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फॉरवर्ड हेजिंग

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डेली न्यूज़

सेबी द्वारा कृषि जिंसों में डेरिवेटिव व्यापार पर प्रतिबंध | 21 Dec 2021 | भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रिलिम्स के लिये:

कैपिटल मार्केट, डेरिवेटिव ट्रेडिंग, इन्फ्लेशन, ऑप्शंस, फ्यूचर्स, फॉरवर्ड्स, स्वैप्स

मेन्स के लिये:

डेरिवेटिव ट्रेडिंग निलंबन के कारण और इसके प्रभाव, महत्त्व और डेरिवेटिव ट्रेडिंग से संबंधित चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने नेशनल कमोडिटीज़ एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) के फ्यूचर प्लेटफॉर्म पर सात कृषि जिंसों के डेरिवेटिव व्यापार पर एक वर्ष के लिये प्रतिबंध लगा दिया है।

स्‍टॉक ब्रोकर्स को इंट्रा-डे ट्रेडिंग में पीक मार्जिन बढ़ाने पर आपत्ति, सेबी के खिलाफ केंद्र सरकार को लिखी चिट्ठी

SEBI के खिलाफ स्‍टॉक ब्रोकर्स के संगठन ने केंद्र सरकार को खत लिखा है.

SEBI के खिलाफ स्‍टॉक ब्रोकर्स के संगठन ने केंद्र सरकार को खत फॉरवर्ड हेजिंग लिखा है.

स्टॉक ब्रोकर्स (Stock Brokers) के संगठन एसोसिएशन ऑफ नेशनल एक्सचेंजेज मेंबर्स ऑफ इंडिया (ANMI) ने कहा है कि पीक मार्जिन . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : May 28, 2021, 03:35 IST

नई दिल्ली. पूंजी बाजार नियामक सेबी (SEBI) और स्टॉक ब्रोकर्स के संगठन एसोसिएशन ऑफ नेशनल एक्सचेंजेज मेंबर्स ऑफ इंडिया (ANMI) के बीच खींचतान शुरू हो गई है. दरअसल, एएनएमआई ने सेबी के एक प्रस्ताव के विरोध में वित्त मंत्रालय को चिट्ठी लिखी है. सेबी की ओर से प्रस्तावित इंट्रा-ड्रे ट्रेडिंग (Intra-Day Trading) के लिए 100 फीसदी का पीक मार्जिन (Peak Margin) तय करने के प्रस्ताव को लेकर एएनएमआई का कहना है कि यह वास्तविक मार्जिन से 300 फीसदी ज्‍यादा है. एएनएमआई ने फॉरवर्ड हेजिंग लेटर में कहा है 20 मई को सेबी की ओर से जारी प्रस्ताव पर फिर से विचार किया जाना चाहिए.

ब्रोकर्स एसोसिएशन ने कहा है कि पीक मार्जिन रिक्‍वायरमेंट को मौजूदा स्तर से भी नीचे लाया जाना चाहिए. वर्तमान में यह 50 फीसदी है, जिसे 25 से लेकर 33.33 फीसदी के बीच किया जाना चाहिए. बता दें कि एएनएमआई देश भर के 900 से ज्‍यादा स्टॉक ब्रोकर्स का समूह है. संगठन चिंतित है कि 1 जून 2021 से पीक मार्जिन 50 फीसदी से 75 फीसदी किए जाने का फैसला प्रभावी हो जाएगा. ब्रोकर्स एसोसिशन के मुताबिक, पीक मार्जिन बढ़ने से बाजार के व्यवहार में बदलाव आएगा और फ्यूचर से ऑफ्शन की तरफ ट्रेडिंग शिफ्ट होगी. लोगों की मानसिकता बदलेगी और वे ऑप्शंस ट्रेडिंग अधिक करेंगे. ऐसे में लोग स्टॉक/इंडेक्स फ्यूचर्स और स्टॉक ऑप्शंस से दूर रहेंगे.

