एक व्यापार

पूंजी बाजार

पूंजी बाजार
Additional Information पूंजी बाजार: पूंजी बाजार एक ऐसा स्थान है जहां अंशो (शेयर्स), बॉन्ड्स, ऋणपत्रों, ऋण उपकरणों और ई टी एफ जैसे वित्त पोषण उपकरणों का व्ययसाय किया जा सकता है। यह निजी नागरिकों, व्यवसायों और सरकारों के लिए धन जुटाने का एक तरीका है।

पूंजी बाजार - Capital market

पूंजी बाजार भारतीय वित्तीय प्रणाली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण खण्ड है। यह कंपनियों को उपलब्ध एक ऐसा बाजार है जो उनकी दीर्घावधिक निधियों की जरूरतों को पूरा करता है। यह निधियां उधार लेने और उधार देने की सभी सुविधाओं पूंजी बाजार और संस्थागत व्यवस्थाओं से संबंधित है। अन्य शब्दों में, यह दीर्घावधि निवेश करने के प्रयोजनों के लिए मुद्रा पूंजी जुटाने के कार्य से जुड़ा है। इस बाजार में कई व्यक्ति और संस्थाएं (सरकार सहित) शामिल हैं जो दीर्घावधि पूंजी की मांग और आपूर्ति को सारणीबद्ध करते हैं और उसकी मांग करते हैं। दीर्घावधि पूंजी की मांग मुख्य रूप से निजी क्षेत्र विनिर्माण उद्योगों, कृषि क्षेत्र, व्यापार और सरकारी एजेंसियों की तरफ से होती है। जबकि पूंजी बाजार के लिए निधियों की आपूर्ति अधिकतर व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट बचतों, बैंकों, बीमा पूंजी बाजार कंपनियां, विशिष्ट वित्त पोषण एजेंसियों और सरकार के अधिशेषों से होती है।

भारतीय पूंजी बाजार स्थूल रूप से गिल्ट एज्ड बाजार और औद्योगिक प्रतिभूति बाजार में विभाजित है -

उत्कृष्ट बाजार: सरकार और अर्द्ध-सरकारी प्रतिभूतियों से संबंधित है जिसे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई). का समर्थन प्राप्त है। सरकारी प्रतिभूतियां सरकार द्वारा जारी की गई बिक्री योग्य ऋण लिखते हैं, जो इसकी वित्तीय जरुरतों को पूरा करती हैं। 'उत्कृष्ट' शब्द का अर्थ है 'सर्वोत्तम क्वालिटी । इसी कारण सरकारी प्रतिभूतियों को बाकीदारी का कोई जोखिम नहीं उठाना पड़ता और इनसे काफी मात्रा में नकदी प्राप्त होती है (क्योंकि इसे बाजार में चालू मूल्यों पर बड़ी आसानी से बेचा जा सकता है।) भारतीय रिजर्व बैंक के खुले बाजार संचालन की ऐसी प्रतिभूतियों में किए जाते हैं।

औद्योगिक प्रतिभूति बाजार: ऐसा बाजार है जो कंपनियों की इक्विटियों और ऋण-पत्रों (डिबेंचरों) का लेन-देन करता है। इसे आगे प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार में विभाजित किया गया है।

प्राथमिक बाजार (नया निर्गम बाजार):- यह बाजार नई प्रतिभूतियों अर्थात् ऐसी प्रतिभूतियां जो पहले उपलब्ध नहीं थी और निवेश करने वाली जनता को पहली बार पेश की गई हैं, का लेन-देन करता है। यह बाजार शेयरों और डिबेचरों के रूप में नए सिरे से पूंजी जुटाने के लिए है। यह निर्गमकर्ता कंपनी को नया उद्यम शुरू करने अथवा मौजूदा उद्यम का विस्तार करने अथवा उसमें विविधता लाने के लिए अतिरिक्त धनराशि प्रदान करता है,

और इस प्रकार कंपनी के वित्त पोषण में इसका योगदान प्रत्यक्ष है। कंपनियों द्वारा नई पेशकश या तो प्रारम्भिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) अथवा राइट्स इश्यु के रूप में की जाती हैं।

