इनवेस्टमेंट क्या होती है

यूलिप क्या है, यह म्यूचुअल फंडों से कैसे अलग होता है?
पहले के यूलिप में एजेंटों का कमीशन बहुत मोटा था. प्रीमियम की पहली किस्त का करीब-करीब 60 फीसदी इंश्योरेंस एजेंटों की जेब में जाता था. यही कारण था कि इनकी गलत तरीके से बिक्री होती रही.
इंश्योरेंस सेक्टर के निजीकरण के शुरुआती वर्षों में बीमा कंपनियां और उनके एजेंट यूलिप को एक इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट के तौर पर बेचते थे.
अंत में इस तरफ बीमा नियामक इरडा की नजर गई. उसने इस पूरे खेल पर नकेल कस दी. इसके बाद कम कमीशन और ज्यादा इंश्योरेंस कवर वाले यूलिप आने शुरू हुए. तब से यूलिप में काफी बेहतरी आई है. हालांकि, आज भी इनकी गलत तरह से बिक्री की इनवेस्टमेंट क्या होती है जाती है.
बैंकों के कई रिलेशनशिप मैनेजर यूलिप को बॉन्ड की तरह बेचते हैं. कुछ इंटरमीडिएरी इन्हें ऐसे म्यूचुअल फंड बताकर बेचते हैं जो पांच साल बाद गारंटीशुदा रिटर्न देते हैं. साथ ही इंश्योरेंस कवर फ्री मिलता है.
सवाल यह है कि असल में यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान या यूलिप क्या है? इसका आसान जवाब यह है कि यूलिप एक इंश्योरेंस प्रोडक्ट है जिसमें निवेश का कंपोनेंट जुड़ा है. या फिर जैसा कि कुछ इंश्योरेंस एजेंट दावा करते हैं कि ये म्यूचुअल फंड स्कीम जैसे हैं जिनमें इंश्योरेंस का फीचर भी शामिल होता है.
क्या रहा है इतिहास?
जब भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का एकछत्र राज था, तब इंश्योरेंस कवर में हमेशा सेविंग का फीचर होता था. यही कारण है कि इंश्योरेंस को अनिवार्य रूप से बचत और टैक्स सेविंग के मकसद से इस्तेमाल किया जाता था. निजीकरण से पहले इसे यह कहकर बेचा जाता था कि 'आप x राशि निवेश करेंगे तो आपको x प्लस बोनस मिलेगा. उस वक्त एनडावमेंट प्लान और सेविंग्स के साथ वाले इंश्योरेंस प्रोडक्टों का बोलबाला था.
निजीकरण के बाद इंश्योरेंस कवर निवेश के फीचर के साथ आने लगे. निवेश में कंजर्वेटिव फिक्स्ड इनकम से लेकर हाई रिस्क वाले इक्विटी तक का विकल्प दिया जाने लगा. यूलिप का यही इतिहास रहा है.
कैसे काम करते हैं ये प्लान?
आप अपने इंश्योरेंस कवर के लिए प्रीमियम देते हैं. इंश्योरेंस कंपनी इसमें से लाइफ कवर और अन्य खर्चों को काटकर बाकी का पैसा निवेश करती है. शुद्ध टर्म प्लान केवल इंश्योरेंस कवर ऑफर करते हैं और उनमें सेविंग्स या इनवेस्टमेंट का कोई तत्व नहीं होता है.
इस तरह आप बहुत कम प्रीमियम के साथ बहुत बड़ा लाइफ इंश्योरेंस कवर खरीद पाते हैं. पॉलिसी की अवधि के दौरान अगर पॉलिसीधारक की मौत हो जाती है तो नॉमिनी को बीमित राशि मिल जाती है. अगर पॉलिसी अवधि से ज्यादा कोई जीवित रहता है तो उसे कुछ नहीं मिलता है.
कुछ न मिलना और दिए गए प्रीमियम को गंवा देना ज्यादातर भारतीयों को नहीं पचता है. यही कारण है कि बीमा कंपनियों ने इंश्योरेंस के साथ सेविंग्स या निवेश वाले प्रोडक्टों को आगे बढ़ाना शुरू किया. भारतीयों ने खुशी-खुशी एनडावमेंट प्लान और यूलिप जैसे महंगे प्रोडक्टों को अपनाया.
क्या हो रणनीति?
एक बार जब आप पर्याप्त लाइफ कवर ले लें तो निवेश की जरूरतों के लिए म्यूचुअल फंडों में निवेश शुरू कर सकते हैं. इस रणनीति के फायदे हैं. पहला, आप छोटा प्रीमियम देकर पर्याप्त कवर ले पाते हैं. फिर आप अपनी म्यूचुअल फंड स्कीमों के प्रदर्शन को ट्रैक कर लेते हैं.
