अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए?

कैसे आते हैं बदलाव ? अशिक्षित होना और मूर्ख होना दो अलग बातें
How does change come? Being uneducated and being foolish are two different things
आज हमें परिवर्तन की मानसिक यात्रा से गुज़रने की आवश्यकता है
स्कूल-कॉलेज विधिवत औपचारिक शिक्षा के मंच (Formal education platforms) हैं और व्यक्ति यहां से बहुत कुछ सीखता है। शिक्षित व्यक्ति के समाज में आगे बढ़ने के अवसर अशिक्षित लोगों के मुकाबले कहीं अधिक हैं। एक कहावत है कि विद्वान व्यक्ति गेंद की तरह होता है और मूर्ख मिट्टी के ढेले की तरह, नीचे गिरने पर गेंद तो फिर ऊपर आ जाएगा पर मिट्टी का ढेला नीचे ही रह जाएगा। यानी कठिन समय आने पर या सब कुछ छिन जाने पर भी विद्वान व्यक्ति उन्नति के रास्ते दोबारा निकाल लेगा लेकिन मूर्ख के लिए शायद ऐसा संभव नहीं होता।
मैं साफ कर देना चाहता हूं कि अशिक्षित होना और मूर्ख होना दो अलग बाते हैं। शिक्षित लोगों में से भी बहुत से मूर्ख होते ही हैं और अशिक्षित अथवा अल्प-शिक्षित लोगों में भी बुद्धिमानों और नायकों की कमी नहीं रही है। तो भी सामान्यत: शिक्षित व्यक्ति के ज्यादा बुद्धिमान और ज्यादा सफल होने के आसार अधिक होते हैं। इसके बावजूद क्या हमारी शिक्षा प्रणाली हमें वह दे पा रही है जो इसे असल में देना चाहिए? क्या वह देश को बुद्धिमान नायक और प्रेरणास्रोत बनने योग्य नेता अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? दे पा रही है? ईमानदारी से विश्लेषण करें तो इसका उत्तर “न” में होगा।
जापानी मूल के प्रसिद्ध अमरीकी लेखक राबर्ट टी. कियोसाकी कहते हैं, “स्कूल में मैंने दो चुनौतियों का सामना किया। पहली तो यह कि स्कूल मुझ पर नौकरी पाने की प्रोग्रामिंग करना चाहता था। स्कूल में सिर्फ यह सिखाया जाता है कि पैसे के लिए काम कैसे किया जाता है। वे यह नहीं सिखाते हैं कि पैसे से अपने लिए काम कैसे लिया जाता है। दूसरी चुनौती यह थी कि स्कूल लोगों को गलतियां करने पर सजा देता था। हम गलतियां करके ही सीखते हैं। साइकिल चलाना सीखते समय मैं बार-बार गिरा। मैंने इसी तरह सीखा। अगर मुझे गिरने की सजा दी जाती तो मैं साइकिल चलाना कभी नहीं सीख पाता।”
What are the deficiencies in our education system?
हमारी शिक्षा प्रणाली में कई कमियां हैं। हमारे स्कूल-कालेज हमें भाषा, गणित, विज्ञान या ऐसे ही कुछ विषय सिखाते हैं, लोगों के साथ चलना, लोगों को साथ लेकर चलना तथा कल्पनाशील और स्वप्नदर्शी होना नहीं सिखाते। यह एक तथ्य है कि विशेषज्ञ नेता नहीं बन पाते। यह समझना जरूरी है कि लोगों को साथ लेकर चलने में असफल रहने वाला विशेषज्ञ कभी नेता नहीं बन सकता, वह ज्य़ादा से ज्य़ादा नंबर दो की स्थिति पर पहुंच सकता है, अव्वल नहीं हो सकता, हो भी जाएगा तो टिक नहीं पाएगा। सॉफ्ट स्किल्स के बिना आप बहुत आगे तक नहीं जा सकते। स्कूल-कालेज सीधे तौर पर सॉफ्ट स्किल्स नहीं सिखाते।
The fearful person does not make the right decision
हमारी शिक्षा प्रणाली की दूसरी बड़ी कमी है कि यह हमें प्रयोगधर्मी होने से रोकती है। कोई भी वैज्ञानिक आविष्कार पहली बार के प्रयास का नतीजा नहीं है। अक्सर वैज्ञानिक लोग किसी एक समस्या के समाधान का प्रयास कर रहे होते हैं जबकि उन्हें संयोगवश किसी दूसरी समस्या का समाधान मिल जाता है। वह भी एक आविष्कार होता है। बिजली के बल्ब के आविष्कार से पहले एडिसन को कितनी असफलताएं हाथ लगी थीं? यदि उन असफलताओं के लिए उन्हें सजा दी जाती तो क्या कभी बल्ब का आविष्कार हो पाता? पर हम अपने व्यावहारिक जीवन में हर रोज़ यही करते हैं। हम गलतियां बर्दाश्त नहीं करते, गलतियां करने वाले को सज़ा देते हैं और उनमें भय की मानसिकता भर देते हैं। भयभीत व्यक्ति सही निर्णय नहीं ले पाता और उसका मानसिक विकास गड़बड़ा जाता है। हमारी शिक्षा प्रणाली अपनी पूरी पीढ़ी के साथ यही खेल खेल रही है।