द्वितीयक बाजार शेयर बाजार (पुराना निर्गम बाजार अथवा शेयर बाजार ):- यह वर्तमान कंपनियों की प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री का बाजार है। इसके तहत प्रतिभूतियों का लेन-देन प्राथमिक बाजार में जनता को पहले इनकी पेशकश करने और/अथवा शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने के बाद ही किया जाता है। यह एक संवेदी बेरोमीटर है और विभिन्न प्रतिभूतियों के मूल्यों में उतार-चढ़ाव के माध्यम से अर्थव्यवस्था की प्रवृत्तियों को परिलक्षित करता है। इसे "व्यक्तियों को एक निकाय, चाहे निगमित हो अथवा नहीं,

जो प्रतिभूतियों की खरीद बिक्री और लेन-देन के व्यवसाय में सहायता देना, उसे विनियमित अथवा नियमित करने के लिए गठित किया गया है" के रूप में परिभाषित किया गया है। शेयर बाजार में सूचीबद्धता शेयर धारकों को शेयर की कीमतों में घट-बढ़ की कारगार ढंग से निगरानी करने में समर्थ बनाती है। इससे उन्हें इस संबंध में विवकेपूर्ण निर्णय लेने में मदद मिलती है कि क्या वे अपनी धारिताओं को बनाए रखें अथवा बेच दे अथवा आगे और भी संचित कर लें। लेकिन शेयर बाजार प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध कराने के लिए निर्गमकर्ता कंपनियों को कई निर्धारित मानदण्डों और प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।

भारत में, पूंजी बाजार आर्थिक कार्य विभाग वित्त मंत्रालय के पूंजी बाजार प्रभाग द्वारा विनियमित किया जाता है।

यह प्रभाग प्रतिभूति बाजरों (अर्थात् शेयर, ऋण और व्युत्पन्न) की सुव्यवस्थित संबृद्धि और विकास और साथ ही साथ निवेशकों के हितों की सुरक्षा से संबंधित नीतियां तैयार करने के लिए जिम्मेदार है। विशेष रूप से, यह निम्नलिखित के लिए जिम्मेदार है

(i) प्रतिभूति बाजारों में संस्थागत सुधार,

(ii) विनियामक और बाजार संस्थाओं की स्थापना,

(iii) निवेशक सुरक्षा तंत्र को मजबूत बनाना, और

(iv) प्रतिभूति बाजारों के लिए सक्षम विधायी ढांचा प्रदान करना, जैसे कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (सेबी अधिनियम 1992 ); प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956; और निक्षेपागार (डिपाजिटरी) अधिनियम, 1996. यह प्रभाग इन विधानों और इनके तहत बनाए गए नियमों की प्रशासित करता है।

पूंजी बाजार से मिलेनियल्स का परिचय, जानिए कैसे होता है निवेश

मुंबई- पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय शेयर बाजार निवेशकों की विस्तृत श्रृंखला के निवेश से गुलजार रहा है। शेयर बाजार में निवेश पूंजी बाजार में निवेशकों की अपेक्षाकृत तेजी से बढ़ती संख्या की एक असाधारण विशेषता मिलेनियल्स द्वारा निभाई गई भूमिका है। कैलेंडर वर्ष 2020 में, भारत में डीमैट खातों में 10 मिलियन से अधिक की वृद्धि हुई और इस इजाफे का मुख्य श्रेय वास्तव में युवाओं को जाता है।

इक्विटी निवेश में मिलेनियल्स की बढ़ी हुई दिलचस्पी भारत के पूंजी बाजारों को और अधिक गहरा कर सकती है, क्योंकि यह नया समूह पारंपरिक कम जोखिम, कम रिटर्न देने वाली संपत्ति के मुकाबले अपने निवेश में विविधता पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। उन्नत तकनीकों के साथ, नए जमाने की स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियां स्मार्ट निवेशकों का एक समुदाय बना रही हैं। एंजल वन लिमिटेड के चीफ ग्रोथ ऑफिसर, प्रभाकर तिवारी ने यहाँ उन कुछ महत्वपूर्ण कारकों का उल्लेख किया है, जो स्मार्ट निवेशकों के समुदाय को सहायता और गति प्रदान कर रहे हैं।

मिलेनियल्स नए जमाने की तकनीकों को अपनाने के प्रति मुखर हैं:

