राजस्व कहते हैं।”

(3) लुट्ज- “राजस्व उन साधनों की व्यवस्था, सुरक्षा एवं वितरण का अध्ययन करता है जिनकी सार्वजनिक अथवा सरकारी कार्यों को चलाने के लिये आवश्यकता पड़ती है।”

(4) श्रीमती उर्सला हिक्स- “राजस्व का मुख्य विषय उन विधियों का निरीक्षण एवं मूल्यांकन करना है जिनके द्वारा सरकारी संस्थायें आवश्यकताओं की सामूहिक सन्तुष्टि करने का प्रबन्ध करती हैं और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये आवश्यक कोष प्राप्त करती हैं।”

वित्त अर्थशास्त्र की वह शाखा है जो विभिन्न सरकारों की वित्त व्यवस्था (अर्थात् आय-व्यय और इनके समायोजन की व्यवस्था) से सम्बन्धित सिद्धान्तों, समस्याओं, नीतियों और प्रक्रियाओं का अध्ययन तो करती ही है, साथ ही, यह उन आर्थिक पहलुओं का भी अध्ययन करती है जो कि आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये बजट नीतियाँ लागू करने से उत्पन्न आर्थिक प्रभावों से सम्बन्ध रखते हैं।

अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

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लेखांकन सिद्धांतों के लाभ

भारत में लेखांकन सिद्धांतों से प्राप्त होने वाले कुछ लाभ इस प्रकार हैं:

  • वस्तुओं को व्यय के रूप में पहचानने में मदद करता है,आय, दायित्व या संपत्ति
  • उस राशि को समझने में सहायता करता है जिस पर आइटम को खातों में पहचाना जाना चाहिए
  • इन वस्तुओं को प्रस्तुत करने में मदद करता है aबैलेंस शीट या वित्तीय विवरण
  • वस्तुओं की मान्यता के अनुसार किए जाने वाले आवश्यक प्रकटीकरण प्रदान करता है

लेखांकन सिद्धांतों के साथ, कंपनियों को वित्तीय विवरण तैयार करने और प्रस्तुत करने के मामले में गहन मार्गदर्शन मिलता है। यह विसंगतियों की संभावना को कम करता है और एक सटीक तस्वीर प्रदान करता है जो तुलना को और भी आसान बनाता है।

प्राथमिक लेखा सिद्धांत

प्रोद्भवन सिद्धांत

यह अवधारणा लेखांकन लेनदेन को उस अवधि में रिकॉर्ड करने में मदद करती है जब वे उस अवधि के बजाय हुई जबनकदी प्रवाह जुड़े थे।

संगति सिद्धांत

एक बार जब आप इस पद्धति को लागू कर लेते हैं, तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आप इसका उपयोग तब तक करते रहें जब तक कि कोई बेहतर तरीका या सिद्धांत तस्वीर में न आ जाए।

मेल खाते सिद्धांत

यह सिद्धांत बताता है कि खर्चों को मान्यता मिलनी चाहिए और जब भी खर्च इन खर्चों से अर्जित राजस्व के साथ मेल खाते हैं, तो उन्हें रिकॉर्ड किया जाना चाहिए।

रूढ़िवादी सिद्धांत

यह अवधारणा कंपनियों को जल्द से जल्द देनदारियों और खर्चों को रिकॉर्ड करने की अनुमति देती है। हालांकि, संपत्ति और राजस्व की रिकॉर्डिंग तभी की जाती है जब उनके होने की गारंटी हो।

आय पहचान सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार, राजस्व की पहचान तब होती है जब वे होते हैं न कि जब राशि प्राप्त होती है।

लेखांकन सिद्धांत और लेखा नीति के बीच अंतर

हालांकि अधिकांश लोगों को लेखांकन सिद्धांत और नीति समान लगती है; हालाँकि, ये दोनों अवधारणाएँ व्यापक रूप से भिन्न हैं। मूल रूप से, लेखांकन सिद्धांत नीतियों की तुलना में व्यापक है।

उदाहरण के लिए,मूल्यह्रास मूर्त संपत्ति की राशि के परिशोधन के एक लेखांकन सिद्धांत के रूप में माना जाता है। अब, मूल्यह्रास को लिखित डाउन वैल्यू (डब्लूडीवी) विधि और सीधी रेखा विधि (एसएलएम) द्वारा दूसरों के बीच चार्ज किया जा सकता है। मूर्त संपत्ति का मूल्यह्रास एक लेखा सिद्धांत है जबकि इस पहलू के लिए एसएलएम पद्धति का पालन करना एक लेखा नीति है।

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