डॉलर को क्या प्रभावित करता है

अमेरिकी फेडरल रिजर्व दर जो फरवरी 2022 में शून्य थी वह अब 3.25 फीसदी हो गई है। अमेरिकी बैंकों को दैनिक आधार पर यूएस फेडरल बैंक के लिए एक निश्चित राशि बनाए रखने की आवश्यकता है। वे दूसरे बैंक से ऋण लेते रहते हैं और उस ऋण पर ब्याज दर को फेडरल ब्याज दर कहा जाता है। जब फेडरल बैंक उस ब्याज दर में वृद्धि करता है तो दुनिया के सभी निवेशक, अपने वर्तमान निवेश से पैसा निकालते हैं और यूएस फेड बैंक में निवेश करते हैं क्योंकि यह सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है। इस फेडरल बैंक में केवल यूएसडी में निवेश हो सकता है, मतलब यूएसडी की मांग बढ़ गई। अब यूएसडी की मांग बढ़ने से यूएसडी की कीमतें बढ़नी लगती हैं, जो फिलहाल फेडरल बैंक द्वारा दर बढ़ाने के कारण हो रहा है। अब सवाल उठता है फेडरल क्यों ऐसा कर रहा है, तो जबाब है भारत की तरह वह भी ब्याज दर बढ़ा महंगाई नियंत्रित करना चाहता है। जैसे-जैसे ब्याज दर अधिक होती है लोग बैंकों में जमा बढ़ा देते हैं, निवेश करना शुरू हो जाता है और कर्ज और क्रेडिट कार्ड महंगा हो जाता है लोग कर्ज लेकर खर्च करना कम कर देते हैं जिस कारण बाजार में मुद्रा का प्रचलन कम हो जाता है, मांग कम हो जाती है और कीमत कम हो जाती है। अब यहां जो डॉलर मजबूत हो रहा है उसका कारण हमारा आंतरिक नहीं है एक बड़ा कारण फेडरल बैंक की नीतियां हैं।
शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 14 पैसे टूटकर 82.35 पर
मंगलवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 19 पैसे चढ़कर 82.21 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था.
अमेरिकी मुद्रा की मजबूती और विदेशी कोषों की लगातार निकासी के बीच बुधवार को शुरुआती कारोबार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 14 पैसे की गिरावट के साथ 82.35 पर था. इसके अलावा निवेशकों के बीच जोखिम से बचने की भावना और एशियाई मुद्रा तथा उभरते बाजारों की मुद्राओं में कमजोरी से भी रुपया प्रभावित हुआ.
यह भी पढ़ें
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया, डॉलर के मुकाबले 82.32 पर खुला, और फिर गिरावट के साथ 82.35 पर पहुंच गया. इस तरह रुपया पिछले बंद भाव के मुकाबले 14 पैसे की गिरावट के साथ कारोबार कर रहा था. शुरुआती सौदों में रुपया 82.28 प्रति डॉलर के स्तर तक गया था.
रुपया मंगलवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 19 पैसे चढ़कर 82.21 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था.
इसबीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.23 प्रतिशत बढ़कर 113.48 पर पहुंच गया.
वैश्विक तेल सूचकांक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.67 प्रतिशत गिरकर 93.66 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था.
शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने मंगलवार को शुद्ध रूप से 4,612.67 करोड़ रुपये के शेयर बेचे.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
डॉलर बनाम रुपया | Dollar vs Rupee
अभी कुछ दिन पहले अमेरिका में वित्त मंत्री ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि (dollar vs rupee ) भारत का रुपया गिर रहा है, बोलने की जगह सही तथ्य है कि डॉलर मजबूत हो रहा है। इसके बाद सोशल मीडिया पर उनके इस बयान पर ट्रोल की बाढ़ आ गई। डॉलर मजबूत या रुपया कमजोर के विमर्श में सबसे पहले यह जानना जरुरी है कि रुपए का अवमूल्यन और रुपये के कमजोर होने में क्या अंतर् है। अवमूल्यन किसी अन्य मुद्रा या मुद्राओं के समूह या मुद्रा मानक के सामने किसी देश के रुपए के मूल्य का जानबूझकर नीचे की ओर किया गया समायोजन है। जिन देशों में मुद्रा की एक स्थिर विनिमय दर या अर्ध-स्थिर विनिमय दर होती है, वे इस तरह की मौद्रिक नीति का इस्तेमाल करते हैं। इसे अक्सर आम लोगों द्वारा रुपए का मूल्यह्रास समझ लिया जाता है। अवमूल्यन स्वतंत्र नहीं होता इसका निर्णय बाजार नहीं, किसी देश की सरकार लेती है। यह रुपए के कमजोर होने जिसे मुद्रा का मूल्यह्रास भी कहते हैं की तरह गैर-सरकारी गतिविधियों का परिणाम नहीं बाकायदा सरकार द्वारा विचारित और निर्णीत होता है।
वहीं मुद्रा का मूल्यह्रास एक मुद्रा के मूल्य में, उसकी विनिमय दर बनाम अन्य मुद्राओं के संदर्भ में गिरावट को संदर्भित करता है। मुद्रा का मूल्यह्रास बाजार आधारित होता है इसलिए यह बुनियादी आर्थिक स्थिति, आयात निर्यात और चालू खाता, ब्याज दर के अंतर, मुद्रा स्फीति, विदेशी मुद्रा का भंडार और प्रवाह, राजनीतिक अस्थिरता, या निवेशकों के बीच जोखिम से बचने जैसे कारकों के कारण हो सकता है। जिन देशों की आर्थिक बुनियाद कमजोर होती है , पुराना चालू खाता घाटे में चला आ रहा होता है या मुद्रास्फीति की उच्च दर होती है उन देशों की मुद्राओं में आम तौर पर मूल्यह्रास होता रहता है।
भारत में एक दशक में पहली बार, अमेरिकी डॉलर 2022 की पहली छमाही में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया और उसके मुकाबले रुपए का मूल्य गिरकर एक डॉलर के मुकाबले 82 रुपए तक पहुंच गया। कोरोना डॉलर को क्या प्रभावित करता है के बाद हम संभल रहे थे तभी यूक्रेन युद्ध , कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी, ग्लोबल मंदी की आहट, अमेरिका के फेडरल बैंक ने ब्याज दर बढ़ाना शुरू किया, विदेशी निवेशक पैसा डॉलर सम्पत्तियों में ब्याज दर बढ़ने से उसके रिटर्न रेट बढ़ने के कारण पैसा भारत से निकाल वहां लगाने लगे तो अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये कमजोर होता चला गया। देश पहले से ही उच्च मुद्रास्फीति से जूझ रहा था, अब रुपये की यह गिरावट भी परेशान कर रही है। इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो कहा, “रूस-यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थितियों के सख्त होने जैसे वैश्विक कारक डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने के प्रमुख कारण हैं तथा “ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी वैश्विक मुद्राएं भारतीय रुपये की तुलना में अधिक कमजोर हुई हैं, जिसका मतलब है भारतीय रुपया 2022 में इन मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुआ है” ठीक ही कहा। इन बड़ी इकोनॉमी के अलावा भारत की तुलना में पाकिस्तान बांग्लादेश और श्रीलंका की मुद्राएं तो और तेजी से गिरी हैं, यहां तक कि चीन की अर्थव्यवस्था भी डांवाडोल हुई है।