फिनटेक क्रांति के युग में, स्मार्टफोन से नियंत्रित एडवांस्‍ड और बेहतरीन एप की मदद से परिसंपत्ति प्रबंधन, निवेश, सुरक्षा विश्लेषण और पोर्टफोलियो विविधीकरण का काम पूरा किया जा सकता है। नवीनतम तकनीकों के प्रति मिलेनियल्स की ग्रहणशील प्रकृति के कारण उन्होंने अपने निवेश को आगे बढ़ाने के लिए कई नवीन तरीके खोजे हैं और जोखिम मुक्त परिसंपत्तियों के मुकाबले वे अपने निवेश को समय के साथ बढ़ाने में सफल रहे हैं।

मिलेनियल्स विश्वसनीय जानकारी के आधार पर निवेश के फैसले लेते हैं:

सुझावों पर भरोसा करने के बजाय, मिलेनियल्स निवेश निर्णय लेने से पहले जानकारी की विश्वसनीयता चाहते हैं। परिष्कृत उपकरणों (नए जमाने के ब्रोकरेज हाउसों द्वारा प्रदान किए गए) की उपलब्धता के साथ, जो मौलिक और तकनीकी विश्लेषण तक आसान पहुंच प्रदान करते हैं, निवेश निर्णय लेने की समग्र प्रक्रिया पहले से कहीं अधिक तेज और अधिक विश्वसनीय हो गई है।

निवेश सेवाओं की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है:

पिछले एक दशक में शेयर बाजार में निवेश की पूरी प्रक्रिया में बहुत बदलाव आया है। एआई और ब्लॉकचैन ने तेज सेटलमेंट, रियल टाइम निगरानी, बेहतर जानकारी और शानदार सुरक्षा उपायों के साथ ट्रेडिंग इको-सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए बहुत सारे रास्ते खोले हैं। इसके अलावा, ब्रोकर्स द्वारा अपनाए गए संचालन की पारदर्शिता ने यह सुनिश्चित किया है कि उनके ग्राहकों को सेवाओं की सर्वोत्तम गुणवत्ता की पेशकश की जाती है। इससे नए जमाने के निवेशकों में ज्‍यादा से ज्यादा भरोसा पैदा होता है।

बाजारों, कंपनियों और शेयरों से संबंधित शोध और डेटा पहले से कहीं अधिक सुलभ है:

एनालिटिक्स के कारण सूचना और शोध की संपूर्ण उपलब्धता और गुणवत्ता में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हुई है। मिलेनियल्स के पास अब प्राथमिक और तकनीकी विश्लेषण और ऐसी जानकारी की व्याख्या तक अप्रतिबंधित पहुंच है। इसके अलावा, कई थर्ड पार्टी सेवाओं, जैसे 1) स्मॉलकेस: स्टॉक की एक पूर्व-निर्धारित श्रृंखला, 2) स्ट्रीक: सरलीकृत तकनीकी विश्लेषण, 3) सेंसिबुल: सरलीकृत विकल्प ट्रेडिंग, को अब ब्रोकरेज हाउस ने एकीकृत किया है, जिसकी पेशकश ग्राहकों को की जाती है ताकि वे अपने संपूर्ण स्टॉक ट्रेडिंग अनुभव में सुधार करें।

लाखों मिलेनियल्स विभिन्न उपकरणों के माध्यम से भारतीय शेयर बाजारों में निवेश कर रहे हैं। निवेशकों का यह वर्ग कहीं अधिक शिक्षित है, और इक्विटी निवेश में अस्थिरता को बेहतर ढंग से समझता है। वे बाजार के बारे में अपनी जानकारी को और बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं और निवेश निर्णय लेने के लिए विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करने के लिए उपलब्ध तकनीकों का सर्वोत्तम उपयोग करते हैं। देश में स्मार्ट निवेशकों के इस समुदाय द्वारा रिटेल निवेशकों की स्थिति को सकारात्मक रूप से मजबूत करने की उम्मीद है। साथ ही यह बिना किसी संदेह के शेयर बाजार में निवेश करने के लिए नए जमाने के निवेशकों की एक पूरी पीढ़ी तैयार कर सकता है।

पूंजी बाजार में तब से अब तक ज्यादा अंतर नहीं

तीन दशक पहले औद्योगिक लाइसेंसिंग के खात्मे और व्यापार एवं विनिमय दर नीति में बदलाव वास्तव में केंद्र सरकार और निजी क्षेत्र के रिश्तों में एक बड़ा बदलाव था। इस बदलाव के बाद अन्य नीतियों एवं संस्थानों में परिवर्तन की आवश्यकता पड़ी जिनमें सबसे गहन है पूंजी बाजार और वित्तीय क्षेत्र के परिचालन से जुड़े बदलाव।