संगठन का कहना है कि अधिक मार्जिन रहने से नुकसान वाली ट्रेड्स को लंबे समय तक कैरी फॉरवर्ड किया जाता रहेगा. इससे निवेशकों को सिक्योरिटी का गलत अहसास मिलेगा. मार्जिन बढ़ाने से कैपिटल मार्केट में कम वॉल्यूम के कारण हेजिंग अपॉर्च्यूनिटीज में गिरावट आई है और कमोडिटी मार्केट्स पर असर पड़ा है. दिसंबर 2020 और फरवरी 2021 के बीच ट्रेडर्स को पीक मार्जिन कम से कम 25 फीसदी बरकरार रखने के लिए कहा गया था. इसके बाद इसे मार्च और मई के बीच बढ़ाकर 50 फीसदी किया गया. अब सेबी के प्रस्ताव के मुताबिक, जून से अगस्त 2021 के बीच इसे 75 फीसदी तक किया जाना है. इसके बाद 1 सितंबर से यह 100 फीसदी हो जाएगा.

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फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स । Forward Derivatives in Hindi

जिस चीज़ पर उसकी वैल्यू निर्भर करता है उसे अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) कहा जाता है। जैसे कि पनीर की वैल्यू दूध पर निर्भर करता है इसीलिए यहाँ दूध पनीर का अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) है।

डेरिवेटिव्स (Derivatives) चार प्रकार के होते हैं – फॉरवर्ड (Forward), फ्युचर (future), ऑप्शन (Option) और स्वैप (Swap)। इस लेख में हम फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स को समझेंगे:

| फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स क्या है?

इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिये कि अभी मार्केट में गेहूं 20 रुपए प्रति किलो बिक रहा है। एक किसान है जो अपना गेहूं इसी रेट पर बेचना चाहता है लेकिन उसके पास समस्या ये है कि फॉरवर्ड हेजिंग अभी उसका गेहूं तैयार नहीं हुआ है वो 2 महीने बाद तैयार होगा। किसान इस बात को लेकर चिंतित है कि अगर 2 महीने बाद मार्केट में गेहूं का रेट 20 रुपए से कम हो गया तो फिर ऐसे में वो क्या करेगा।

इसी तरह से एक ब्रेड बनाने वाली फैक्ट्री है जिसने देखा था कि पिछली बार गेहूं का दाम मार्केट में बहुत बढ़ जाने से उसकी ब्रेड महंगी हो गयी थी। इस बार भी उसे लग रहा है कि शायद गेहूं का दाम 2 महीने बाद 30 रुपए प्रति किलो हो जाएगा।

जबकि आज के डेट में उसकी बाज़ार कीमत सिर्फ 20 रुपए प्रति किलो है। अगर दो महीने बाद भी 20 रुपए प्रति किलो गेहूं मिल जाये तो फिर क्या ही कहने।

ये जो समस्या दोनों के पास आ रही है। इसी को समाधान करने का तरीका है फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स (Forward derivatives )। वो कैसे?

अब वो किसान और वो फैक्ट्री ये कर सकता है कि गेहूं के आज के रेट के हिसाब से 2 महीने बाद के लिए कांट्रैक्ट कर सकता है। यानी कि मार्केट में गेहूं का दाम चाहे घटे या बढ़े लेकिन 2 महीने बाद आज के ही रेट पर दोनों सौदा करेंगे। इसमें दोनों का ही फायदा है क्योंकि इससे दोनों का रिस्क कम हो जाएगा, इसे हेजिंग (Hedging) कहा जाता है।

कुल मिलाकर यहाँ किसान को ये डर है कि कहीं दाम इससे भी ज्यादा कम न हो जाये क्योंकि मार्केट में जब बहुत गेहूं आ जाएँगे तो स्वाभिविक है कि दाम कम हो जाये वहीं दूसरी तरफ फैक्ट्री को लगता है कि क्या पता अगर गेहूं की उपज कम हो तो गेहूं का दाम बढ़ जाएगा। ये दोनों की बस अपनी-अपनी सोच है। 2 महीने बाद क्या होगा ये कौन जानता है।

खैर दोनों ने यही सोचकर आज की कीमत पर 2 महीने बाद के लिए एक समझौता कर लिया। चूंकि डील तो आज हुई है लेकिन सामान की डेलीवरी दो महीने बाद होगी इसीलिए इसे फॉरवर्ड (Forward) कहा जाता है।