कुछ चुनिंदा देशों के अलावा डॉलर इंडेक्स की भी तुलना करते हैं। डॉलर इंडेक्स पौंड, यूरो एवं येन सहित दुनिया की 6 प्रमुख देशों की मुद्राओं के एक बास्केट के मुकाबले अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष मूल्य को व्यक्त करता है। यदि सूचकांक बढ़ रहा डॉलर को क्या प्रभावित करता है है, तो इसका मतलब है कि डॉलर बास्केट के मुकाबले मजबूत हो रहा है। 18 अक्टूबर 2021 को 6 प्रमुख मुद्राओं के डॉलर इंडेक्स का मूल्य 94 था जो आज 112 है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व दर जो फरवरी 2022 में शून्य थी वह अब 3.25 फीसदी हो गई है। अमेरिकी बैंकों को दैनिक आधार पर यूएस फेडरल बैंक के लिए एक निश्चित राशि बनाए रखने की आवश्यकता है। वे दूसरे बैंक से ऋण लेते रहते हैं और उस ऋण पर ब्याज दर को फेडरल ब्याज दर कहा जाता है। जब फेडरल बैंक उस ब्याज दर में वृद्धि करता है तो दुनिया के सभी निवेशक, अपने वर्तमान निवेश से पैसा निकालते हैं और यूएस फेड बैंक में निवेश करते हैं क्योंकि यह सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है। इस फेडरल बैंक में केवल यूएसडी में निवेश हो सकता है, मतलब यूएसडी की मांग बढ़ गई। अब यूएसडी की मांग बढ़ने से यूएसडी की कीमतें बढ़नी लगती हैं, जो फिलहाल फेडरल बैंक द्वारा दर बढ़ाने के कारण हो रहा है। अब सवाल उठता है फेडरल क्यों ऐसा कर रहा है, तो जबाब है भारत की तरह वह भी ब्याज दर बढ़ा महंगाई नियंत्रित करना चाहता है। जैसे-जैसे ब्याज दर अधिक होती है लोग बैंकों में जमा बढ़ा देते हैं, निवेश करना शुरू हो जाता है और कर्ज और क्रेडिट कार्ड महंगा हो जाता है लोग कर्ज लेकर खर्च करना कम कर देते हैं जिस कारण बाजार में मुद्रा का प्रचलन कम हो जाता है, मांग कम हो जाती है और कीमत कम हो जाती है। अब यहां जो डॉलर मजबूत हो रहा है उसका कारण हमारा आंतरिक नहीं है एक बड़ा कारण फेडरल बैंक की नीतियां हैं।
इसलिए उनकी बात सही भी है कि भारत में जो डॉलर के मुकाबले रुपया गिर रहा है यह रुपए का अवमूल्यन नहीं, यह सापेक्षिक गिरावट है जिसे रुपए का मूल्य ह्रास कहते हैं। यह मुद्रा बाजार की परिस्थितियों के कारण हुआ है। इस बाजार में ऐसा नहीं है कि रुपया कमजोर हो गया है, यह तो दुनिया की करेंसी में से एक करेंसी के ज्यादा मजबूत होने के कारण बाकी सब अपने आप कमजोर हो जाते हैं। हर देश की विशिष्ट आर्थिक परिस्थिति होती है उसकी खुद की बुनियादी आर्थिक विशेषता होती है, ब्याज दर होता है, राजनीतिक स्थिरता अस्थिरता होती है, निवेशकों के जोखिम के विशिष्ट कारक होते हैं ऐसे में इन देशों का मूल्य ह्रास उनकी अपनी इस विशिष्टता के कारण अलग अलग हो रहा है इसीलिए इस मुद्रा के उथल पुथल में भारत का रुपया भले ही डॉलर के मुकाबले कमजोर दिख रहा हो लेकिन अन्य देशों के स्वतंत्र मूल्य ह्रास के कारण उनके सापेक्ष मजबूत भी हुआ है। इसलिए यह केवल गिरावट नहीं है रुपया कई देशों के मुकाबले मजबूत भी हुआ है जैसा कि वित्त मंत्री ने अपने भाषण में जिक्र किया। इसलिए इसे सिर्फ एक कोण से नहीं देखा जाना चाहिए, बहुआयामी दृष्टिकोण लगाना पड़ेगा।