वित्तीय क्षेत्र में बदलाव की बुनियाद है बजट से पूंजी बाजार को होने वाली निवेश फंडिंग में बड़ा बदलाव जहां सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) में निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र की हिस्सेदारी में काफी इजाफा हुआ और वह सन 1980 के दशक के 18.9 फीसदी से बढ़कर 2019-20 में समाप्त दशक में 36.7 फीसदी हो गया। तुलनात्मक रूप से देखें तो जीएफसीएफ में सरकारी क्षेत्र की हिस्सेदारी 1980 के दशक के 50 फीसदी से घटकर 2019-20 में समाप्त दशक में 23.5 रह गई। सरकारी क्षेत्र में सरकारी उपक्रम जो निवेश में करीब आधी हिस्सेदारी रखते हैं, अब वे बाजार फंडिंग पर अधिक निर्भर हैं। जीएफसीएफ में निजी कॉर्पोरेट हिस्सेदारी बढऩे की एक और वजह बुनियादी निवेश में निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी भी है। उदारीकरण के पहले के दौर में इस क्षेत्र में ज्यादातर बजट की फंडिंग वाली सरकारी योजनाएं थीं। अब निजी क्षेत्र के पास नवीकरणीय ऊर्जा की पूरी क्षमता है, ताप बिजली की करीब 40 फीसदी क्षमता उसके पास है और वह करीब 1,000 निजी-सार्वजनिक भागीदारी परियोजनाओं में शामिल है। इनमें से अधिकांश सड़क और बंदरगाह परियोजनाएं हैं। जीएफसीएफ में निजी कंपनियों की भागीदारी में इजाफे का अर्थ पूंजी बाजार के जरिये संसाधनों में बढ़ोतरी भी होना चाहिए। उदारीकरण के पहले इसके लिए पूंजी नियंत्रक की मंजूरी की जरूरत होती थी लेकिन अब यह पूरी तरह बदल चुका है। उदारीकरण के बाद नियंत्रक का पद समाप्त हो गया और निवेशक संरक्षण का दायित्व एक स्वतंत्र नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं नियामक बोर्ड (सेबी) के पास आ गया।

निजी कंपनियों द्वारा शेयर जारी करना आसान होने के कारण शेयर कारोबार भी आसान हो गया। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना के बाद स्क्रीन आधारित कारोबार और शेयरों का डिमटीरियलाइजेशन होने से उदारीकरण के पहले के अनेक कागजात पर हस्ताक्षर करने और शेयर प्रमाणपत्र जारी करने की थकाऊ प्रक्रिया से निजात मिली। सन 1993 में उदारीकरण ने म्युचुअल फंड बाजार को निजी परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों के लिए खोल दिया। इस तरह के फंड केप्रबंधन वाली परिसंपत्ति सन 1990-91 के जीडीपी के 4.5 फीसदी से बढ़कर अब 16 फीसदी हो चुकी है।

परंतु शायद उदारीकरण के युग का सबसे बड़ा बदलाव वित्तीय मध्यवर्ती क्षेत्र को निजी संस्थाओं के लिए खोलने से आया। सन 1993 में बैंकिंग क्षेत्र को निजी बैंकों के लिए खोल दिया गया और कुल बैंक जमा में उनकी हिस्सेदारी उस वक्त के चार फीसदी से बढ़कर अब 30 फीसदी से अधिक हो चुकी है। इसके साथ ही गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान (आवास वित्त कंपनियां) पूंजी बाजार के अहम कारक बन गए हैं और वाणिज्यिक ऋण में उनकी हिस्सेदारी 16 फीसदी है। इसके बावजूद उदारीकरण के साथ निजी क्षेत्र के लिए वित्तीय मदद का एक और स्रोत प्रत्यक्ष विदेशी और पोर्टफोलियो निवेश के रूप में सामने आया। मौजूदा दशक में वित्तीय तंत्र दूरसंचार और इंटरनेट के प्रसार से बुरी तरह प्रभावित रहा। इस दौरान इंटरनेट बैंकिंग और डिजिटल भुगतान ने जोर पकड़ा।