Excessive reasoning prevents us from being imaginative
अत्यधिक तर्कशीलता हमें कल्पनाशील होने से रोकती है। वर्तमान से आगे देख पाने के लिए हमारा स्वप्नर्शी और प्रयोगधर्मी होना आवश्यक है। शिक्षा प्रणाली की यही कमी हमें क्लर्क देती है, अफसर देती है पर नेता नहीं देती।
हमारी शिक्षा प्रणाली की तीसरी और सबसे बड़ी कमी है कि यह हमें अपने सभी साधनों का प्रयोग करना नहीं सिखाती। पूंजी एक बहुत बड़ा साधन है पर हमारी शिक्षा हमें पूंजी के उपयोग का तरीका नहीं सिखाती। हमारी शिक्षा हमें पैसे के लिए काम करना सिखाती है, पैसे से काम लेना नहीं सिखाती। हम नौकरी में हों या व्यवसाय में। हम पैसे के लिए काम करते हैं। सवाल यह है कि हम अपने काम पर जाना बंद कर दें, व्यवसाय संभालना बंद कर दें, नौकरी पर जाना बंद कर दें तो क्या तब भी हमारी आय बनी रहेगी? यह सिद्ध हो चुका है कि पूंजी के निवेश का सही तरीका (Right way to invest capital) सीखने पर यह संभव है, लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली इस तथ्य से सर्वदा अनजान है। इसीलिए यह आज भी विद्यार्थियों को पैसे के लिए काम करना सिखा रही है, पैसे से काम लेना नहीं। जब हम सही निवेश की बात करते हैं तो इसका आशय कंपनियों के शेयर खरीदने या म्युचुअल फंडों में निवेश करना नहीं है। वह भी एक तरीका हो सकता है, पर वह पूरी रणनीति का एक बहुत ही छोटा हिस्सा मात्र है। निवेश की रणनीति (Investment strategy) को समझकर गरीबी से अमीरी का सफर तय किया जा सकता है, अमीर बना जा सकता है, बहुत अमीर बना जा सकता है और हमेशा के लिए अमीर बना रहा जा सकता है, वह भी रिटायरमेंट का मज़ा लेते हुए।
Our education system that punishes us for mistakes makes us addicted to living fearfully
“दि हैपीनेस गुरू” के नाम से विख्यात, पी. के. खुराना दो दशक तक इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और दिव्य हिमाचल आदि विभिन्न मीडिया घरानों में वरिष्ठ पदों पर रहे। वे मीडिया उद्योग पर हिंदी की प्रतिष्ठित वेबसाइट “समाचार4मीडिया” के प्रथम संपादक थे।
गलतियों के लिए सज़ा देने वाली हमारी शिक्षा प्रणाली हमें डर-डर कर जीने का आदी बना देती है और ज्यादातर लोग रेल का इंजन बनने के बजाए रेल के डिब्बे बनकर रह जाते हैं जो किसी इंजन के पीछे चलने के लिए विवश होते हैं। इंजन बनने वाला व्यक्ति नेतृत्व के गुणों के कारण अपने डर को जीत चुका होता है और पुरस्कारों की फसल काट रहा होता है, जबकि अनुगामी बनकर चलने वाले लोग डर के दायरे में जी रहे होते हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली अभी हमें डर के आगे की जीत का स्वाद चखने के लिए तैयार नहीं कर रही है।
हमें यह समझना चाहिए कि परिवर्तन दिमाग से शुरू होते हैं, या यूं कहें कि दिमाग में शुरू होते हैं। राबर्ट कियोसाकी ने लिखा है कि जब मैं मोटा हो गया था और मैंने अपना वजन घटाने का निश्चय कर लिया तो मैं जानता था कि मुझे अपने विचार बदलने थे और सेहत के बारे में खुद को दोबारा शिक्षित करना था। आज जब लोग मुझसे पूछते हैं कि मैंने अपना वजन कम कैसे किया (किस तरह की डाइटिंग की, किस तरह के व्यायाम किए), तो मैं यह बताने की कोशिश करता हूं कि मैंने जो किया वह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना यह कि मैंने अपनी सोच को बदला।