यह काम आप यूलिप जैसे इंश्योरेंस प्लान के साथ नहीं कर पाएंगे. अगर यूलिप प्लान का निवेश वाला हिस्सा अच्छा नहीं कर रहा है तो आप केवल दूसरे इनवेस्टमेंट ऑप्शन में स्विच कर सकते हैं. इसे पूरी तरह बेचना विकल्प नहीं है क्योंकि तब आप इंश्योरेंस कवर गंवा देते हैं. जैसे-जैसे आपकी उम्र गुजरती है, लाइफ इंश्योरेंस कवर ले पाना महंगा और जटिल होता जाता है.
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Mutual Fund: इक्विटी या डेट म्यूचुअल फंड में क्या है अंतर? आपके लिए क्या है बेहतर?
ज्यादा जोखिम न लेने वाले निवेशक डेट म्यूचुअल फंड्स को चुन सकते हैं. हालांकि डेट के मुकाबले इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में आमतौर पर बेहतर रिटर्न की उम्मीद रहती है.
अगर आप अपने लाइफ के टार्गेट को लेकर स्पष्ट है तो आपके लिए निवेश स्कीम चुनना काफी आसान है.
म्यूचुअल फंड्स एक तरह का फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट है. इसके जरिए स्टॉक, गवर्नमेंट और कार्पोरेट बॉन्ड, डेट इंस्ट्रूमेंट्स और गोल्ड स्कीम में निवेश किया जाता है. पूरी तैयारी के साथ म्यूचुअल फंड के जरिए निवेश किया जाए तो बेहतर रिजल्ट देखने को मिलते हैं. हालांकि ये जरूरी नहीं कि सभी प्रकार के म्यूचुअल फंड सभी निवेशकों के लिए बेहतर हों. ऐसे में म्यूचुअल फंड में इनवेस्टमेंट से पहले निवेशकों को उसके बारे में जरूरी जानकारी जुटा लेनी चाहिए. साथ ही निवेशकों को अपनी रिस्क लेने की क्षमता, जरूरतों, टार्गेट और स्कीम की टेन्योर समेत तमाम पहलुओं को समझ लेना जरूरी है.
बैंक बाजार डॉट कॉम के सीईओ आदिल शेट्टी (Adhil Shetty) कहते हैं कि म्यूचुअल फंड सभी उम्र के निवेशकों के बीच पॉपुलर है. वह बताते हैं कि जब फाइनेंशियल टार्गेट स्पष्ट होते हैं तो सही इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट चुनने में आसानी होती है. म्यूचुअल फंड और डेट फंड का फैसला हो जाने के बाद इनवेस्टमेंट टेन्योर तय होता है. शॉर्ट-टर्म इनवेस्टमेंट के लिए (short-term investment) डेट फंड स्कीम को चुना जा सकता है. इसमें जोखिम भी कम होता है. कम सेविंग वाले निवेशकों को पैसों की कभी भी जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में उन्हें ज्यादा जोखिम लेने से बचना चाहिए. अगर निवेशक लंबी अवधि के लिए म्यूचुअल फंड्स में निवेश करे तो उसे थोड़ा बहुत जोखिम भी उठाना पड़ सकता है. ज्यादा रिटर्न के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में निवेश कर सकते हैं. निवेशक को अपने टार्गेट के आधार पर म्यूचुअल फंड्स के विकल्पों को चुनना चाहिए. म्यूचुअल फंड्स की दो कैटेगरी है- इक्विटी स्कीम्स और डेट स्कीम
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इक्विटी म्यूचुअल फंड्स
इक्विटी म्यूचुअल फंड्स या ग्रोथ ओरिएंटेड फंड्स एक बेहद खास स्कीम है. इस स्कीम के तहत स्टॉक एक्सचेंज मार्केट में लिस्टेड विभिन्न कंपनियों के शेयर में निवेशक के एसेट्स को इनवेस्ट किया जाता है. ये स्कीम निवेशकों को उनके पैसे अलग-अलग सेक्टर की कई कंपनियों के शेयर में निवेश का मौका देता है. यही स्ट्रेटेजी निवेशक को जोखिम से बचाता है और उसके कारोबार में बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी करने में मददगार होता है.
