विदेशी मुद्रा क्लब

फिर भी, अन्तरराष्ट्रीय मौद्रिक विकास के इतिहास की दृष्टि से रनमिनबी का कब और किस स्तर पर अन्तरराष्ट्रीय रिजर्व मुद्रा बन जाना केवल चीन के आर्थिक विकास के पैमाने, चीन की अपनी नीतिगत इच्छा तथा अन्तरराष्ट्रीय विद्वानों की परिकल्पना पर निर्भर नहीं करेगा। रनमिनबी का अन्तरराष्ट्रीकरण मुख्यतः खुले चीनी बाजार के विकास व सुधार की प्रगति पर निर्भर करता है। चीनी जन बैंक के उप गवर्नर ई कांग ने हाल ही में आई एम एफ वार्षिक सम्मेलन में बताया कि रनमिनबी के अन्तरराष्ट्रीकरण की गति रनमिनबी के प्रति अन्तरराष्ट्रीय बाजार की मांग पर निर्भर करती है, इस की विकास प्रक्रिया बाजार के नियमों के मुताबिक होगी और इस का स्तर चीन के व्यापार व निवेश की अन्तरराष्ट्रीकृत गहराई व व्यापकता पर आधारित है।
विदेशी मुद्रा क्लब
फिलहाल, विदेशी मिडिया में यह बहुचर्चा हो रही है कि अमेरिका मौद्रिक युद्ध बढ़ा रहा है अर्थात वह चीन जापान मुठभेड़ का बेजा फायदा उठाकर चल पूंजी को चीन से निकलवाने की कोशिश में है ताकि चीनी मुद्रा के अंतरराष्ट्रीकरण की गति रोकी जाए।
विश्व में वित्तीय संकट पैदा होने के बाद यह आम अनुमान चल रहा है कि 2020 तक चीन आर्थिक विकास के क्षेत्र में अमेरिका से आगे निकलेगा और विश्व में सब से बड़ी स्वतंत्र अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसी प्रकार के अंदाजे के आधार पर लोग समझते हैं कि 2020 तक चीन की मुद्रा रनमिबी की शक्ति अमेरिकी डालर के बरोबर होगी और अन्तरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था में प्रमुख मुद्रा बनेगी। इस परिकल्पना से प्रेरित होकर कुछ चीनी व विदेशी विद्वानों, नीति नियामकों और पूंजी निवेशकों ने चीनी मुद्रा रनमिनबी के अन्तरराष्ट्रीकरण का एक ऐसा शानदार रूपरेखा खींचा है जिस की पृष्ठभूमि में चीन व अमेरिका के बीच मौद्रिक युद्ध छिड़ने की संभावना है, क्योंकि ये लोग मानते हैं कि अन्तरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था का सौ सालों का इतिहास लोह व लहू से सना हुआ युद्ध का इतिहास है और कुंजीभूत अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा का बदलाव अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में सत्ता की तब्दील के साथ साथ होता है।
'वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों के क्लब में शामिल हो भारत'
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारतीय रिजर्व बैंक के साथ अगले हफ्ते होने वाली बैठक में भारत को वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों के क्लब में विदेशी मुद्रा क्लब शामिल कराने का मामला उठा सकते हैं। सूचकांक प्रदाता मसलन जेपी मॉर्गन की तरफ से सृजित इन सूचकाकों में शामिल होने के बाद संभावित तौर पर अरबों डॉलर का एफपीआई निवेश आ सकता है। इस कदम से एफपीआई सरकारी प्रतिभूतियों और कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार में और ज्यादा प्रमुख निवेशक बन जाएंगे। भारत ने सबसे पहले साल 2013 में वैश्विक सूचकांक प्रदाताओं से बातचीत विदेशी मुद्रा क्लब शुरू की थी, लेकिन बॉन्ड बाजार में पूंजी प्रवाह पर पाबंदी हटाने पर मतभेद के बाद सूचकांकों को शामिल करने की योजना त्याग दी। साल 2013 में मुद्रा अपेक्षाकृत कमजोर थी और देश रेटिंग में गिरावट का सामना कर रहा था, जिसकी वजह से सरकार ने बॉन्ड बाजार में सीमा नरम बनाने पर विचार के लिए प्रोत्साहित हुई। हालांकि रेटिंग में गिरावट का कोई खतरा नहीं है, लेकिन मुद्रा दबाव में आ गई है। अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के साथ उतारचढ़ाव वाली मुद्रा ने भारतीय ऋण बाजार को एफपीआई के लिए कम आकर्षक बना दिया है। साल 2018 में डॉलर के मुकाबले रुपया 8.4 फीसदी टूटकर 69.77 पर आ गया और इस साल भी इसमें 1.7 फीसदी की गिरावट आई है। साल 2018 में एफपीआई ने 46,500 करोड़ रुपये की ऋण प्रतिभूतियां बेची।