Today we need to go through a mental journey of change
आज हमें परिवर्तन की मानसिक यात्रा से गुज़रने की ज़रूरत है। हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं और सत्रहवीं सदी की मानसिकता से हम देश का विकास नहीं कर सकते। नई स्थितियों में नई समस्याएं हैं और उनके समाधान भी पुरातनपंथी नहीं हो सकते। यदि हमें गरीबी, अशिक्षा से पार पाना है और देश का विकास करना है तो हमें इस मानसिक यात्रा में भागीदार होना पड़ेगा जहां हम नये विचारों को आत्मसात कर सकें और ज़माने के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें।
जब शेयर मार्केट गिरता है तो कहां जाता है आपका पैसा? यहां समझिए इसका गणित
Share market: जब शेयर मार्केट डाउन होता है, तो निवेशकों का पैसा डूबकर किसके पास जाता है? क्या निवेशकों के नुकसान से किसी को मुनाफा होता है. आइए इसका जवाब बताते हैं.
- शेयर मार्केट डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है
- अगर कंपनी अच्छा परफॉर्म करेगी तो उसके शेयर के दाम बढ़ेंगे
- राजनीतिक घटनाओं का भी शेयर मार्केट पर पड़ता है असर
5
5
5
5
नई दिल्ली: आपने शेयर मार्केट (Share Market) से जुड़ी तमाम खबरें सुनी होंगी. जिसमें शेयर मार्केट में गिरावट और बढ़त जैसी खबरें आम हैं. लेकिन कभी आपने सोचा है कि जब शेयर मार्केट डाउन होता है, तो निवेशकों का पैसा डूबकर किसके पास जाता है? क्या निवेशकों के नुकसान से किसी को मुनाफा होता है. इस सवाल का जवाब है नहीं. आपको बता दें कि शेयर मार्केट में डूबा हुआ पैसा गायब हो जाता है. आइए इसको समझाते हैं.
कंपनी के भविष्य को परख कर करते हैं निवेश
आपको पता होगा कि कंपनी शेयर मार्केट में उतरती हैं. इन कंपनियों के शेयरों पर निवेशक पैसा लगाते हैं. कंपनी के भविष्य को परख कर ही निवेशक और विश्लेषक शेयरों में निवेश करते हैं. जब कोई कंपनी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो उसके शेयरों को लोग ज्यादा खरीदते हैं और उसकी डिमांड बढ़ जाती है. ऐसे ही जब किसी कंपनी के बारे में ये अनुमान लगाया जाए कि भविष्य में उसका मुनाफा कम होगा, तो कंपनी के शेयर गिर जाते हैं.
डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है शेयर
शेयर मार्केट डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है. लिहाजा दोनों ही परिस्थितियों में शेयरों का मूल्य घटता या बढ़ता जाता है. इस बात को ऐसे लसमझिए कि किसी कंपनी का शेयर आज 100 रुपये का है, लेकिन कल ये घट कर 80 रुपये का हो गया. ऐसे में निवेशक को सीधे तौर पर घाटा हुआ. वहीं जिसने 80 रुपये में शेयर खरीदा उसको भी कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन अगर फिर से ये शेयर 100 रुपये का हो जाता है, तब दूसरे निवेशक को फायदा होगा.
कैसे काम करता है शेयर बाजार
मान लीजिए किसी के पास एक अच्छा बिजनेस आइडिया है. लेकिन उसे जमीन पर उतारने के लिए पैसा नहीं है. वो किसी निवेशक के पास गया लेकिन बात नहीं बनी और ज्यादा पैसे की जरूरत है. ऐसे में एक कंपनी बनाई जाएगी. वो कंपनी सेबी से संपर्क कर शेयर बाजार में उतरने की बात करती है. कागजी कार्रवाई पूरा करती है और फिर शेयर बाजार का खेल शुरू होता है. शेयर बाजार में आने के लिए नई कंपनी होना जरूरी नहीं है. पुरानी कंपनियां भी शेयर बाजार में आ सकती हैं.