मिसाल के तौर पर समझिए कि एक निवेशक अपना 1000 रुपये इक्विटी म्यूचुअल फंड के माध्यम से 50 कंपनियों में निवेश किया. जिन कंपनियों के शेयर में निवेशक के एसेट्स इनवेस्ट किए गए उन सभी में उसका अनुपातिक लिहाज से मालिकाना हक हो जाता है. और सभी कंपनियां उसके पोर्टफोलियो में शामिल भी हो जाती हैं. जिन कंपनियों के शेयर में निवेशक के एसेट्स लगे हैं. अगर उनमें से कुछ स्टॉक अच्छा परफार्म नहीं कर पाए तो बाकी बचे निवेशक के पोर्टफोलियो में शामिल बेहतर परफार्मेंश वाले स्टॉक बुरे प्रभाव को कम करने या उस प्रभाव की भरपाई करके इनवेस्टमेंट वैल्यू को बेहतर बनाने का काम करते हैं. ऐसे में निवेशक को डावर्सिफाई पोर्टफोलियो और रिस्क एडजस्टेड रिटर्न के फायदे मिलते हैं.
आदिल शेट्टी बताते हैं कि कम अवधि से लेकर मध्यम अवधि वाले इक्विटी फंड में निवेश काफी जोखिम होता है और इस पर मिलने वाले रिटर्न का अनुमान लगाना बेहद कठिन है. लेकिन लंबी अवधि में इन पर निवेशक को बेहतर रिटर्न मिलता है. इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेशकों को तीन साल से कम अवधि के लिए निवेश करने से बचना चाहिए. आंकड़े बताते है कि पिछले दो दशकों में इक्विटी फंड का कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) 18-20% से अधिक रहा है. शॉर्ट टर्म यानी एक साल से कम अवधि वाले इक्विटी म्यूचुअल फंड के रिटर्न पर 15% टैक्स देना होता है. अगर इस फंड को एक साल के बाद बेचा जाए तो 1 लाख रुपये से अधिक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 10% टैक्स लगता है.
डेट म्यूचुअल फंड्स
इक्विटी फंड के मुकाबले डेट म्यूचुअल फंड ज्यादा सुरक्षित और स्थायी है. हालांकि लंबी अवधि के निवेश में ये इक्विटी फंड के मुकाबले कम रिटर्न देते हैं. लेकिन बैंक के सेविंग अकाउंट, फिक्स्ड डिपॉजिट, रिकरिंग डिपॉडिट, पोस्ट ऑफिस स्कीम पर मिलने वाले रिटर्न की तुलना में डेट म्यूचुअल फंड के रिटर्न बेहतर होते हैं. इक्विटी फंड की तरह इनमें भी निवेशक के पास डावर्सिफाइड पोर्टफोलियो होता है. इसमें निवेशक का पैसा फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी (fixed-income securities), मसलन कार्पोरेट बॉन्ड (Corporate Bonds), गवर्नमेंट सिक्योरिटीज़ (Government Securities) और ट्रेजरी बिल (Treasury Bills) में निवेश किया जाता है. इस पर मिलने वाले रिटर्न का अनुमान कुछ हद तक पहले से लगाया जा सकता है.
टैक्स के लिहाज से देखा जाए तो डेट स्कीम पर तीन साल के भीतर मिलने वाले गेन को शार्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) कहते हैं. तीन साल के बाद के प्रॉफिट को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन ( LTCG) कहते हैं, अगर आप डेट फंड की यूनिट्स को खरीदने के तीन साल के भीतर बेचते हैं, तो उस पर हासिल प्रॉफिट पर निवेशक के टैक्स स्लैब के आधार पर टैक्स देना पड़ता है. मिसाल के तौर पर अगर एक निवेशक की टैक्स के दायरे में आने वाली इनकम 6,00,000 रुपये इनवेस्टमेंट क्या होती है है और उसका STCG 1,00,000 रुपये है तो उसे 7,00,000 रुपये पर टैक्स देना होगा. डेट म्यूचुअल फंड में तीन साल या उससे अधिक समय तक निवेश किया गया हो तो उस पर होने वाले कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन बेनिफिट के साथ 20% टैक्स लगता है.
ज्यादा जोखिम न लेने वाले निवेशक डेट म्यूचुअल फंड्स को निवेश के लिए चुन सकते हैं. इस स्कीम में उन निवेशकों को खास तौर पर निवेश करना चाहिए जो नौकरी के दौरान अच्छी रिटर्न दिलाने वाले स्कीम की तलाश कर रहे हैं. ऐसा करके वह रिटारमेंट के बाद भी कैश फ्लो बनाए रख सकते हैं. अगर आप अपने लाइफ के टार्गेट को लेकर स्पष्ट है तो आपके लिए निवेश स्कीम चुनना काफी आसान है. ऐसे में आप उचित फैसला भी ले पाते हैं.
