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मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई

मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई
दुनिया के अधिकांश देशों की ही तरह न्यूजीलैंड के लिए भी व्यापार की दृष्टि में भारत एक बेहतर बाजार के रूप में दिख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी इस बात बाखूबी जानते हैं और भारतीय बाजार की इस शक्ति के समुचित प्रयोग के ही जरिये दुनिया के तमाम विरोधी देशों को भी एक साथ साधकर चल भी रहे हैं। गौर करें तो रूस और अमेरिका जैसे दो विकट प्रतिद्वंद्वी देशों से इसवक़्त भारत के सम्बन्ध लगभग समान रूप से मधुर और गतिशील हैं तथा इससे इनमें किसी भी देश को कोई समस्या नहीं है।

जेटको सम्मेलन में भारत-ब्रिटेन के अर्ली हार्वेस्ट समझौते को मंजूरी

Kavita Singh Rathore

राज एक्सप्रेस। हाल ही में भारत और ब्रिटेन द्वारा संयुक्त आर्थिक और व्यापार समिति का एक भारत-ब्रिटेन संयुक्त आर्थिक और व्यापार समिति (जेटको) सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मलेन के दौरान दोनों देशों के बीच बनी सहमति से देशों ने मुक्त व्यापार समझौते के लिए प्रतिबद्धता जताई। इसके बाद अर्ली हार्वेस्ट समझौते (Early Harvest Agreement) के लिए मंजूरी दे दी गई।

अर्ली हार्वेस्ट समझौते को मंजूरी :

दरअसल, भारत और ब्रिटेन द्वारा बनी सहमति से अब अर्ली हार्वेस्ट समझौते को मंजूरी मिल गई है। बताते चलें, ऐसा इतिहास में पहली बाद हुआ है जब इस मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई तरह के पहले वर्चुअल भारत-ब्रिटेन संयुक्त आर्थिक और व्यापार समिति (JETCO) के सम्मेलन में मंजूरी दी गई।

दिल्ली में बैठक करने की योजना :

इस अनुमति का लगभग कई श्रेय वाणिज्य एवं उद्योग व रेल मंत्री पीयूष गोयल और ब्रिटेन की विदेश व्यापार मंत्री लिजट्रूस को जाता है क्योंकि इन्होंने लगातार बैठक कर इस समझौते की उपलब्धियों को हासिल करने पर सहमति जताई है। इस तरह की स्कीम के तहत प्रोडक्ट्स पर शुल्क लगाए जाने के प्रति उदारता बरती जाती है। इसके अलावा दोनों देशो ने आने वाले कुछ महीनों में कोरोना से बने हालातों के सही होने पर नई दिल्ली में बैठक करने को लेकर योजना भी बनाई है।

क्या है अर्ली हार्वेस्ट स्कीम ?

बताते चलें, अर्ली हार्वेस्ट स्कीम (Early Harvest Scheme) दो बिजनेस पार्टनर देशों के बीच होने वाला फ्री ट्रेडिंग अग्रिमेंट हैं। जो दो देशों के बीच मुक्त व्यापार की दिशा में अहम कदम बढ़ाता है। यह दो व्यापारिक देशों को टैरिफ उदारीकरण के लिए कुछ उत्पादों की पहचान करने में मदद करने के लिए एफटीए वार्ता के समापन के लिए लंबित है। यह मुख्य रूप से एक विश्वास निर्माण उपाय है। सरल भासा में कहें तो इस स्कीम के तहत दोनों कारोबारी पार्टनर देश ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की पहचान करते हैं, जिन पर शुल्क लगाए जाने के प्रति रियायत बरती जाती है।

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Nepal Election 2022: नेपाल में पूर्ण बहुमत पर अनिश्चितता बरकरार, जानिए कौन-किससे गठबंधन बनाने की कर रहा बात

नेपाल में 20 नवंबर 2022 को हुए आम व प्रांतीय चुनावों के अधिकतर परिणाम आ चुके हैं. इसमें किसी भी दल को पूर्ण बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है. गठबंधन बनाने को लेकर विभिन्न दलों के नेता एक-दूसरे से बातचीत कर रहे हैं.