शेयर का मतलब हिस्सा है. इसका मतलब जो कंपनियां शेयर बाजार या स्टॉक मार्केट में लिस्टेड होती हैं उनकी हिस्सेदारी बंटी रहती है. स्टॉक मार्केट में आने के लिए सेबी, बीएसई और एनएसई (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) में रजिस्टर करवाना होता है. जिस कंपनी में कोई भी निवेशक शेयर खरीदता है वो उस कंपनी में हिस्सेदार हो जाता है. ये हिस्सेदारी खरीदे गए शेयरों की संख्या पर निर्भर करती है. शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर्स यानी दलाल करते हैं. कंपनी और शेयरधारकों के बीच सबसे जरूरी कड़ी का काम ब्रोकर्स ही करते हैं.
निफ्टी और सेंसेक्स कैसे तय होते हैं?
इन दोनों सूचकाकों को तय करने वाला सबसे बड़ा फैक्टर है कंपनी का प्रदर्शन. अगर कंपनी अच्छा परफॉर्म करेगी तो लोग उसके शेयर खरीदना चाहेंगे और शेयर की मांग बढ़ने से उसके दाम बढ़ेंगे. अगर कंपनी का प्रदर्शन खराब रहेगा तो लोग शेयर बेचना शुरू कर देंगे और शेयर की कीमतें गिरने लगती हैं.
इसके अलावा कई दूसरी चीजें हैं जिनसे निफ्टी और सेंसेक्स पर असर पड़ता है. मसलन भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बारिश अच्छी या खराब होने का असर भी शेयर मार्केट पर पड़ता है. खराब बारिश से बाजार में पैसा कम आएगा और मांग घटेगी. ऐसे में शेयर बाजार भी गिरता है. हर राजनीतिक घटना का असर भी शेयर बाजार पर पड़ता है. चीन और अमेरिका के कारोबारी युद्ध से लेकर ईरान-अमेरिका तनाव का असर भी शेयर बाजार पर पड़ता है. इन सब चीजों से व्यापार प्रभावित होते हैं.
Benefits of investment in shares : शेयरों में कैसे करें निवेश ताकि मिले बेहतर रिटर्न, जानिए रणनीति
आप ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहते हैं तो शेयर बाजार में निवेश करें। हालांकि इसमें जोखिम होता है। लेकिन यहां जानें इसमें कैसे निवेश करें ताकि आपको बेहतर रिटर्न मिले।
- भारतीय शेयर मार्केट सबसे ऊंचे स्तर पर है।
- शेयर बाजार कभी-कभी तेजी से नीचे भी गिरती है।
- इस जोखिम भरे बाजार में कब निवेश करना चाहिए, इसके बारे में नीचे विस्तार से जान सकते हैं।
अधिक जोखिम उठाने वाले कई निवेशकों को सीधे इक्विटीज में निवेश करना अच्छा लगता है। मौजूदा समय में भारतीय स्टॉक मार्केट अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है, लेकिन निवेशकों को इस बात का अंदाजा नहीं है कि क्या उन्हें निवेश को जारी रखना चाहिए अथवा उन्हें शेयरों में अपने मौजूदा निवेश से निकल जाना चाहिए। उन्हें डर है कि यदि इस स्तर से अगर मार्केट नीचे गिरती है, तो उन्हें शायद नुकसान हो सकता है। और साथ ही, यदि आने वाले दिनों में मार्केट इसी तरह से नई ऊंचाईयां छूती रहती है, तो वे संभावित लाभ को भी नहीं गंवाना चाहेंगे। इसलिए, अब उन्हें क्या करना चाहिए? जब शेयर मार्केट अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर हो तो उनकी निवेश रणनीति क्या होनी चाहिए? मैंने इस संबंध में कुछ उपयोगी बातों पर चर्चा की है।
डिविडेंट का भुगतान करने वाले स्टॉक्स में निवेश करने पर विचार करें