Gold as an investment 2021 | सोने मे इनवेस्टमेंट करना क्या सही है या गलत?
लेकिन आजकल सोने- चांदी मे इनवेस्टमेंट करनेवाले कम लोग ही बचे है, पुराने खयालातवाले लोग ही अब सोंने चांदी कटकी बाते करते हुये दिखाई देते है.
आजकल तो जादातर म्युचअल फंड, शेअर मार्केट और प्रोपर्टी में इनवेस्टमेंट करते दिख रहे है. फिजीकल सोने-चांदी मे इनवेस्टमेंट अभी तो कम हो गई है लेकिन डिजीटल रुप मे सोने-चांदी खरिदना बढ गया है कई लोग इसमे ट्रेडिंग भी करते है.
लेकिन सोने-चांदी मे हमे Investment करने से पहले बहुत सारी बातें जान लेनी चाहिये जो की बहुत काम कि है. तो चलिये देखते है की Gold as an Investment कितना सही है या गलत.
Gold खरिदने के कौन-कौन से तरिके है?
देखा जाये तो Gold खरिदने के बहुत से तरिके है, आप किस किस माध्यम से इसे खरिद सकते है इसके बारे मे हम आपको बतायेंगे.
1. Physical Gold क्या होता है?
यह आमतौर पर पुराने जमाने से चली आनीवाली पद्धती है जिसमे हम किसी दुकान मे जाके जो भी उस दिन का Gold Price चल रहा होगा उसके हिसाब से हम उसे खरिदते है और सोने का हार या कोई अन्य ज्वैलरी या गोल्ड बिस्किट के रुप मे हम इस खरिदते है.
2. गोल्ड ईटीएफ क्या है?
ETF यानी Exchange Traded Fund. इसके लिये आपके पास Demate Account होना चहिये. इसके इनवेस्टमेंट क्या होतइनवेस्टमेंट क्या होती है ी है जरिये आप आपके Demate Account पर जो भी बॅकग्राऊंड अकाउंट जुडा है उसी माध्यम से पैसे देकर जितने भी Units आप खरिदना चाहते है उतने आप Unit के हिसाब से खरिद सकते है.
3. Paytm, Phone pe से Gold कैसे खरिदे? ( Digital gold )
आजके समय मे यह तरिका बहुत जादा लोग इस्तमाल कर रहे है इसमे भी आपको आपके Paytm, Phone Pe जैसे Digital Payment Wallet मे Gold खरिदने का ऑप्शन मिल जायेगा इसके जरिये आप इसे खरिद सकते है.
4. Mutual Fund Gold क्या है?
म्युचुअल फंड मे कई प्रकार के फंड होते है, जैसे Small Cap equity fund, Large Cap Equity Fund, Dept Fund, Direct fund वैसे ही Gold Fund भी शामिल होते है इसमे आप इसके युनिट्स खरिद सकते है जो की जैसे गोल्ड की किंमत बढेगी इनवेस्टमेंट क्या होती है या गिरेगी वैसे आपके खरिदे हुये युनिट्स की किमते बढेगी या गिरेगी.
5.Futures and Options में कैसे खरिदे सोना?
आप चाहे तो सोने को Commodity Market मे Trading करने के लिये खरिद और बेच भी सकते है. लेकिन यह आप एक सिमीत समय के लिये ही खरिद सकते है इसकी महिने और हप्ते के हिसाब से एक्सपायरी होती है उस हिसाब से आप इसे खरिद सकते है और इसमे ट्रेडिंग कर सकते है.
Gold Investment Returns कितना मिलता है?
यह कोई फिक्स्ड नहीं होता कभी कभी बहुत जादा रिटर्न इसमे मिल जाते है, 30,40 साल पहले अगर आप इसमे इनवेस्टमेंट करते तो वह अच्छा तरिका था लेकिन कई कारणों से फिलाल के कुछ वर्षों का रिटर्न्स देखे तो बहुत सिमित रह गये है.
अवरेज देखा जाये तो इनमे बॅक और दुसरे तरिके से जादा रिटर्न्स आपको मिल जाते है लेकिन कई कई बार यह सिमित दायरे मे ही रहता है.
डाॅलर और रुपयों कि किमते का गोल्ड पर असर नहीं पडता लेकिन जादूगर सोना Import किया जाता है इसलिये इसकी रुपया गिरते ही सोने की मांग भी कम हो जाती है.
जब भी अमेरिकन डाॅलर गिरता है तब सोने की मांग है क्योंकि आंतरराष्ट्रीय बाजार मे सोने की किमते डाॅलर मे होती है इसलिये बाजार मे कमजोरी आने पर लोग सोने की तरफ देखते है.
