भारत में इक्विटी में व्यापार कैसे करें

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बढ़ती हुई मुद्रा स्फीति अनुशंसाओं को देखते हुए स्थिर रेपो दर 29 अप्रैल, 2005 से बढ़कर 5 प्रतिशत कर दी गयी तथा प्रति रेपो दर 6 प्रतिशत के स्तर पर ही बनी रही। इस प्रकार आगे संविदाएं इन दोनों के बीच अन्तर 100 आधार बन्दु का बना रहा। चालू वर्ष 2006-07 की पहली त्रैमासिक समीक्षा में रेपो दर 7.0 प्रतिशत तथा प्रति रेपो दर 6.0 प्रतिशत कर दी गयी। 31 अक्टूबर 2006 से प्रभावी रेपो दर 7.25 प्रतिशत है जबकि प्रति रेपो दर 6.0 प्रतिशत के स्तर पर ही स्थिर बनी हुई है। रेपो / रिवर्स रेपो लेन-देन भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति को लागू करने के लिए किए जाते हैं। अर्ह प्रतिभागी भी बाजार निर्धारित दरों पर आपस में रेपो लेन-देन करने लिए स्वतंत्र हैं।

India आगे संविदाएं Budget 2022: 5 जी के लिये अनुकूल परिवेश के निर्माण के लिए बजट 2022-23 में डिजाइन संबंधी विनिर्माण योजना का प्रस्ताव

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सस्ते ब्रॉडबैंड आगे संविदाएं और ग्रामीण तथा दूर-दराज के क्षेत्रों में मोबाइल सेवा प्रसार को सक्षम बनाने के लिए यूएसओएफ के तहत वार्षिक संग्रह का 5 प्रतिशत आवंटित किया जाएगा

सभी गांवों में ऑप्टिकल फाइबर बिछाने आगे संविदाएं की संविदाएं 2022-23 में पीपीपी के जरिए भारतनेट परियोजना के तहत दी जाएंगी

Tricks to Learn the part of the constitution of India

VII B Deals with आगे संविदाएं आगे संविदाएं States in Part of B of its schedule : Article 238 Deals with states in Part B of the First Schedule. It was repealed by 7th आगे संविदाएं Amendment in 1956.

VIII U Union Territory: Articles 239-241 Administration of Union Territories

IX P Panchayats: Article 242-243 Territories in Part D of the First Schedule and other territories. It was repealed by 7th Amendment in 1956

X S Provision for Schedule & Tribal Area: Articles 244-244 A Scheduled and tribal areas

Parts added after 1950:

IVA Fundamental Duties Article 51-A Duties of a citizen of India. It was added by the 42nd Amendment in 1976

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Jumat, 2 Desember 2022 (14:32)


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पुनर्खरीद विकल्प/प्रति पुनर्खरीद विकल्प (रेपो / रिवर्स रेपो) - Repurchase Option / Repurchase Option (Repo / Reverse Repo)

पुनर्खरीद विकल्पों-रेपों (जिन्हें तात्कालिक अग्रिम संविदाएं भी कहा जाता है) लेन-देन में कोई एक पक्ष निधियों को एक निश्चित अवधि के लिए (जिसे रेपो अवधि कहा जाता है) किसी संपार्श्विक विशिष्ट प्रतिभूति के विरूद्ध पूर्व-निर्धारित दर ( रेपो दर) पर उधार लेता है। यद्यपि इसका प्राथमिक उद्देश्य निधियों को उधार लेना होता है तथापि प्रतिभूतियों का विधिक स्वामित्व भी बदल जाता है। इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि प्रथम पक्ष प्रतिभूतियाँ दूसरे पक्ष को बेच देता है, साथ ही इन्हीं प्रतिभूतियों को किसी अग्रिम तिथि को पूर्व निर्धारित दर पर फिर से खरीद लेने के लिए भी स्वीकृति दे देता है।

इसको परिणामस्वरूप प्रतिभूतियाँ बेचने वाले पहले पक्षकार को प्रभूतियाँ बेचने तथा इनकी पुनर्खरीद की तिथि तक की अवधि के लिए निधियाँ प्राप्त हो जाती हैं।

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