आपको स्टॉक्स में किए गए अपने निवेश पर दो तरह से रिटर्न मिल सकता है: पहला पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन) के ज़रिए, या डिविडेंट आय जिसके माध्यम से कंपनियां अपने लाभ को शेयरधारकों के साथ साझा करती हैं। यदि आप जिस कंपनी में निवेश करते हैं, वह कैश-रिच कंपनी है, वह नियमित रूप से आय अर्जित करती है, और जिसका कर्जा कम है, तो इस बात की संभावना है कि वह डिविडेंट का भुगतान जारी रखेगी। आमतौर पर, ऐसी कंपनियां जो नियमित रूप से उच्च डिविडेंट का भुगतान करती हैं, वे बाजार के उतार-चढ़ाव से कम प्रभावित होती हैं। इसलिए, हालांकि स्टॉक-मार्केट इस समय अपने सबसे ऊंचे स्तर पर ट्रेड कर रही है, आप ऐसे स्टॉक्स को लेने पर विचार कर सकते हैं जो फंडामेंटली स्ट्रॉंग रहे हैं, उनका डिविडेंट का भुगतान करने का इतिहास बहुत अच्छा रहा है, जिनकी भविष्य में भी लगातार डिविडेंट का भुगतान करने की संभावना है। लेकिन, डिविडेंट का भुगतान करने वाली कंपनियों में निवेश पर विचार करने से पहले, यह महत्वपूर्ण है कि आप टैक्स से जुड़ी बातों को भी समझ लें। निवेशक को डिविडेंट आय पर टैक्स देना होता है। इसलिए, यदि आपको डिविडेंट आय मिलती है, तो आपको अपने लागू कर स्लैब रेट के अनुसार उस आमदनी पर टैक्स देना होता है।
स्पेकुलेशन (कयास) से बचें
आप अधिक पैसा कमा सकें, ऐसा करने हेतु कम समय के लिए स्टॉक में निवेश करना और फिर बाहर निकल जाना, आमतौर पर स्पेकुलेशन कहलाता है। निवेश और स्पेकुलेशन में मुख्य अंतर यह है कि निवेश में संभावित रिटर्न को कमाने के लिए पूर्व विश्लेषण और जोखिम प्रबंधन पर फोकस किया जाता है, जबकि स्पेकुलेशन में रिसर्च पर भरोसा नहीं किया जाता है- इसकी बजाए इसमें आय कमाने के लिए ‘संभावना’ पर भरोसा किया जाता है। जब मार्केट अपने चरम पर हो, तो आपको संबंधित जोखिमों को कम करने के लिए सभी रणनीतियों के साथ तैयार रहना पड़ता है। गहन रिसर्च करने के बाद निवेश करने से आपको गैर-ज़रूरी जोखिमों से बचने में सहायता मिल सकती है और हानि की संभावना भी कम हो सकती है।
शॉर्ट-टर्म निवेश पर कड़े स्टॉप-लॉस को फॉलो करें
जैसाकि नाम से ही पता लगता है, ‘स्टॉप लॉस’ निवेशक द्वारा पहले से ही तय की गई सीमा है, जिस सीमा तक पहुंचते ही निवेश पोज़िशन से बाहर निकल जाते हैं ताकि और अधिक हानि को रोका जा सके। उदाहरण के लिए, यदि आपने 1000/- रूपये प्रति शेयर के हिसाब से “XYZ” के 100 शेयरों में निवेश किया है। कुछ दिनों के बाद “XYZ” के शेयरों की कीमत में गिरावट होनी शुरू हो जाती है। जब यह 900/- रूपये पर पहुंच जाती है, तो आप 850/- रूपये स्टॉप-लॉस तय कर देते हैं। इसका मतलब है कि आप अपनी निवेश पोज़िशन से निकलने के लिए इसकी कीमत के 850/- रूपये तक गिरने का इंतजार करेंगे। अगले दिन, स्टॉक का भाव 840/- रुपये के निचले स्तर पर खुलता है, जिसके कारण स्टॉप-लॉस ट्रिगर हो जाता है तथा आप “XYZ” के शेयरों को 840/- के भाव से बेच देते हैं और आप 16,000/- रूपये (1 लाख रूपये – 84,000/- रूपये) की हानि वहन करते हैं। लेकिन बाद में “XYZ” के शेयरों की कीमत गिर कर 600/- रूपये हो जाती है। क्योंकि आपके पास अब “XYZ” के शेयर नहीं हैं, तो आप स्टॉप-लॉस के कारण अधिक हानि से बच गए।
इसलिए, जब आप शेयरों में निवेश करते हैं, तो आपको स्टॉप-लॉस का कड़ाई से पालन करना चाहिए। इससे आपको अपने नुकसान को कम से कम रखने में मदद मिलेगी। जब आपके स्टॉक की कीमत बढ़ती है, तो आपको स्टॉप-लॉस को ऊपर की ओर या स्टॉक की कीमत के पूर्वनिर्धारित प्रतिशत के अनुसार एक ही समय पर शिफ्ट करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आप लाभ को लॉक कर सकते हैं। स्टॉक की कीमत के अनुसार ही धीरे धीरे स्टॉप-लॉस को शिफ्ट करने की प्रक्रिया को ट्रेलिंग स्टॉप-लॉस कहा जाता है।