नेपाल चुनाव में पूर्ण बहुमत पर अनिश्चितता बरकरार

नेपाल चुनाव में पूर्ण बहुमत पर अनिश्चितता बरकरार

gnttv.com

  • नई दिल्ली,
  • 30 नवंबर 2022,
  • (Updated 30 नवंबर 2022, 1:38 PM IST)

नेपाली कांग्रेस अब तक 53 सीटों पर कर चुकी है जीत दर्ज

नागरिक उन्मुक्ति पार्टी व कुछ निर्दलीयों का मिल सकता है समर्थन

नेपाल में 20 नवंबर 2022 को हुए आम व प्रांतीय चुनावों के अधिकतर परिणाम आ चुके हैं. इसमें किसी भी दल को पूर्ण बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है. गठबंधन बनाने को मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई लेकर विभिन्न दलों के नेता एक-दूसरे से बातचीत कर रहे हैं. पांच पार्टियों के मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन का नेतृत्व करने वाली नेपाली कांग्रेस फिर मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई सरकार बनाने के दावे कर रही है. लेकिन तीन जिलों में चुनावी गड़बड़ी और धांधली के आरोप के बाद फिर से चुनाव हो सकते हैं. इससे स्पष्ट परिणाम आने में समय लग सकता है. उधर, सभी प्रमुख दल अपने गठबंधन को मजबूत बताने और 275 सदस्यीय सदन में 138 के मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई आंकड़े के पार पहुंचता दिखाने में जुटे हैं. सियासी बातचीत व मुलाकातें हो रही हैं. नेपाली कांग्रेस अब तक 53 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है. पार्टी के करीब आधा दर्जन नेताओं ने अगला प्रधानमंत्री बनने की इच्छा प्रकट की है. अब तक 158 सीटों के परिणाम घोषित किये जा चुके हैं. मतगणना लगभग पूरी हो गयी है और छह सीटों के परिणाम अभी घोषित नहीं हुए हैं. सीपीएन-यूएमएल 42 सीट जीत चुकी है. सीपीएन (माओवादी सेंटर) को 17 सीट मिली है, वहीं सीपीएन (यूनीफाइड सोशलिस्ट) 10 सीट जीत चुकी है.

पीएम शेर बहादुर देउबा कर चुके हैं पुष्प कमल दहल व माधव से अलग-अलग मुलाकात
पीएम शेर बहादुर देउबा ने गठबंधन के सहयोगियों माओवादी सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल व यूनीफाइड सोशलिस्ट के प्रमुख माधव कुमार नेपाल से अलग-अलग मुलाकात की. उनका गठबंधन 138 का आंकड़ा नहीं पा सका, तो अन्य विकल्पों पर बात हुई. उन्हें नागरिक उन्मुक्ति पार्टी व कुछ निर्दलीयों का समर्थन मिल सकता है. नेपाल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामचन्द्र पौडल से माधव कुमार नेपाल बातचीत कर चुके हैं.

