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अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश

अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश
(यहां ABP News द्वारा किसी भी फंड में निवेश की सलाह नहीं दी जा रही है. यहां दी गई अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश जानकारी का सिर्फ़ सूचित करने का उद्देश्य है. म्यूचुअल फंड निवेश बाज़ार जोखिम के अधीन हैं, योजना संबंधी सभी दस्तावेज़ों को सावधानी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश से पढ़ें. योजनाओं की NAV, ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव सहित सिक्योरिटी बाज़ार को प्रभावित करने वाले कारकों व शक्तियों के आधार पर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश ऊपर-नीचे हो सकती है. किसी म्यूचुअल फंड का पूर्व प्रदर्शन, आवश्यक रूप से योजनाओं के भविष्य के प्रदर्शन का परिचायक नहीं हो सकता है. म्यूचुअल फंड, किन्हीं भी योजनाओं के अंतर्गत किसी लाभांश की गारंटी या आश्वासन नहीं देता है और वह वितरण योग्य अधिशेष की उपलब्धता और पर्याप्तता से विषयित अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश है. निवेशकों से सावधानी के साथ विवरण पत्रिका (प्रॉस्पेक्टस) की समीक्षा करने और विशिष्ट विधिक, कर तथा योजना में निवेश/प्रतिभागिता के वित्तीय निहितार्थ के बारे में विशेषज्ञ पेशेवर सलाह को हासिल करने का अनुरोध है.)

अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश

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Mutual Funds: क्या है 'फंड ऑफ फंड्स', किन निवेशकों को करना चाहिए निवेश

By: ABP Live | Updated at : 05 Jan 2022 02:55 PM (IST)

Mutual Funds: अगर आप निवेश पर अच्छा रिटर्न चाहते हैं तो म्यूचुअल फंड की 'फंड ऑफ फंड्स' कैटेगरी में इनवेस्ट करना एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है. 'फंड ऑफ फंड्स' म्यूचुअल फंड की ऐसी स्कीम्स हैं जो दूसरी म्यूचुअल फंड स्कीम्स में निवेश करती हैं. 'फंड ऑफ फंड्स' में कंपनी के शेयर या बॉन्ड नहीं होते हैं, फंड ऑफ फंड्स अन्य स्कीम्स की यूनिट होल्ड करते हैं. एक फंड ऑफ फंड्स मैनेजर अपने फंड हाउस या अन्य फंड हाउस की कई स्कीम्स में निवेश कर सकता है.

इन निवेशकों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश हैं फायदेमंद
'फंड ऑफ फंड्स' विशेष अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश तौर पर ऐसे निवेशकों के लिए फायदेमंद है जो धन की कमी के कारण निवेश अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश के अलग-अलग विकल्पों में इनवेस्ट नहीं कर पाते. 'फंड ऑफ फंड्स' के जरिये कम राशि में अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई कर सकते हैं. इसमें निवेश पर अधिक लाभ संभावना अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश बढ़ जाती है.

रुपए की कीमत को अंतरराष्ट्रीय बाजार पर छोड़ देना कितना उचित है?

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तीन साल पहले भारत सहित सभी उभरते हुए बाजारों के लिए एक मुश्किल भरा दौर आया था। इसका कारण अमेरिकी सरकार का ब्याज दर में वृद्धि करना था। इसके चलते दुनिया भर में निवेश किए गए डॉलर अमेरिका में निवेश के लिए वापस लिए जाने लगे थे। इसका जबर्दस्त प्रभाव भारतीय सेंसेक्स पर पड़ा। रुपए की कीमत 55 से गिरकर 68 प्रति डॉलर हो गई। डॉलर को रोकने के लिए भारत सरकार को अपनी ब्याज दर बढ़ानी पड़ी और उसने किसी हद तक गिरते रुपए को संभाला। प्रवासी भारतीयों ने अपना निवेश भारत में ही रखा और अब उसे वापस लेने का समय आ गया है। यह मुद्रा लगभग 26 अरब डॉलर बैठती है। अगर प्रवासी भारतीयों ने डॉलर के पुनर्निवेश की जगह उसे वापस ले ही लिया, तो रुपए की कीमतों में गिरावट निश्चित है। रुपए की कीमत को लेकर कई सवाल उठ सकते हैं, जैसे, रुपए के गिरने से हमारी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आयात-निर्यात पर क्या प्रभाव होगा? वगैरह, वगैरह।

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