जब भी शेअर मार्केट आदी गिरता है तो लोग वहीं पैसा सोने मे इनवेस्टमेंट करने के लिये इस्तमाल करते है. तब अमूमन सोने के भाव बढते है.
भारत मे हर साल लगभग 800 टन से भी जादा सोना खपत होता है और उसमे से जादा हिस्सेदारी गावों मे होती है क्योंकि ग्रामीण इलाकों मे बचत या इनवेस्टमेंट के रुप मे सोने को खरिदा जाता है अगर मानसुन बारिश कम हो जाती है तो सोना बेचकर लोग धन जुटाते है.
आज का सोने का भाव कितना चल रहा है?
आज 15 जुलै को आज के सोने का भाव देखे तो यह लगभग 1 तोला ( 24 करेंट) सोने का भाव 49,960 भारतीय रुपये चल रहा है.
यही सोने का भाव दिसंबर 2016 को लगभग 27400 रुपयें चल रहा था. अगष्ट 2020 में यही सोने का भाव लगभग 57000 रुपयों तक पोहच गया था.
सोने मे इनवेस्टमेंट करने के फायदे?
2. जादातर शेअर मार्केट बढता है तो सोने का भाव कम होता है और अगर सोने का भाव बढता है तो शेअर मार्केट जादातर निचे आता है इसलिये आप रिस्क से बचने के लिये शेअर मार्केट के साथ साथ Hedge करके भी रख सकते है, इससे आपका रिस्क ना के बराबर रहेंगा.
1. सोने की ज्वेलरी खरिदते है तो आपको इससे कोई भी डेली इनकम नहीं होती, अगर आप म्युचुअल फंड या शेअर मार्केट मे इनवेस्टमेंट करते है तो आप इससे रोज की थोडी बहुत कमाई पा सकते है.
2. सोने को खरिद कर घर मे रखना इसका बहुत बडा ड्राॅबॅक है यह चोरी होने का भी डर रहता है अगर आप डिजिटल सोना या ई- गोल्ड खरिदते है तो आप इससे बचे रहेंगे.
3. भारत मे सोने के भाव इंटरनेशनल मार्केट पे डिपेंड करते है इसके भाव का प्रेडिक्शन लगना लगभग ना मुनकिन है.
4. अगर आप सोने की ज्वेलरी, काॅईन या सोने की बिस्किट के रुप मे इसमे इनवेस्टमेंट करते है तो कुछ दिन बाद अगर आप वह बेचने जायेंगे तो आपको उसकी किमत थोडी बहुत कम मिलेगी.
5. अगर आप डिजिटल प्लॅटफॉर्म पे सोना खरिदते है तो आपको खरिदने और बेचने के भाव मे कम जादा भाव देखने को मिलेगा.
6. सोना एक Unproductive Asset है, जो भी आप सोना खरिदते हो उसका देश के इकाॅनाॅमी पर कोई अच्छा असर नहीं पडता है.
सोने मे इनवेस्टमेंट करना सही रहेगा या गलत?
अगर आप दुसरे इनवेस्टमेंट को Hedge करने के लिये सोने मे निवेश कर सकते है यही सही तरिका रहेगा. अगर आप Physical सोने की इनवेस्टमेंट क्या होती है बजह Digital Gold खरिदते है तो आपको जल्दी बेचने मे आसानी होगी और उसकी किंमत मे कोई कमी नहीं पकडेगें.
डायवर्सिफिकेशन के लिये बाकीयों के साथ सोने मे इनवेस्टमेंट करना सही तरिका रहेगा. सिर्फ और सिर्फ सोने मे सब इनवेस्टमेंट मत करिये क्योंकी यह बहुत सारे Unpredictable फॅक्टर्स पे अवलंबन है इसका अंदाजा लगना ना मुनकिन है.
FAQ
Ans: Gold मे हम Physical, E Gold यानी Digital Gold, Mutual Gold Fund, Gold Bees इन तरिकों से सोने मे इनवेस्टमेंट कर सकते है.
Ans: Inflation, Liquidity, Supply & Demand, International इनवेस्टमेंट क्या होती है Market Rumors, Flow of Cash, Financial Products and services, Mansoon जैसे अनेक फॅक्टर्स पर सोने के भाव कम जादा होते रहते है.