वित्तीय तंत्र का यह विस्तार वित्तीय सेवाओं के सकल मूल्यवद्र्धन में महसूस किया जा सकता है जो 2019-20 में 10.5 लाख करोड़ रुपये रहा जो बचतकर्ताओं और निवेशकों द्वारा वित्तीय बिचौलियों को चुकाए गए शुल्क से एकत्रित हुई। यह सकल वित्तीय बचत का 25 फीसदी रहा। यही कारण हैकि आज बाजार पूंजीकरण के मामले में शीर्ष 10 में से पांच कंपनियां वित्तीय क्षेत्र की हैं।

इस क्षेत्र में स्पष्ट बदलाव आया है। परंतु सुधार का एजेंडा पूरा नहीं हुआ है। एक मसला जो दशकों से लंबित है वह है सरकारी बैंकों की स्थिति। वे भारी पैमाने पर फंसे हुए कर्ज की चपेट में हैं। इसके लिए कुछ हद तक पीपीपी परियोजनाओं में भागीदारी भी वजह है। कुछ हिस्सा दीर्घकालिक फंडिंग की वजह से भी है जो बैंकों के सामान्य ऋण से काफी अलग होती है। हमें वित्त मंत्रालय और सरकारी बैंकों के बीच दूरी की जरूरत है पूंजी बाजार ताकि वे बाजार संस्थान के रूप में काम कर सकें बजाय कि विभागीय उपक्रम के।

पूंजी बाजार को कई तरह के नियमन से निजात मिली है। इसके बावजूद वाणिज्यिक परियोजनाओं को वित्तीय मदद के स्रोत के आंकड़ों की बात करें तो 2019-20 तक समाप्त होने वाले तीन वर्षों में औसतन केवल दो फीसदी वाणिज्यिक वित्त सरकारी क्षेत्र से आया। निजी क्षेत्र के जीएफसीएफ के प्रतिशत की तुलना में सरकारी इश्यू केवल दो फीसदी के बराबर जबकि निजी प्लेसमेंट की तुलना में 9 फीसदी रहा। बैंक ऋण अहम स्रोत बना रहा और ऋण में उसकी हिस्सेदारी 49 फीसदी रही। उदारीकरण के पहले के संस्थान मसलन एलआईसी, नाबार्ड और एक्जिम बैंक की हिस्सेदारी 7 फीसदी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की 16 फीसदी रही।

सरकारी इश्यू पर कम निर्भरता संभवत: पारिवारिक दबदबे वाले कॉर्पोरेट प्रबंधन ढांचे की वजह से है। पारिवारिक नियंत्रण वाले प्रबंधन नियंत्रण कम करने से हिचकते हैं। अगर भारत को बाजार आधारित अर्थव्यवस्था बनना है तो इस स्थिति को बदलना होगा। परिपक्व बाजार अर्थव्यवस्थाओं में ऐसा तब हुआ जब कॉर्पोरेट स्वामित्व म्युचुअल फंड और पेंशन फंड की मदद से हुई शेयर खरीद की बदौलत विस्तारित हुआ और उन्होंने अपने क्लाइंट के हितों की रक्षा के लिए मताधिकार का प्रयोग किया। भारत में विदेशी निवेशक संस्थान ऐसा कर रहे हैं लेकिन भारतीय संस्थानों में अब तक ऐसा नहीं है।

पूंजी बाजार में सार्वजनिक इश्यू ही कॉर्पोरेट फाइनैंसिंग का जरिया है। बहरहाल, गैर कॉर्पोरेट उद्यमों और परिवारों के लिए भी संगठित व्यवस्था की जरूरत है। 2018 के एक अध्ययन के अनुसार सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) के 69.3 लाख करोड़ रुपये के ऋण में केवल 10.9 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बैंकों तथा अन्य औपचारिक माध्यमों से आया। एमएसएमई को कोविड महामारी और लॉकडाउन ने भी झटका दिया। उनके लिए औपचारिक वित्तीय इंतजाम बढ़ाए जाने चाहिए।

बड़े निकायों से संबद्ध घरेलू वेंचर फंड की भी आवश्यकता है ताकि एमएसएमई, तकनीक और कारोबारी मॉडल वाले उन स्टार्टअप की मदद की जा सके जो प्राय: शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण प्रबंधन के क्षेत्र में काम करने वाले हों। आईटी आधारित यूनिकॉर्न (जिनका मूल्यांकन एक अरब डॉलर से अधिक हो) को देखकर राह नहीं भटकनी है जहां लाखों डॉलर की फंडिंग उन विदेशी निवेशकों से होती है जो अपनी हिस्सेदारी बेचकर कमाना चाहते हैं।

व्यापक निष्कर्ष यही निकलता है कि भले ही वित्तीय बाजार और पूंजी बाजार उदारीकरण के पहले के समय से एकदम अलग हैं लेकिन व्यापकता और गहराई के मामले में वे अतीत से उतने अलग नहीं हैं जितना होना चाहिए।

निम्नलिखित में से क्या भारतीय पूंजी बाजार की विशेषता नहीं है ?