लेफ्ट गठबंधन बनाने को लेकर चल रही लॉबिंग
नेपाल में लेफ्ट एकता की मुहिम जोर पकड़ रही है. चर्चा है कि सत्ताधारी गठबंधन मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) का एक धड़ा पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी के साथ गठजोड़ करने की लॉबिंग में जुट गया है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के महासचिव देव गुरुंग इस लॉबिंग में शामिल हैं. उधर ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) के नेता पृथ्वी सुब्बा गुरुंग अपनी पार्टी के भीतर ऐसे नए गठबंधन की संभावना पर चर्चा चला रहे हैं. माओइस्ट सेंटर इस बात को लेकर नाराज है कि आम चुनाव के दौरान नेपाली कांग्रेस अपने वोट उसके उम्मीदवारों को ट्रांसफर करवा पाने में नाकाम रही. इससे कई ऐसी सीटें माओइस्ट सेंटर नहीं जीत पाई, जिनकी उसने नेपाली कांग्रेस के समर्थन के भरोसे उम्मीद जोड़ी हुई थी. नतीजा यह हुआ है कि 2017 के आम चुनाव की तुलना में इस बार माओइस्ट सेंटर की ताकत घट कर आधी रह गई है. इसके बावजूद पार्टी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन में बने रहना चाहते हैं जबकि देव गुरुंग और कई दूसरे नेताओं की राय है कि माओइस्ट सेंटर को नई सरकार बनाने के क्रम में यूएमएल से बातचीत शुरू करनी चाहिए. यूएमएल अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने पिछले हफ्ते ही फोन पर हुई बातचीत के दौरान फिर से हाथ मिलाने का प्रस्ताव दहल के सामने रखा था.प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्षन शेर बहादुर देउबा को भी चल रही ऐसी सुगबुगाहटों का अंदाजा है इसीलिए उन्होंने बातचीत के लिए दहल को अपने निवास पर बुलाया था. इसके जरिए उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि सत्ताधारी गठबंधन को कोई खतरा नहीं है.

भारत, ब्रिटेन के मंत्री व्यापार समझौते पर बातचीत शूरू करने को लेकर अगला कदम उठाने मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई पर सहमत

:अदिति खन्ना: लंदन, 13 सितंबर (भाषा) वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री लिज ट्रस के साथ सोमवार को वचुअर्ल बैठक की। इस बैठक में ब्रिटेन-भारत व्यापार समझौते को लेकर बातचीत शुरू करने के लिये अगला कदम उठाये जाने पर सहमति जताई गई। ब्रिटेन की सरकार ने यह कहा। ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग (डीआईटी) ने कहा कि दोनों मंत्रियों के बीच बातचीत भारत- ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिये ‘‘गुंजाइश और आकांक्षा’’ पर केन्द्रित रही। इस बातचीत से पहले 31 अगस्त को ब्रिटेन ने औपचारिक विचार विमर्श की प्रक्रिया को पूरा कर लिया।

लंदन, 13 सितंबर (भाषा) वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री लिज ट्रस के साथ सोमवार को वचुअर्ल बैठक की। इस बैठक में ब्रिटेन-भारत व्यापार समझौते को लेकर बातचीत शुरू करने के लिये अगला कदम उठाये जाने पर सहमति जताई गई। ब्रिटेन की सरकार ने यह कहा।

ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग (डीआईटी) ने कहा कि दोनों मंत्रियों के बीच बातचीत भारत- ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिये ‘‘गुंजाइश और आकांक्षा’’ पर केन्द्रित रही। इस बातचीत से पहले 31 अगस्त को ब्रिटेन ने औपचारिक विचार विमर्श की प्रक्रिया को पूरा कर लिया।

डीआईटी द्वारा सोमवार की इस बैठक पर जारी नोट में कहा गया है, ‘‘उन्होंने विचार विमर्श से सामने आई जानकारियों पर चर्चा की और इस साल के अंत तक बातचीत शुरू करने की तैयारियों के लिये उठाये जाने वाले कदमों पर सहमति जताई। इसमें सितंबर से व्यापार कार्यसमूहों की श्रृंखला की शुरुआत भी शामिल है।’’

डीआईटी ने कहा, ‘‘उन्होंने नई स्थापित की गई विस्तारित व्यापार भागीदारी पर भी चर्चा की और बाजार पहुंच पैकेज के समय पर क्रियान्वयन को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।’’

ब्रिटेन की सरकार ने कहा कि इस तरह की नियमित मंत्री स्तरीय बातचीत से दोनों पक्षों को मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर प्रतिबद्धता जताई विभिन्न क्षेत्रों में एक दूसरे की स्थिति को समझने में मदद मिलती है। किसी भी व्यापार समझौते में शुल्क, मानकों, बौद्धिक संपदा और डेटा नियमन सहित अलग अलग क्षेत्र होते हैं।

डीआईटी ने कहा कि ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री ने एक ऐसे व्यापार समझौते को लेकर अपनी आंकांक्षा को फिर से व्यक्त किया जिससे ब्रिटेन के लोगों और डिजिटल एवं डेटा, प्रौद्योगिकी और खाद्य एवं पेय क्षेत्र सहित विभिन्न व्यवसायियों के लिये बेहतर परिणाम हों।

दोनों मंत्रियों के बीच इस बात को लेकर भी सहमति थी कि आगे होने वाली बातचीत के दौरान व्यवसायिक समुदाय के साथ जुड़े रहना महत्वपूर्ण होगा।

भारत-न्यूजीलैंड संबंधों में नई ताज़गी आने की उम्मीद

विगत दिनों न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जॉन की भारत दौरे पर आए थे। रूस, चीन, अमेरिका आदि तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्षों की तुलना में उनका यह भारत दौरा मीडिया कवरेज के लिहाज से काफी शांत रहा, लेकिन इससे ऐसा नहीं समझना चाहिए कि इसका महत्व कम है। न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री के इस दौरे में दोनों देशों के बीच बातचीत के लिए दो बिंदु सबसे महत्वपूर्ण माने जा रहे थे। पहला तो ये कि भारत परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता के लिए न्यूजीलैंड का समर्थन प्राप्त करने की दिशा में पहल करेगा और दूसरा ये कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में दोनों देशों के बीच आम सहमति बनेगी। जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जॉन की ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया तो स्पष्ट हो गया कि इन बिन्दुओं पर न केवल बातचीत हुई है, बल्कि भारत न्यूजीलैंड को अपने पक्ष में करने में संभवतः सफल भी रहा है। न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जॉन की ने इस संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के शामिल होने को लेकर बातचीत हुई है और एनएसजी में भारत के शामिल होने की महत्ता को वे स्वीकार करते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत की सदस्यता को लेकर वर्तमान में एनएसजी में जारी प्रक्रिया में न्यूजीलैंड रचनात्मक रूप से योगदान करना जारी रखेगा तथा एनएसजी सदस्यों के साथ मिलकर इस सम्बन्ध में जल्द से जल्द किसी नतीजे पर पहुंचा जाएगा। इसके अलावा उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि न्यूजीलैंड संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने के सम्बन्ध में भी भारत का समर्थन करेगा। इसके अलावा आतंकवाद के मसले पर भी दोनों देशों के बीच सहमति बनी है। इस सम्बन्ध में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि आतंकवाद और कट्टरपंथ समेत साइबर हमलों के खतरे के विरुद्ध दोनों देश एक-दुसरे का सहयोग करने पर सहमति बनी है। ये बातें सुनने में तो काफी अच्छी लगती हैं और आशा जगाती हैं, मगर व्यावहारिकता में ये न्यूजीलैंड अपनी इन बातों पर कितना खरा उतरता है, ये तो समय ही बताएगा।

दुनिया के अधिकांश देशों की ही तरह न्यूजीलैंड के लिए भी व्यापार की दृष्टि में भारत एक बेहतर बाजार के रूप में दिख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी इस बात बाखूबी जानते हैं और भारतीय बाजार की इस शक्ति के समुचित प्रयोग के ही जरिये दुनिया के तमाम विरोधी देशों को भी एक साथ साधकर चल भी रहे हैं। गौर करें तो रूस और अमेरिका जैसे दो विकट प्रतिद्वंद्वी देशों से इसवक़्त भारत के सम्बन्ध लगभग समान रूप से मधुर और गतिशील हैं तथा इससे इनमें किसी भी देश को कोई समस्या नहीं है।