यहाँ पर आप करेंगे तो पता चलेगा कि यहाँ गेहूं के दाम को तय करने वाला फैक्टर उत्पादन है। इसीलिए इसे फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स कहा जा सकता है।

| फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स की समस्याएँ

फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स किसी भी फॉरवर्ड हेजिंग दो व्यक्ति के बीच में हो सकता है लेकिन यहाँ पर समस्या ये होती है कि मान लीजिये कि अगर कांट्रैक्ट साइन हो लेकिन जब समय आए और गेहूं का रेट 20 रुपए से भी कम हो जाये और वो फैक्ट्री वाला उसे लेने से माना कर दें तो क्या होगा।

इसी तरह अगर गेहूं का रेट दो महीने बाद बढ़ कर 30 रुपए हो गया और किसान ने उसे बेचने से मना कर दिया तो। ऐसी स्थिति में बड़ी समस्या आ जाएगी क्योंकि यहाँ बीच में कोई मध्यस्थता नहीं कर रहा है।

कहने का अर्थ ये है कि स्टॉक एक्स्चेंज (Stock exchange) की इसमें कोई भूमिका नहीं होती है। ये बस दो पार्टियों के बीच किया गया एक कांट्रैक्ट है। इसीलिए कांट्रैक्ट होते हुए भी वो पूरा हो ही जाये इसकी कोई गारंटी नहीं होती है।

इसी समस्या को खत्म करने के लिए फ्युचर (Future) और ऑप्शन (Option) लाया गया। यहाँ पर इस तरह की कोई समस्या नहीं होती है क्योंकि ये स्टॉक एक्स्चेंज के देख-रेख में होती है और सब कुछ पारदर्शी तरीके से होता है।

तो कुल मिलाकर यही है फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स (Forward derivatives), उम्मीद है समझ में आया होगा। हम फ्युचर (Future) और ऑप्शन (Option) को अगले लेख में कवर करेंगे। इसे आप ⏬नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

डॉलर के मुकाबले रुपये का वायदा प्रीमियम दशक के निचले स्तर पर

नई दिल्ली: अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 75 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है और डॉलर लगातार नई ऊंचाई पर पहुंच रहा है। इसके मुकाबले रुपये के फॉरवर्ड प्रीमियम में लगातार कमी आई है और यह दशक के निचले स्तर पर पहुंच गया है। जिससे आयातक अगले छह महीने के लिए हेज बढ़ा सकते हैं।

ट्रेजरी प्रतिफल में वृद्धि के कारण इस वर्ष डॉलर/रुपये के आगे के प्रीमियम में गिरावट आई है। फेडरल रिजर्व द्वारा आक्रामक दरों में बढ़ोतरी के कारण अमेरिकी प्रतिफल में वृद्धि हुई आरबीआई की आगे डॉलर की बिक्री, जिसका उद्देश्य तरलता को प्रभावित किए बिना रुपये की अस्थिरता का प्रबंधन करना था, ने मुद्रा के प्रीमियम पर दबाव डाला। 1 साल का डॉलर/रुपया प्रीमियम घटकर 2.25% के करीब आ गया है। जो 2011 के बाद का सबसे निचला स्तर है। नतीजतन, आयातक बचाव के लिए तैयार हैं, मुखबिरों ने कहा।

रुपये की उच्च अस्थिरता और हेजिंग लागत में कमी को ध्यान में रखते हुए, निश्चित रूप से अगले कुछ महीनों के बाद बचाव के लिए कम आकर्षण है। आयातक पांच से छह महीने आगे कवर कर फॉरवर्ड हेजिंग रहे हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट अगले दो महीनों तक जारी रहने की संभावना है।

आयातकों के विपरीत निर्यातक अल्पावधि में हेजिंग कर रहे हैं। डॉलर में अधिक से अधिक कमाई करने के उद्देश्य से वे अधिकतम एक महीने की हेजिंग कर रहे हैं। रुपये की शॉर्ट टर्म फॉरवर्ड यील्ड फिलहाल लॉन्ग टर्म यील्ड से ज्यादा है।

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