भारत जैसा विकासशील देश ज्यादातर तेल, गैस, धातु, इलेक्ट्रॉनिक्स, हैवी मशीनरी, प्लास्टिक आदि के मामले में आयात पर निर्भर करता है और इसका भुगतान अमेरिकी डॉलर में करना पड़ता है। रुपये के मूल्य में गिरावट के साथ, देश को पहले की तुलना में उसी वस्तु के लिए उसी डालर मूल्य के मुकाबले अधिक भुगतान करना पड़ता है। इससे कच्चे माल और उत्पादन लागत में वृद्धि होगी जिसकी अंतत: ग्राहकों पर ही मार पड़ेगी। आयात से लिंक हर चीजें प्रभावित होंगी। हालांकि कमजोर घरेलू मुद्रा निर्यात को बढ़ावा देती है क्योंकि विदेशी खरीददार की डॉलर में क्रय शक्ति बढ़ जाती है लेकिन कमजोर वैश्विक मांग और लगातार अस्थिरता के मौजूदा परिदृश्य में इसका लाभ भारत को मिलता नहीं दिख रहा है। इस बीच देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी गिरावट आई है, देश का व्यापार घाटा भी बढ़ा है। रुपये को संभालने के लिए आरबीआई ने खुले मार्किट में डॉलर की बिक्री भी की है, लेकिन अभी तक इसका कोई अधिक प्रभाव दिख नहीं रहा है।
सरकार इसे वैश्विक कारक बोलकर पल्ला नहीं झाड़ सकती या डॉलर बेच या ब्याज दर बढ़ा मुकाबला नहीं कर सकती क्योंकि अन्तत: यह ऋण भी महंगा कर देता है । यदि अपना घर मजबूत होता तो ऐसी डॉलर की मजबूती की आंधियां हमारे रुपए को प्रभावित नहीं कर पाती। यदि हम आयात को कम कर दें यहां तक कि निर्यात ज्यादा हो जाए या दोनों आसपास हो जाएं, पेट्रोल और गैस पर निर्भरता कम कर इलेक्ट्रिक, एथेनॉल, ग्रीन हाइड्रोजन, सौर और परमाणु ऊर्जा के प्रयोग से अपना तेल और गैस बिल कम कर दें, आत्मनिर्भर भारत मेक इन इंडिया पर तेजी से काम करें, डॉलर का आॅउटफ्लो कम कर इनफ्लो पर काम करें, देशों से रुपए या अन्य मजबूत मुद्राओं में सौदे सेटलमेंट की बात करें तब जाकर हम अमेरिकी डॉलर को विश्व बाजार में नियंत्रित कर सकते हैं, नहीं तो वैश्विक मान्य करेंसी के रूप में उसकी मांग हमेशा बनी रहेगी और बेहतर करने के बावजूद भी किसी अन्य कारण से उसकी मांग बढ़ गयी तो हमारी सारी मेहनत धरी की धरी रह जायेगी और रुपया गिर जायेगा। इसलिए देशों को डॉलर को एकाधिकारी मुद्रा से बाहर लाना होगा।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।
US Fed द्वारा ब्याज दर बढ़ाने से कैसे प्रभावित होते हैं दुनिया के बाजार, भारत पर क्या पड़ता है असर
US Fed Rate Hike Impact on India अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने का सीधा असर विकासशील देशों के बाजारों पर पड़ता है। इससे अमेरिका में बॉन्ड यील्ड पर सकारात्मक प्रभाव होता है और निवेशक अपने ही देश में पूंजी लगाने के लिए प्रेरित होते हैं।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। हाल ही में अमेरिका में महंगाई के आंकड़े जारी हुए। इनमें अनुमान से कम गिरावट देखी गई, जिसके बाद यह संभावना बढ़ गई है कि अमेरिका का फेडरल रिजर्व बैंक (अमेरिका का केंद्रीय बैंक) जल्द ब्याज दरों में इजाफा कर सकता है। इस चिंता के कारण अमेरिका के साथ-साथ भारतीय शेयर बाजार में भी बड़ा उतार- चढ़ाव देखने को मिल रहा है।
ऐसे में बहुत से लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि आखिर दुनिया के शेयर बाजार अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने से प्रभावित होते हैं? सबसे पहले बात भारत की।
भारत और अमेरिका के बाजार में अंतर
अमेरिका एक विकसित देश है। वहां पर विकास की सीमित संभावनाएं हैं। दूसरी तरफ भारत एक विकासशील देश है और यहां विकास की असीमित संभावनाएं हैं। विकास की सीमित संभावना होने के कारण अमेरिका में ब्याज दरें भारत की तुलना काफी कम है। इसी का फायदा उठाकर निवेशक अमेरिका के बैंकों से पैसा उठाकर भारतीय बाजारों में अधिक रिटर्न के लिए निवेश करते हैं।
अमेरिका के बाजार निवेश को कैसे प्रभावित करते हैं?