अपने निवेश को अलग-अलग फंडामेंटली स्ट्रॉन्ग शेयरों में लगाएं
फंडामेंटली स्ट्रॉंग शेयरों को चुनने से स्टॉक मार्केट में गिरावट होने के बाद तेजी से रिकवरी के लाभ के साथ अनेक दूसरे भी लाभ होते हैं। इसलिए, अपने पोर्टफोलियों के लिए स्टॉक को चुनते समय, सॉलिड ट्रैक रिकॉर्ड, खातों में निम्न या शून्य कर्ज, बेहतर कैश-फ्लो स्तर, रेवेन्यू में उच्च वृद्धि, आकर्षक प्रोफिटेबिलिटी और एक आशाजनक विकास योजना वाले शेयरों अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? सहित फंडामेंटली स्ट्रॉंग शेयरों पर फोकस करना चाहिए। आपका लक्ष्य, अलग-अलग सेक्टर में अपने निवेश को डायवर्सिफाई करने के साथ-साथ, दूसरी कंपनियों के शेयरों में भी निवेश करने का होना चाहिए ताकि आप जोखिम को कम से कम कर सकें। यदि कोई खास सेक्टर या स्टॉक अंडर-परफार्म करता है, तो किसी एक सेक्टर में ज़रूरत से ज्यादा निवेश करने और कुछ कंपनियों में ही निवेश करने से आपका जोखिम बढ़ सकता है।
जरुरत से ज्यादा निवेश करने से बचें और यदि आप बिगनर हैं, तो एसआईपी (SIP) मोड का इस्तेमाल करें
स्टॉक मार्केट में निवेश करने से पहले आपको अपनी जोखिम को उठाने की क्षमता का अंदाजा ज़रूर लगा लेना चाहिए। आपको हमेशा उतना ही निवेश करना चाहिए जितनी आप हानि उठाने की क्षमता रखते हैं। स्टॉक मार्केट में बहुत ही उतार-चढ़ाव होते रहते हैं और आपको केवल तभी निवेश करना चाहिए जब हर रोज़ होने वाले उतार-चढ़ाव से आपके फाइनेंस प्रभावित नहीं होते हैं। यदि आप में स्टॉक मार्केट विश्लेषण करने की योग्यता है, तो स्टॉक मार्केट में डायरेक्ट निवेश से लंबे समय में बहुत अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है बशर्ते कि आप जोखिमों को भी समझते हैं। ज़रूरत से ज्यादा निवेश से बचना बहुत ही मायने रखता है यानि अपनी जोखिम उठाने की क्षमता और वित्तीय क्षमता से अधिक निवेश करना। यदि मार्केट में गिरावट आ जाती है, तो शेयरों अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? में निवेश से बहुत अधिक हानि उठानी पड़ सकती है। बिगनर्स के लिए, सिस्टेमिक निवेश योजना (एसआईपी), टॉप-रेटेड म्यूचुअल फंड्स में निवेश लंबे समय में अच्छा रिटर्न पाने के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है।
Benefits of Credit Cards : कौन सा क्रेडिट कार्ड आपके लिए सबसे अच्छा होगा? लेने से पहले जान लें ये जरूरी बातें
Senior Citizen Investment Options: घर बैठे इनकम बढ़ा सकते हैं वरिष्ठ नागरिक, इन 5 निवेश विकल्पों पर करें विचार
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) ( ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)
Times Now Navbharat पर पढ़ें Business News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।
एक बार शेयर खरीदकर 2 तरह से पा सकते हैं मुनाफा, जानें क्या होता है डिविडेंड
एक बार शेयर खरीदकर 2 तरह से पा सकते हैं मुनाफा
Dividend Stocks: अमूमन शेयर खरीदने के बाद अगर उसमें ग्रोथ आती है तो उसका फायदा निवेशकों को मिलता है. लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि एक ही जगह निवेश करें और उस पर 2 तरह से आपको मुनाफा हो. बहुत से लोगों को इस बारे में ज्यादा अंदाजा नहीं होगा. शेयर बाजार में यह भी संभव है. इस तरह का फायदा आप ज्यादा डिविडेंड देने वाले शेयरों में निवेश कर उठा सकते हैं.