Important Points
भारतीय पूंजी बाजार की विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • बचतकर्ताओं और निवेश के अवसरों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है: चूंकि पूंजी बाजार में बचतकर्ताओं से जोखिम लेने वाले उधारकर्ताओं को धन हस्तांतरित किया जाता है, यह बचत और निवेश प्रक्रियाओं के बीच एक आवश्यक कड़ी बनाता है।
  • दीर्घकालिक निवेश: अपनी मेहनत की कमाई को लंबी अवधि के निवेश में लगाने की क्षमता निवेशकों के लिए लाभदायक होती है।
  • पूंजी निर्माण में मदद करता है : पूंजी बाजार उन निवेशकों के लिए अवसर प्रदान करता है जिनके पास अतिरिक्त निधि उपलब्ध है और वे इसे निवेश में संग्रहित करना चाहते हैं, ताकि वे चक्रवृद्धि ब्याज से लाभ उठा सकें।
  • मध्यस्थों की मदद करता है: इसमें मध्यस्थों , जैसे दलालों, बैंकों, आदि की सहायता की आवश्यकता होती है, ताकि एक निवेशक से दूसरे निवेशक को अंशो और धन का हस्तांतरण किया जा सके, जिससे उन्हें अपना व्यवसाय चलाने में सहायता मिल सके।
  • नियम और विनियम: सरकार पूंजी बाजार के संचालन को नियंत्रित और विनियमन करती है, जिससे उसे व्यापार करने के लिए एक सुरक्षित वातावरण मिलता है।

Additional Information पूंजी बाजार: पूंजी बाजार एक ऐसा स्थान है जहां अंशो (शेयर्स), बॉन्ड्स, ऋणपत्रों, ऋण उपकरणों और ई टी एफ जैसे वित्त पोषण उपकरणों का व्ययसाय किया जा सकता है। यह निजी नागरिकों, व्यवसायों और सरकारों के लिए धन जुटाने का एक तरीका है।

पूंजी बाजार के प्रकार

प्राथमिक बाजार:

  • शेयर बाजार में पहली बार जारी होने वाली नव प्रतिभूतियों का प्राथमिक बाजार में व्यापार किया जाता है।
  • नतीजतन, नव-निर्गम बाजार इसका दूसरा नाम है।
  • प्राथमिक बाजार का मुख्य उद्देश्य निगमों के लिए, नए जारी किए गए अंशो को आम जनता के हस्तांतरण को आसान बनाना है।
  • इस प्रकार के बाजार में वित्तीय संस्थान, बैंक, एच एन आई और अन्य प्रमुख निवेशक हैं।

द्वितीयक बाजार:

  • द्वितीयक बाजार जिसे शेयर बाजार के नाम से भी जाना जाता है, प्रतिभूतियों के व्यापार के लिए वास्तविक स्थान के रूप में कार्य करता है।
  • यहां, प्रतिभूतियों को खरीदा व बेचा जाता है।
  • वर्तमान निवेशक प्रतिभूतियों का विक्रय करते हैं, जबकि नए निवेशक प्रतिभूतियों का अधिग्रहण करते हैं।

Share on Whatsapp

Last updated on Nov 25, 2022

University Grants Commission (Minimum Standards and Procedures for Award of Ph.D. Degree) Regulations, 2022 notified. As, per the new regulations, candidates with a 4 years Undergraduate degree with a minimum CGPA of 7.5 can enroll for PhD admissions. The UGC NET Final Result for merged cycles of December 2021 and June 2022 was released on 5th November 2022. Along with the results UGC has also released the UGC NET Cut-Off. With tis, the exam for the merged cycles of Dec 2021 and June 2022 have conclude. The notification for December 2022 is expected to be out soon. The UGC NET CBT exam consists of two papers - Paper I and Paper II. Paper I consists of 50 questions and Paper II consists of 100 questions. By qualifying this exam, candidates will be deemed eligible for JRF and Assistant Professor posts in Universities and Institutes across the country.

रेटिंग: 4.62
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 649
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *