भारत में इक्विटी में व्यापार कैसे करें

सेबी और म्युचुअल फंड

सेबी और म्युचुअल फंड
Photo:FILE म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले हो जाएं सावधान

म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले हो जाएं सावधान, SEBI ने जारी की ये गाइडलाइन

NFO या IPO किस में मिलेगा ज्यादा कमाई का मौका?

किसी भी फंड में निवेश करने से पहले इन्वेस्टर बाजार को पूरी तरह खंगालता है. फिर भी कुछ टेक्निकल टर्म ऐसे होते हैं कि निवेशक भी सेबी और म्युचुअल फंड कंफ्यूज हो जाते हैं. ऐसे ही दो टेक्निकल टर्म - एक है IPO और दूसरा है NFO. IPO यानी कि Initial Public Offering और NFS यानी New Fund Offer है. अक्सर निवेशक ये मान लेते हैं सेबी और म्युचुअल फंड कि दोनों एक ही जैसे इंवेस्टमेंट का मौका देते हैं. साथ ही दोनों को प्राइमरी मार्केट ऑफरिंग भी मान लिया जाता है. इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि निवेश से पहले NFO और IPO दोनों के अंतर को समझ लिया जाए और दोनों के फायदे नुकसान भी जान लिए जाएं.

पिछले कुछ समय में बड़े-बड़े ब्रांड्स अपना IPO लेकर आई हैं. इसके जरिए फर्म्स अपने रिटेलर्स को अपने शेयर खरीदने का मौका देते हैं. NFO के जरिए कोई भी एसेट मैनेजमेंट कंपनी नई स्कीम लॉन्च करती है. दोनों में बेसिक अंतर ये है कि कंपनी जब अपने कारोबार का विस्तार करती है तो आईपीओ जारी कर बाजार से पैसा जुटाती है. जबकि एनएफओ में निवेशकों से पैसा जुटाकर फंड सेबी और म्युचुअल फंड सेबी और म्युचुअल फंड हाउस उसे सिक्योरिटी में इंवेस्ट करते हैं.

इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में कब तक पैसा रखना है सही, क्या है एक्सपर्ट्स की राय

नई दिल्ली. इक्विटी म्यूचुअल फंड्स आमतौर पर किसी अन्य निवेश विकल्प जैसे बैंक एफडी या गोल्ड से बेहतर माने जाते सेबी और म्युचुअल फंड हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सेबी और म्युचुअल फंड ये कम समय में आपको अच्छा रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं. शेयर मार्केट पर आधारित होने के कारण बेशक इसमें रिटर्न हमेशा एक जैसा नहीं रहता है लेकिन अगर म्यूचुअल फंड्स का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो मिड से लेकर लॉन्ग टर्म तक इसमें किया गया निवेश नुकसान नहीं कराता है.

हालांकि, ऐसा भी नहीं हो सकता कि आप लगातार फंड्स में पैसा लगाए रहें. अगर आप मुनाफे के साथ पैसा निकालेंगे नहीं तो म्यूचुअल फंड्स में निवेश का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. तो क्या इसका मतलब है कि आपको कभी भी म्यूचुअल फंड से बाहर निकल जाना चाहिए? जानकारों के अनुसार, ऐसी कुछ परिस्थतियां बनती हैं जब फंड से बाहर निकलने में ही आपकी भलाई होती है. आज हम जमा वेल्थ (निवेश सलाहकार फर्म) के सीईओ और संस्थापक राम कल्याण मेदुरी द्वारा सुझाई गईं ऐसी परिस्थितियों के बारे में बताएंगे जब आप अपना पैसा इक्विटी फंड्स से निकाल सकते हैं.

इस स्थिति में रखना होगा विशेष ध्यान

सेबी ने आगे कहा कि यूनिट बेचने से प्राप्त होने वाली राशि यूनिटधारकों (निवेशकों) को यूनिट बेचने सेबी और म्युचुअल फंड की तिथि से तीन दिन के भीतर उपलब्ध करायी जाएगी। जिन योजनाओं में कुल संपत्ति में से कम-से-कम 80 प्रतिशत राशि अगर विदेशों में स्वीकृत निवेश उत्पादों में किया गया सेबी और म्युचुअल फंड है तो ऐसी स्थिति में यूनिट बेचने से प्राप्त होने वाली राशि यूनिटधारकों को आवेदन देने की तिथि से पांच कामकाजी दिवस के भीतर उपलब्ध करायी जाएगी।

सेबी के साथ विचार-विमर्श कर उद्योग संगठन एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) उन अपवाद परिस्थितियों की सूची प्रकाशित करेगा, जिसके कारण वह निवेशकों को निर्धारित समयसीमा सेबी और म्युचुअल फंड में भुनायी गयी रकम देने में सेबी और म्युचुअल फंड असमर्थन होंगे। साथ ही उन्हें यह बताना होगा कि ऐसी परिस्थिति में यूनिटधारकों को पैसा मिलने में कितना समय लगेगा। सूची का प्रकाशन 30 दिनों के भीतर किया जाएगा। नियामक ने कहा कि अगर यूनिट बेचने से प्राप्त होने वाली राशि अथवा लाभांश भुगतान में देरी होती है तो यूनिटधारकों को प्राप्त होने वाली राशि पर सालाना 15 प्रतिशत की दर से ब्याज मिलेगा। ब्याज का भुगतान संपत्ति प्रबंधन कंपनियां करेंगी और इस प्रकार के भुगतान का विवरण अनुपालन रिपोर्ट के तहत सेबी को देना होगा।

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