शेयर बाजार की चाल हर समय एक जैसी नहीं रहती है. बाजार में कभी तेजी आती है तो कभी छोटे सेंटीमेंट से भी बाजार नीचे आने लगता है. जब बाजार में गिरावट शुरू होती है तो कई शेयरों का भाव भी गिरने लगता है और निवेशकों का रिटर्न निगेटिव हो सकता है. ऐसे में निवेशकों के मन में डर भी बैठने लगता है. जो निवेशक ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहते हैं, कई बार वे इस कंडीशन में शेयर भी बेचने लगते हैं. अगर आप भी जोखिम नहीं लेना चाहते हैं तो डिविडेंड स्टॉक बेहतर विकल्प है.
क्या है डिविडेंड?
कुछ कंपनियां अपने शेयरधारकों को समय-समय पर अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा देती रहती हैं. मुनाफे का यह हिस्सा वे शेयरधारकों को डिविडेंड के रूप में देती हैं. इन्हें डिविडेंड यील्ड स्टॉक भी कहते हैं. गर इन कंपनियों के शेयर खरीदते हैं तो इसमें 2 तरह से फायदा होगा.
DCX Systems IPO: आईपीओ के पहले ही 40% प्रीमियम पर पहुंचा शेयर, पैसा लगाने वालों को मिल सकता है बंपर रिटर्न
Titan: 3 रु से 2700 रु का हुआ स्टॉक, टाटा ग्रुप शेयर का असली रिटर्न रहा 18000 गुना, तेजी अभी बाकी है
Stocks in News: PFC, Route Mobile, SBI Cards, Tata Chemicals जैसे शेयर दिखाएंगे एक्शन, इंट्राडे में करा सकते हैं कमाई
Dividend Stocks: 2 तरह से फायदा
- एक तो फायदा यह होगा कि कंपनी होने वाले मुनाफे का कुछ हिस्सा आपको देगी.
- दूसरी ओर शेयर में तेजी आने से भी आपको मुनाफा होगा. मसलन किसी कंपनी के शेयर में आपने 10 हजार रुपए निवेश किए हैं और एक साल में शेयर की कीमत 25 फीसदी चढ़ती है तो आपका निवेश एक साल में बढ़कर 12500 रुपये हो जाएगा.
- ज्यादा डिविडेंड देने वाली कंपनियों में निवेश का एक फायदा यह है कि आप अपने शेयर बेचे बिना भी इनकम कर सकते हैं.
मुनाफे वाली कंपनियां देती हैं डिविडेंड
आमतौर पर पीएसयू कंपनियां डिविडेंड के लिहाज से अच्छी मानी जाती हैं. जानकारों का कहना है कि अगर कोई कंपनी डिविडेंड दे रही है तो इसका मतलब साफ है कि उस कंपनी को मुनाफा आ रहा है. कंपनी के पास कैश की कमी नहीं है. डिविडेंड देने के ऐलान से शेयर को लेकर भी सेंटीमेंट अच्छा होता है और उसमें तेजी आती है. हालांकि ऐसे शेयर चुनते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि निवेश उसी कंपनी में करें जिनका ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर ग्रोथ के साथ रेग्युलर डिविडेंड देने का हो.
ये कंपनियां देती है डिविडेंड
देश में ऐसी कंपनियों की कमी नहीं हैं, जो अपने शेयरधारकों को समय-समय पर डिविडेंड देती हैं. ज्यादा डिविडेंड देने वाली कंपनियों की सूची में कोल इंडिया, वेदांता लिमिटेड, बीपीसीएल, आईओसी, आरईसी, NMDC, NTPC और सोनाटा सॉफ्टवेयर जैसी कंपनियां शामिल हैं.