सेफ फ्यूचर के लिए किस उम्र में महिलाएं कहां और कितना करें इनवेस्टमेंट
वक्त बदल रहा है और वक्त के साथ महंगाई, लाइफस्टाइल और लोगों की जरूरतें बदल रही हैं। घर की आर्थिक जरूरतें पूरी करने का जिम्मा अब केवल पुरुषों पर ही नहीं है, बल्कि महिलाएं भी इस जिम्मेदारी को बराबर से निभा रही हैं। आज हर क्षेत्र में महिलाएं खुद को आजमा रही हैं और बढ़िया सैलरी पा रही हैं। मगर, आज के वक्त में जितना जरूरी खर्चों को पूरा करना है, उतना ही जरूरी है पैसे बचा कर सही जगह इनवेस्ट करना। अगर आप सही उम्र में सही जगह इनवेस्टमेंट करती है तो फ्यूचर में आपको कभी भी अर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि किस उम्र में आपको कहां पर इनवेस्टमेंट करनी चाहिए और इससे आपको क्या फायदा मिलेगा।
25 से 35 वर्ष की महिलाएं
इस उम्र में महिलाओं में आगे बढ़ने का उत्साह होता है साथ ही अपनी लाइफस्टाइल को अच्छे से मैनटेन करने के चक्कर में बेफिक्र होकर खर्च करती हैं। ऐसा करने में कोई हर्ज नहीं। यह उम्र ज़िंदगी का लुत्फ़ उठाने की ही होती है। इस उम्र में लोगों का वेतन बेशक कम होता है मगर छोटी-छोटी बचत करके उसे सही जगह इनवेस्ट करने की भी यही सही उम्र होती हैं। फाइनेंस एक्सपर्ट अर्विंद सेन कहते हैं, ‘इस उम्र में छोटी-छोटी बचत से लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट करना बहुत अच्छा होता है। क्योंकि इस उम्र में कोई बहुत बड़ी जिम्मेदारी नहीं होती और आने वाले 15 इनवेस्टमेंट क्या होती है साल तक आप आराम से नौकरी भी कर सकती हैं।’ उदाहरण के लिए यदि कोई युवती 25 साल की है और वह हर महीने रु2,000 इनवेस्ट करती है और यह क्रम लगातार चलता रहता है, तो जब वह 60 वर्ष की होगी तो उसके अच्छी खासी धनराशी जमा हो जाएगी। इस उम्र में इस तरह एक छोटी राशि का निवेश किया जाना बहुत मायने रखता है। इस उम्र के लिए हर किसी का अलग-अलग प्लैन हो सकता है। क्योंकि कोई 15 हज़ार कमाता है, तो कोई एक लाख। अपनी क्षमता अनुसार निवेश करें। इस वक़्त आप थोड़ा ज़्यादा जोखिम लेकर अपने निवेश का बड़ा हिस्सा ग्रोइंग कंपनियों में भी लगा सकते हैं।
35 से 50 वर्ष की महिलाएं
35 वर्ष की उम्र तक महिलाएं लगभग सेटल हो चुके होती हैं। अगर आप भी सेटल हो चुकी हैं तो आपको अब अपने भविष्य को संवारने के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग करनी चाहिए। अगर आपके बच्चे हो चुके हैं तो आपको उनके भविष्य और उनकी पढ़ाई के लिए पैसों को ऐसी जगह इनवेस्ट करना चाहिए, जो सही वक्त पर आपको बड़ी धनराशि के रूप में इनवेस्टमेंट क्या होती है मिल सकें। इस उम्र में आप गोल्ड, लॉन्ग टर्म बेनिफिट्स देने वाले बॉन्ड्स, शेयर्स आदि में निवेश कर सकती हैं। आप बैंक में लॉन्ग टर्म के लिए अपना फिक्स डिपॉजिट भी करवा सकती हैं। फिक्स डिपॉजिट सबसे सेफ इनवेस्टमेंट होती है। मगर इस में मिलने वाला ब्याज बहुत अच्छा नहीं होता। आप अगर एसआईपी या मिचुअल फंड्स में इनवेस्ट करना चाहें तो यह भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। आपको यह तय करना चाहिए कि आपको आने वाले दिनों में कितने पैसे की ज़रूरत है। फिर फायनेंशियल एड्वाइज़र के इनवेस्टमेंट क्या होती है साथ मिलकर अपने पैसे निवेश करें। किसी भी क़ीमत पर एक ही स्थान पर निवेश न करें। इस उम्र में भी हमारी जोखिम उठाने की क्षमता ठीक होती है। इसलिए आप अपने निवेश का 50 प्रतिशत इक्विटी में लगा सकते हैं।” अपनी निवेश राशि का 30 प्रतिशत बैलेंस फ़ंड में डाल सकती हैं। बाक़ी बचे पैसों को अपनी जोखिम क्षमता के अनुसार निवेश करें।