अब जो भी, मगर वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में न्यूजीलैंड का भारत के लिए बेहद महत्व है। अब चूंकि, ऐतिहासिक रूप से न्यूजीलैंड से भारत के सम्बन्ध अगर बहुत विद्वेषपूर्ण नहीं रहे तो बहुत अच्छे भी नहीं रहे हैं। पिछली सरकारों के ध्यान न देने के कारण आज न्यूजीलैंड भारत से कहीं अधिक भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी चीन के निकट हो चुका है। चीन और न्यूजीलैंड के बीच सम्बन्ध बेहद गर्मजोशी वाले हैं। इसी नाते जब चीन ने भारत की एनएसजी सदस्यता की राह में रोड़ा लगाया था, तो उसके रुख का समर्थन करने वाले नौ देशों में न्यूजीलैंड भी था। न्यूजीलैंड ने भी चीन के इस रुख का समर्थन किया था कि भारत की सदस्यता पर और विचार किया जाना चाहिए। तबसे भारत चीन का साथ देने वाले उन नौ देशों को अपनी तरफ करने को प्रयासरत है। अब न्यूजीलैंड समेत चीन का समर्थन करने वाले देशों में से जितने अधिक देश भारत के समर्थन में उतरेंगे चीन का विरोध उतना ही कमजोर पड़ेगा और वो बेहद अकेला पड़ जाएगा। ऐसे में, स्पष्ट है कि एनएसजी सदस्यता की दृष्टि से भारत के लिए न्यूजीलैंड का समर्थन बेहद महत्व रखता है।

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वैसे यहाँ आवश्यकता सिर्फ भारत की ही नहीं है, दुनिया के अधिकांश देशों की ही तरह न्यूजीलैंड के लिए भी व्यापार की दृष्टि में भारत एक बेहतर बाजार के रूप में दिख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी इस बात बाखूबी जानते हैं और भारतीय बाजार की इस शक्ति के समुचित प्रयोग के ही जरिये दुनिया के तमाम विरोधी देशों को भी एक साथ साधकर चल भी रहे हैं। गौर करें तो रूस और अमेरिका जैसे दो विकट प्रतिद्वंद्वी देशों से इसवक़्त भारत के सम्बन्ध लगभग समान रूप से मधुर और गतिशील हैं तथा इससे इनमें किसी भी देश को कोई समस्या नहीं है। उदाहरण के तौर पर उल्लेखनीय होगा कि एक तरफ भारत रूस से एयर डिफेन्स सिस्टम का सौदा किया, तो दूसरी तरफ अमेरिका से अत्याधुनिक होव्तिजर तोपों के खरीद पर सहमति कायम की। इस तरह दोनों देशों से भारत के व्यापारिक सम्बन्ध कायम हो गए और इन व्यापारिक संबंधों के जरिये अन्य सम्बन्ध भी दुरुस्त ही रहने हैं। यही भारतीय बाजार की शक्ति है। अब न्यूजीलैंड को भी भारत अपने इसी बाजार के जरिये चीन की तुलना में खुद के अधिक करीब लाने की कवायदें करने की दिशा में प्रयास करेगा। चीन और न्यूजीलैंड के बीच व्यापारिक सम्बन्ध ही तो उनके संबंधों को मजबूत किए हुए हैं। भारत और न्यूजीलैंड के बीच बिलकुल भी व्यापार नहीं हो, ऐसा नहीं है। लेकिन, वो चीन की अपेक्षा बेहद कम है, जिसे बढ़ाने की दिशा में अब भारत जोर दे रहा है। इसीलिए न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जॉन की की इस ताज़ा यात्रा में दोनों देशों के बीच व्यापक मुक्त व्यापार समझौते को लेकर भी प्रतिबद्धता जताई गई।

वैसे, चीन से न्यूजीलैंड के सिर्फ व्यापारिक सम्बन्ध हैं, जबकि भारत से उसका सांस्कृतिक जुड़ाव भी है। भारत के लगभग बीस हजार से ऊपर छात्र न्यूजीलैंड में पढ़ते हैं। इस तरह भारतीय संस्कृति अपनी मौजूदगी वहाँ जमाए हुए है। अब बस एकबार न्यूजीलैंड को भारतीय बाजार का स्वाद मिल जाय, फिर उसके लिए स्वतः ही भारत का महत्व चीन से कहीं अधिक हो जाएगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

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