(Disclaimer: हम यहां निवेश की सलाह नहीं दे रहे हैं. यह डिविडेंड स्टॉक के बारे में एक जानकारी है. स्टॉक मार्केट के अपने जोखिम है. निवेश के पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.)
Get Business News in Hindi, latest India News in Hindi, and other breaking news on share market, investment scheme and much more on Financial Express Hindi. Like us on Facebook, Follow us on Twitter for latest financial news and share market updates.
Rupee vs Dollar: डॉलर के मुकाबले रुपया गिरने से आपकी जेब पर क्या होता है असर? फायदे का सौदा या फिर नुकसान
नई दिल्ली, एजेंसी। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में पिछले कई महीने से उतार-चढ़ाव जारी है। इस कारण रुपया, डॉलर के मुकाबले 80 के आस-पास आ गया है। इससे पता चलता है कि रुपया, डॉलर के मुकबले काफी कमजोर स्तर पर है।
सवाल है कि आखिरकार रुपये में यह कमजोरी होती क्यों है और इसका महत्व क्या है? आखिर डॉलर के मुकाबले रुपये के मजबूत होने या कमजोर पड़ने आम आदमी पर क्या असर पड़ता है। आइए जानते हैं.
क्यों आती है रुपये में कमजोरी
रुपये में कमजोरी कई वजह से होती है। इसका सबसे आम कारण है डॉलर की डिमांड बढ़ जाना। अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली किसी भी उथल-पुथल से निवेशक घबराकर डॉलर खरीदने लगते हैं। ऐसे में डॉलर की मांग बढ़ जाती है और बाकी मुद्राओं में गिरावट शुरू हो जाती है। रुपया भी ऐसी ही प्रवृत्तियों का शिकार हो रहा है। कभी-कभी घरेलू परिस्थितियां भी ऐसी बन जाती हैं कि रुपया गिरने लगता है। शेयर बाजार की उथल-पुथल का भी रुपये की कीमत पर असर होता है।
अब समझने की कोशिश करते हैं कि रुपये की कमजोरी से आम आदमी पर क्या असर होता है.
ईंधन की कीमत में बढ़ोतरी
रुपये की कीमत गिरने का सबसे बड़ा प्रभाव पेट्रोल-डीजल की कीमत पर पड़ता है, क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से अधिक कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है। ऐसे में डॉलर की कीमत बढ़ने से भारत का कच्चा तेल अपने आप महंगा हो जाएगा और सरकार को पेट्रोल-डीजल की कीमत में वृद्धि करनी पड़ सकती है।
ईंधन की कीमत बढ़ने से देश में सामानों की ढुलाई की लागत में बढ़ोतरी हो जाती है। इससे सीधे अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? तौर पर चीजों की कीमत में इजाफा होता है और आम आदमी की जेब पर प्रभाव पड़ता है।
महंगा आयात
रुपये के कमजोर होने के कारण विदेशों से होने वाले आयात जैसे कच्चे तेल और अन्य जरूरी उत्पादों की कीमत में वृद्धि हो जाती है, जिस कारण कंपनियों को मजबूरी में कीमत में बढ़ोतरी करनी पड़ती है। इस वजह से उपभोक्ता को भी पहले के मुकाबले अधिक दाम चुकाने पड़ते हैं।
ब्याज दरों में इजाफा
जब भी रुपये की कीमत में गिरावट होती है तो महंगाई में बढ़ोतरी देखने को मिलती है। ऐसे में आरबीआई को महंगाई को काबू करने के लिए ब्याज दरों में इजाफा करना पड़ता है, जैसा कि हमने पिछले दिनों देखा था। आरबीआई ने पिछले चार महीनों में महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में 1.4 फीसदी का इजाफा किया है। इसके कारण लोन लेने वाले ग्राहकों की ईएमआई में इजाफा हो गया है और उन्हें अधिक रकम का भुगतान करना पड़ा रहा है।
विदेशों में पढ़ाई
रुपये की कीमत घटने से विदेशों में पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए पढ़ाई महंगी हो जाती है। इससे छात्रों को पहले के मुकाबले अधिक पैसे चुकाने पड़ते हैं।
विदेश यात्रा
विदेश यात्रा करने या विदेश घूमने का सपना देखने वाले लोगों के लिए रुपये की कीमत में गिरावट आना बड़ा झटका है। इससे विदेशों के टूर पैकेज, रहना- खाना और घूमना सभी महंगा हो जाता है।