ब्याज दर बढ़ने का प्रभाव
1. अमेरिकी में ब्याज दरों में इजाफा होना भारत को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के बाजारों को प्रभावित करता है। ब्याज दर बढ़ने के कारण निवेशकों को अधिक ब्याज का भुगतान करना होता है, इस कारण उनका रिटर्न कम हो जाता है और भारतीय बाजार उन्हें कम आकर्षक लगते हैं।
2. अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने के कारण बॉन्ड यील्ड भी बढ़ जाती है, जो वहां के निवेशकों को उनकी अपने देश में निवेश करने के लिए प्रेरित करती है।
3. ब्याज दर बढ़ने का नकारात्मक प्रभाव रुपये पर पड़ता है और इससे डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरती है। इससे विदेश निवेशकों का रिटर्न भी कम हो जाता है।
4. ब्याज दरों में होने वाले इस बदलाव से लंबी अवधि के विदेशी निवेशक प्रभावित नहीं होते हैं, वे बाजार में बने रहते हैं।
ब्याज दर घटने का प्रभाव
ऐसा नहीं है कि अमेरिका के बाजार भारत पर हमेशा नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जब भी अमेरिका में ब्याज दर घटी है तो इसका सकारात्मक प्रभाव भी होता है। उदाहरण के लिए 30 अक्टूबर 2019 में अर्थव्यवस्था को मंदी में जाने से रोकने के लिए फेड ने 25 आधार अंक अमेरिका में ब्याज दर घटाई थी, जिसके अगले ही दिन सेंसेक्स रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया था।
डॉलर को क्या प्रभावित करता है
अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया संसाधन
हमारे ब्रेन टूर पर जाएँ
देखें कि कैसे अल्ज़ाइमर मस्तिष्क को प्रभावित करता है।
Alzheimer’s Association के बारे में
अल्ज़ाइमर देखभाल, सहायता एवं अनुसंधान के प्रति समर्पित विश्व के अग्रणी स्वैच्छिक स्वास्थ्य संगठन के रूप में, Alzheimer’s Association अल्ज़ाइमर रोग एवं अन्य डिमेंशिया रोगों से पीड़ित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने हेतु प्रयास करता है। हम महत्वपूर्ण शोध वित्तपोषण प्रदान करते हैं; शिक्षण व संसाधन उपलब्ध कराते हैं; जागरूकता फैलाते हैं; और सरकारी, निजी एवं गैर-लाभकारी संस्थाओं की भागीदारी के साथ वैश्विक स्तर पर महामारी के रूप में व्याप्त अल्ज़ाइमर के समाधान के समर्थक हैं।
Alzheimer’s Association का मिशन है अनुसंधान को आगे बढ़ाने के माध्यम से अल्ज़ाइमर रोग का उन्मूलन; सभी प्रभावित लोगों को देखभाल प्रदान करना और देखभाल को परिष्कृत करना; और मस्तिष्क स्वास्थ्य में सुधार के माध्यम से डिमेंशिया के जोखिम को कम करना।
हमारा विज़न है अल्ज़ाइमर रोग से मुक्त विश्व।
हम उन लोगों को शिक्षण व संसाधन उपलब्ध कराते हैं जो अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया से पीड़ित हैं।
अनुसंधानकर्ता स्पॉटलाइट
Alzheimer’s Association के 2013 के अनुसंधान अनुदान के वित्तपोषण की मदद से, डोलोरेस ई. गैलेगर थॉम्पसन (Dolores E. Gallagher-Thompson), पीएचडी, और स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के उनके साथी एक वेब-आधारित देखभालकर्ता सहायता उपकरण (caregiver support tool).विकसित करने हेतु विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इस टीम को भारत के बंगलौर में, जहाँ इंटरनेट की पहुँच अधिक है, 430 उपयोगकर्ताओं के साथ एक परीक्षण संचालित किए जाने की उम्मीद है और निमहांस (NIMHANS) अल्ज़ाइमर रिसर्च सेंटर के साथ सहयोग प्राप्त किया गया है।
हम अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया के अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय हैं।
- अल्ज़ाइमर अनुसंधान में विश्व के सबसे बड़े गैर-लाभकारी वित्तपोषक के रूप में, Alzheimer’s Association अधिक प्रभावशाली उपचारों व, अंततः पूर्ण इलाज ढूँढ़ने के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे मस्तिष्क स्वास्थ्य एवं रोग के बचाव संबंधी हमारे ज्ञान में गहराई आएगी।
- Alzheimer’s Association ने 350 करोड़ डॉलर से अधिक की धनराशि अल्ज़ाइमर अनुसंधान के लिए आवंटित की है; दुनिया भर में 2,300 से अधिक वैज्ञानिकों ने हमारे International Research Grant Program (अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान सहायता कार्यक्रम).के माध्यम से वित्तपोषण प्राप्त किया है। और Italian National Centre for Alzheimer’s Disease (इटैलियन नेशनल सेंटर फ़ॉर अल्ज़ाइमर्स डिज़ीज), > की सहभागिता के साथ Alzheimer's Association ने Global Alzheimer’s Association Interactive Network (GAAIN) (ग्लोबल अल्ज़ाइमर्स एसोसिएशन इंटरेक्टिव नेटवर्क (GAAIN)), को शुरू किया है, जो कि अल्ज़ाइमर एवं डिमेंशिया अनुसंधान को गति प्रदान करने हेतु एक साझा तंत्रिकाविज्ञान ज्ञान-संग्रह केंद्र है।
- Alzheimer's Association वर्ल्ड वाइड अल्ज़ाइमर्स डिज़ीज न्यूरोइमेज़िंग इनीशिएटिव (WW-ADNI) का एक प्रायोजक है, जो दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान समुदायों के साथ अनुसंधानों को साझा करने हेतु सहयोग से कार्य करता है और निदान के मानकों को स्थापित करता है। प्रत्येक WW-ADNI साइट से ब्रेन इमेज़िंग स्कैनों संबंधी जानकारी को इकट्ठा किया जाता है। European ADNI (E-ADNI) (यूरोपियन एडीएनआई [E-ADNI]) प्रयास के बारे में अधिक जानकारी आप Centroalzheimer.org पर प्राप्त कर सकते हैं।.
- वार्षिक Alzheimer's Association International Conference ® (AAIC ® ), के मेजबान के रूप में हम विचारों और नए निष्कर्षों को साझा करने हेतु डिमेंशिया अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व के अग्रणी व्यक्तियों एवं संस्थाओं को एक साथ एक मंच पर लाते हैं। विश्व के अलग-अलग स्थानों पर होने वाला यह आयोजन 65 से अधिक देशों के हजारों अनुसंधानकर्ताओं को आपस में जोड़ता है। ,के गठन द्वारा, हम उन पेशेवरों के समक्ष आपस में जुड़ने एवं साझेदारी करने की एक रूपरेखा उपलब्ध कराते हैं जो अल्ज़ाइमर एवं डिमेंशिया विज्ञान के प्रति समर्पित हैं।
- हमारे द्वैमासिक वैज्ञानिक जर्नल Alzheimer's & Dementia, > में आलेख व अध्ययन प्रकाशित होते हैं जो डिमेंशिया के कारणों, जोखिमों, पता लगाने, रोग-सुधार करने वाले उपचारों एवं बचाव पर केंद्रित होते हैं।
हम कार्य करते हैं
- अल्ज़ाइमर रोग इतनी विकराल समस्या है कि किसी एक संस्था या सरकार के प्रयास नाकाफी हैं। हम अल्ज़ाइमर को वैश्विक महामारी के रूप में लेते हुए जागरूकता फैलाने हेतु कार्य करते हैं और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों, जिनमें गैर-लाभकारी संगठन, सरकारी एवं निजी संस्थानों के अग्रणी लोग शामिल हैं, के साथ आपसी सहयोग से काम करते हैं।
- हम पैसा जुटाते हैं ताकि अल्ज़ाइमर अनुसंधान, देखभाल एवं सहायता में निवेश करते रहें। हमारा अंतर्राष्ट्रीय फ़ंडरेज़र, Alzheimer's Association The Longest Day®, विश्व भर की टीमों को एक साथ एक मंच पर लाता है ताकि अल्ज़ाइमर से जूझ रहे लोगों को सम्मानित किया जाए और साथ ही अभियान के डॉलर को क्या प्रभावित करता है लिए पैसा जुटाया जाए। जानें कि कैसे भागीदारी हो सकती है।
- हम अल्ज़ाइमर से ग्रस्त लोगों के अधिकारों एवं आवश्यकताओं के पैरोकार हैं; हम इसके लिए यूनाइटेड स्टेट्स में अल्ज़ाइमर रोग के चलते होने वाली आर्थिक एवं भावनात्मक लागतों के बारे में चुने हुए पदाधिकारियों को अवगत कराते हैं, और आवाज़ उठाते हैं कि अल्ज़ाइमर अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिकी सरकार अधिक धनराशि उपलब्ध कराए।
Alzheimer's Association का इतिहास
अल्ज़ाइमर संबंधी तथ्य
पहले से ही विशाल जनसंख्या वाला होने के साथ-साथ जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, भारत में अल्ज़ाइमर तेजी से एक आम रोग बनता जा रहा है। डिमेंशिया वाले 60 प्रतिशत से अधिक लोग भारत जैसे निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों से हैं। यह संख्या 2050 तक 70% से अधिक हो जाएगी।
Alzheimer's Association का गठन 1980 में जीरोम स्टोन और ऐसे कई परिवारों के प्रतिनिधियों द्वारा किया गया था जो मानते थे कि अल्ज़ाइमर रोग से ग्रस्त लोगों की सहायता के लिए एक गैर-लाभकारी संगठन की आवश्यकता है।
लगभग तीन दशक से अधिक के बाद Alzheimer’s Association की विश्व भर में अल्ज़ाइमर से पीड़ित लाखों लोगों तक पहुँच है। अल्ज़ाइमर और अन्य डिमेंशिया रोगियों के हितों हेतु समर्पित विश्व के अग्रणी स्वैच्छिक स्वास्थ्य संगठन होने के रूप में, Alzheimer’s Association अल्ज़ाइमर अनुसंधानों को आगे बढ़ाने, कार्यक्रमों और रोगग्रस्त सभी लोगों की देखभाल में सुधार लाने में सबसे आगे है।
अमेरिका स्थित Alzheimer's Association के सह-संस्थापक होने के अलावा, श्री स्टोन Alzheimer's Disease International (अल्ज़ाइमर डिजीज़ इंटरनेश्नल) के मानद वाइस प्रेज़िडेंट के रूप में भी अपनी सेवाएँ देते हैं।.
डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ रुपया तो क्या करेगा आरबीआई? जानिए, कैसे संभलेगी घरेलू मुद्रा
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में सोमवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 36 पैसे टूटकर 78 रुपये 29 पैसे के स्तर पर आ गया. इस बीच, वायदा कारोबार में ब्रेंट क्रूड भी 1.46 फीसदी गिर गया. इसके साथ ही, सोमवार को वैश्विक बाजार में कमजोरी की वजह से सेंसेक्स में भी करीब 1400 अंकों की गिरावट दर्ज की गई.
नई दिल्ली : सोमवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले करीब 36 पैसे टूट गया. शुरुआती कारोबार में अपने सबसे निचले स्तर 78 रुपये 29 पैसे पर आ गया. हालांकि, शुक्रवार को भी इसमें गिरावट दर्ज की गई थी और 19 पैसे की टूटकर यह 77 रुपये 93 पैसे के स्तर पर बंद हुआ था. हालांकि, 2013 में भी रुपये में भारी गिरावट आई थी. इस बीच सवाल यह पैदा होता है कि रुपये में जब गिरावट दर्ज होती है, तो फिर भारतीय रिजर्व बैंक क्या करता है? आइए, जानते हैं.
कितना गिरा रुपया
विदेश में अमेरिकी डॉलर की मजबूती और जोखिम से बचने के ट्रेंड से रुपया सोमवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 36 पैसे टूटकर अपने सबसे निचले स्तर 78.29 पर आ गया. विदेशी मुद्रा कारोबारियों की मानें तो कमजोर एशियाई मुद्राएं, घरेलू शेयर बाजार में गिरावट और विदेशी पूंजी की लगातार निकासी से भी निवेशकों की भावनाएं प्रभावित हुईं. सोमवार की सुबह अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 78.20 पर खुला और फिर अपनी जमीन खोते हुए 78.29 तक गिर गया. रुपये का यह स्तर शुक्रवार के बंद भाव के मुकाबले 36 पैसे की गिरावट है. इससे पहले, शुक्रवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 19 पैसे टूटकर 77.93 पर बंद हुआ था.
क्या करता है आरबीआई
बाजार से जुड़े कुछ विशेषज्ञों की मानें तो आरबीआई बीच-बीच में रुपये को डॉलर के मुकाबले मजबूत करने की कोशिश करता रहता है. केंद्रीय बैंक आमतौर पर करेंसी मार्केट में उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए स्पॉट मार्केट (हाजिर बाजार) में हस्तक्षेप करता है. विशेषज्ञों का कहना है कि जब डॉलर के मुकाबले रुपये में आ रही गिरावट को रोका नहीं जा सकता. उनका कहना है कि 2013 में रुपये में भारी गिरावट आई थी, तब आरबीआई ने बड़ी तेजी के साथ हाजिर बाजार में हस्तक्षेप किया था.
क्यों कमजोर हुआ रुपया
ब्रेंट क्रूड में गिरावट, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और वैश्विक बाजारों की गिरावट की वजह से सोमवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो गया. वायदा कारोबार में ब्रेंट क्रूड डॉलर को क्या प्रभावित करता है 1.46 फीसदी गिरकर 120.23 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था. इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.30 प्रतिशत बढ़कर 104.45 पर पहुंच गया.