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वर्किंग महिलाएं कहां करें निवेश
अगर आप एक वर्किंग वुमन हैं और आप चाहती हैं कि कहीं अच्छी जगह इन्वेस्ट किया जाए तो आप यह बिल्कुल सही सोच रही हैं। हम आपको बताएंगे कि कैसे आप बचत करने के लिए अलग-अलग जगह पर निवेश कर सकती हैं:
सोना
महिलाओं को गोल्ड से बहुत लगाव होता है। वह इसे पहनना बहुत पसंद करती हैं। मगर आप श्रृंगार के साथ ही सोने को इनवेस्टमेंट के तौर पर भी देख सकती हैं। गोल्ड में इनवेस्टमेंट के लिए आपको किसी ब्रांडेड ज्वेलर्स शॉप में अपना गोल्ड अकाउंट खोलना चाहिए। इसमें आप साल भर या उससे ज्यादा एक निश्चित धनराशि जमा करती जाती हैं और कुछ धनराशि वह ज्वेलर्स शॉप द्वारा दी जाती इनवेस्टमेंट क्या होती है है। जब आपकी स्कीम पूरी हो जाती है तो आपको उतनी धनराशि का कोई गोल्ड उत्पाद दिया जाता है। बेहतर हो कि गोल्ड इनवेस्टमेंट के लिए आप गोल्ड के सिक्के या ब्लॉक खरीदें।
बीमा
आप नौकरी करें या नहीं, बीमा जरूर करायें। बढ़ती महंगाई में तरह-तरह के खर्चों के बीच अगर आप बीमार पड़ जाती हैं तो बीमा कराने से आपके इलाज के पैसे बीमा कंपनी देती है। जरा सोचिए अगर आपका बीमा नहीं है तो इलाज में लग जाने वाले भारी खर्च के लिए आप पैसे कहां से लाएंगी, आपका खर्च कौन उठायेगा। ऐसी मुसीबत से बचने के लिए आप अपना हेल्थ इंश्योरेंस जरूर कराएं। इसके अलावा लाइफ इंश्योरेंस, जिसमें मनी बैक पॉलिसी हो उसे ले सकती हैं, जिससे भविष्य में आपको ढेर सारे लाभ मिलें
शेयर बाजार
अगर आपको शेयर के बारे में ज्ञान है, तो आप शेयर बाजार में निवेश करके अपने धन को बढ़ा सकती हैं और ढेर सारे लाभ कमा सकती हैं। लेकिन हां इसमें एक्सपर्ट की राय लेना जरुरी है क्योंकि जरा सी चूक आपका घाटा करा सकती है।
Mutual Funds SIP: एसआईपी में पहली बार करने जा रहे इनवेस्टमेंट क्या होती है हैं निवेश? बेहतर रिटर्न के लिए इन 5 बातों का जरूर रखें ध्यान
SIP Mutual Fund: Article Body- Systematic Investment Plan (SIP) Investment: SIP के तहत, आप अपनी इनकम और फाइनेंशियल गोल्स के आधार पर निश्चित अवधि जैसे हर हफ्ते, महीने, तिमाही या छमाही में एक निश्चित राशि निवेश कर सकते हैं.
इन्वेस्टमेंट जर्नी शुरू करने के लिए म्यूचुअल फंड सबसे अच्छे निवेश विकल्पों में से एक है.
Systematic Investment Plan (SIP): इन्वेस्टमेंट जर्नी शुरू करने के लिए म्यूचुअल फंड सबसे अच्छे निवेश विकल्पों में से एक है. इसमें आप या तो एकमुश्त निवेश कर सकते हैं या सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) चुन सकते हैं. SIP में आप नियमित अंतराल में एक निश्चित राशि निवेश कर सकते हैं. पहली बार निवेश करने वालों के लिए SIP सबसे अच्छा विकल्प है. इसमें आप कम जोखिम के साथ ज्यादा रिटर्न हासिल कर सकते हैं. आप अपनी इनकम और फाइनेंशियल गोल्स के आधार पर निश्चित अवधि जैसे हर हफ्ते, महीने, तिमाही या छमाही में एक निश्चित राशि का निवेश कर सकते हैं.
पहली बार निवेश करने वाले निवेशक अक्सर म्यूचुअल फंड में बड़ी रकम जमा करने से हिचकिचाते हैं, लेकिन SIP में निवेश के लिए बड़ी राशि की जरूरत नहीं होती है, आप 500 रुपये से कम से एसआईपी के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश शुरू कर सकते हैं. अपने वित्तीय लक्ष्यों को निर्धारित करके अपने निवेश की सावधानीपूर्वक योजना बनाएं. पहली बार SIP में निवेश करते समय इन पांच बातों का ध्यान जरूर रखें.