विदेशी मुद्रा क्लब
फिलहाल, विदेशी मिडिया में यह बहुचर्चा हो रही है कि अमेरिका मौद्रिक युद्ध बढ़ा रहा है अर्थात वह चीन जापान मुठभेड़ का बेजा फायदा उठाकर चल पूंजी को चीन से निकलवाने की कोशिश में है ताकि चीनी मुद्रा के अंतरराष्ट्रीकरण की गति रोकी जाए।
विश्व में वित्तीय संकट पैदा होने के बाद यह आम अनुमान चल रहा है कि 2020 तक चीन आर्थिक विकास के क्षेत्र में अमेरिका से आगे निकलेगा और विश्व में सब से बड़ी स्वतंत्र अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसी प्रकार के अंदाजे के आधार पर लोग समझते हैं कि 2020 तक चीन की मुद्रा रनमिबी की शक्ति अमेरिकी डालर के बरोबर होगी और अन्तरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था में प्रमुख मुद्रा बनेगी। इस परिकल्पना से प्रेरित होकर कुछ चीनी व विदेशी विद्वानों, नीति नियामकों और पूंजी निवेशकों ने चीनी मुद्रा रनमिनबी के अन्तरराष्ट्रीकरण का एक ऐसा शानदार रूपरेखा खींचा है जिस की पृष्ठभूमि में चीन व अमेरिका के बीच मौद्रिक युद्ध छिड़ने की संभावना है, क्योंकि ये लोग मानते हैं कि अन्तरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था का सौ सालों का इतिहास लोह व लहू से सना हुआ युद्ध का इतिहास है और कुंजीभूत अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा का बदलाव अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में सत्ता की तब्दील के साथ साथ होता है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इतने बिलियन डॉलर की कमी के साथ 576.869 अरब डॉलर पर पहुंचा, जानिए क्या है मामला
2 अप्रैल, 2021 को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 2.415 बिलियन डॉलर की वृद्धि के साथ 576.869 अरब डॉलर पर पहुँच गया है। विश्व में सर्वाधिक विदेशी मुद्रा भंडार वाले देशों की सूची में भारत चौथे स्थान पर है, इस सूची में चीन पहले स्थान पर है। इसे फोरेक्स रिज़र्व या आरक्षित निधियों का भंडार भी कहा जाता है भुगतान संतुलन में विदेशी मुद्रा भंडारों को आरक्षित परिसंपत्तियाँ’ कहा जाता है तथा ये पूंजी खाते में होते हैं। ये किसी देश की अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति का एक महत्त्वपूर्ण भाग हैं। इसमें केवल विदेशी रुपये, विदेशी बैंकों की जमाओं, विदेशी ट्रेज़री बिल और अल्पकालिक अथवा दीर्घकालिक सरकारी परिसंपत्तियों को शामिल किया जाना चाहिये परन्तु इसमें विशेष आहरण अधिकारों , सोने के भंडारों और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की भंडार अवस्थितियों को शामिल किया जाता है। इसे आधिकारिक अंतर्राष्ट्रीय भंडार अथवा अंतर्राष्ट्रीय भंडार की संज्ञा देना अधिक उचित है।
विदेशी मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर का आंकड़ा पार करने की सम्भावना: भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार 11 महीने के आयात के मूल्य के बराबर है। वर्ष 1991 में भारत के पास केवल तीन सप्ताह के आयात के मूल्य के बराबर का विदेशी मुद्रा भंडार उपलब्ध था। अच्छी तरह से निष्पादित की गयी नीतियां ही इस वृद्धि का कारण है।
एक हालिया रिपोर्ट में, अग्रणी वैश्विक वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी मॉर्गन स्टेनली ने अनुमान लगाया था कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पहली बार 400 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। 16 अगस्त 2017 में जारी इस रिपोर्ट के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा क्लब उछाल मजबूत पूंजी प्रवाह और कमजोर कर्जों के उठाव से प्रेरित है।