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अपने इन्वेस्टमेंट गोल्स को पहचानें
अपना निवेश शुरू करने के लिए आपके पास शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म दोनों तरह का लक्ष्य होना चाहिए. एसआईपी शुरू करने से पहले इस निवेश के जरिए हासिल किए जाने वाले लक्ष्य को समझना जरूरी है. यह आसान कदम आपको यह तय करने में मदद करेगा कि आप कितनी राशि कितने समय तक के लिए निवेश करना चाहते हैं. आपके पास अलग-अलग वित्तीय लक्ष्य हो सकते हैं जैसे कि कार खरीदना, घर खरीदना, बच्चे की शिक्षा, शादी आदि. इसलिए एक SIP आपके सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है. फाइनेंशियल गोल्स की संख्या के आधार पर आप इनमें से प्रत्येक लक्ष्य को पूरा करने के लिए कई एसआईपी में निवेश कर सकते हैं.
महंगाई के आधार पर करें निवेश
निवेश के जरूरी नियमों में से एक निवेश करते समय महंगाई को ध्यान में रखना है. एसआईपी चुनते समय आपको मौजूदा और भविष्य की मुद्रास्फीति को ध्यान में रखना चाहिए. हो सकता है कि आप अभी निवेश कर रहे हों, लेकिन आपके भविष्य के लक्ष्य बदल सकते हैं और आपकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अधिक राशि की जरूरत पड़ सकती है. यह अक्सर देखा जाता है कि लोगों को कई निवेशों के बावजूद पैसे कम पड़ जाते हैं क्योंकि वे मुद्रास्फीति को ध्यान में नहीं रखते. यह सलाह दी जाती है कि निवेश अवधि में अनुमानित मुद्रास्फीति को देखते हुए आपको अपने वित्तीय लक्ष्यों के लिए फंड तय करना चाहिए और उसी के अनुसार एसआईपी राशि तय करनी चाहिए.
सावधानी से चुनें इन्वेस्टमेंट स्कीम
म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए बाजार विकल्पों से भरा है. आप इक्विटी फंड, डेट फंड या हाइब्रिड फंड में निवेश कर सकते हैं. जोखिम लेने की क्षमता, रिटर्न की उम्मीदों और आपके वित्तीय लक्ष्य के आधार पर म्यूचुअल फंड स्कीम चुन सकते हैं. उदाहरण के लिए, अगर आपकी जोखिम उठाने की क्षमता अधिक है और आप उच्च रिटर्न की उम्मीद करते हैं और लंबी अवधि के निवेश करना चाहते हैं, तो आप इक्विटी एसेट क्लास का विकल्प चुन सकते हैं. कम जोखिम वाले निवेशक डेट फंड में निवेश कर सकते हैं. औसत रिटर्न की तलाश में मध्यम जोखिम लेने वाले निवेशक हाइब्रिड फंड का विकल्प चुन सकते हैं.
डायवर्सिफिकेशन जरूरी
अपने निवेश में विविधता लाना एक अच्छी निवेश रणनीति है. जैसा कि पहले भी कहा गया है कि आपको अपनी जोखिम उठाने की क्षमता और रिटर्न की उम्मीदों के अनुसार निवेश करना चाहिए. उम्र, वित्तीय जिम्मेदारियां, निवेश की अवधि, आय, देनदारी जैसी चीजें निवेशक की जोखिम उठाने की क्षमता को प्रभावित करते हैं. डायवर्सिफिकेशन जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है. डायवर्सिफिकेशन के लिए, आपको अलग-अलग एसेट क्लास, स्कीम और म्यूचुअल फंड कंपनियों में निवेश करना चाहिए.
SIP इन्वेस्टमेंट को चेक करते रहें
निवेश का मतलब यह नहीं है कि आप अपना पैसा कुछ प्रोडक्ट्स में लगा दें और इसे भूल जाएं. आपको नियमित अंतराल पर अपने निवेश प्रदर्शन पर नज़र रखनी चाहिए. कई बार आपका निवेश उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं करता है. यह गलत स्कीम या मार्केट में नेगेटिव सेंटीमेंट के कारण हो सकता है. अगर आप नियमित रूप से अपने फंड के प्रदर्शन को चेक कर रहे हैं, तो उम्मीद के मुताबिक रिटर्न हासिल करने के लिए आप जरूरी कदम उठा सकते हैं. आप खराब प्रदर्शन करने वाली स्कीम को हटा सकते हैं और निवेश को किसी अन्य फंड में स्विच कर सकते हैं. जितना अधिक समय तक आप एसआईपी के माध्यम से निवेश करते हैं, उतना ही अधिक रिटर्न अर्जित करने की संभावना बेहतर होती है.